आरक्षण:भाजपा-कांग्रेस में भिडन्त, 17 मई के निर्णय का इंतजार

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आरक्षण:भाजपा-कांग्रेस में भिडन्त, 17 मई के निर्णय का इंतजार

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचायत और निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के बिना तत्काल चुनाव कराने के फैसले के बाद एक ओर जहां भाजपा और कांग्रेस में इस मुद्दे को लेकर इस बात पर भिडन्त हो रही है कि आखिर कौन पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा हितैषी है तो वहीं दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आदेश में संशोधन हेतु पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है जिस पर 17 मई को सुनवाई होगी और दोनों ही दलों को इस पर आने वाले फैसले का बेसब्री से इंतजार है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश में परिवर्तन की गुंजाइश उन्हें नजर नहीं आ रही, इसीलिए राज्य निर्वाचन आयोग ने भी चुनाव की तैयारियां प्रारम्भ कर दी हैं।

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भाजपा व कांग्रेस ने भी इस स्थिति से निपटने के लिए अपने-अपने स्तर पर रणनीति बना ली है और यदि बिना आरक्षण के चुनाव कराना पड़ा तो फिर भाजपा 27 प्रतिशत से अधिक सीटें और कांग्रेस 27 प्रतिशत सीटें पिछड़े वर्गों को देने की मशक्कत करने में भिड़ गई हैं। जब तक सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय से इतर पुनर्विचार करते हुए कोई आदेश नहीं देता तो फिर चुनाव 30 जून तक कराये जाने की प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां प्रारम्भ हो गयी हैं। कुल मिलाकर आने वाले कुछ माहों तक पिछड़े वर्ग के आरक्षण का मुद्दा प्रदेश की राजनीति में जोरशोर से उठता रहेगा।

राज्य सरकार के प्रवक्ता और गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने दावा किया है कि सरकार चुनाव कराने के लिए तैयार है लेकिन बिना आरक्षण के चुनाव नहीं होने चाहिए। उनका कहना है कि याचिका में आग्रह किया गया है कि 2022 के परिसीमन के आधार पर ओबीसी को शामिल कर चुनाव की अनुमति दी जाए और इसके लिए दो सप्ताह का समय भी मांगा है। नगरीय निकाय चुनाव के सम्बन्ध में शिवराज सरकार कमलनाथ सरकार के एक और फैसले को उलटने जा रही है और इस संबंध में अध्यादेश जारी करने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है।

आरक्षण:भाजपा-कांग्रेस में भिडन्त, 17 मई के निर्णय का इंतजार

कमलनाथ सरकार ने महापौर, नपा और परिषद अध्यक्ष का निर्वाचन अप्रत्यक्ष तरीके से कराने का प्रावधान किया था, अब यदि अध्यादेश जारी हो जाता है तो फिर ये चुनाव सीधे जनता द्वारा किए जायेंगे और इसमें भाजपा को अधिक लाभ मिलने की संभावना है । क्योंकि महानगरों व बड़े शहरों में भाजपा की मजबूत पकड़ है। जहां तक राज्य सरकार द्वारा आदेश में संशोधन करने की मांग का सवाल है इस पर कांग्रेस नेता और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एडवोकेट जे.पी. धनोपिया का कहना है

कि यह केवल दिखावा है और संशोधन की गुंजाइश बहुत ही कम है, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा 6 मई 2022 को पिछड़ा वर्ग आयोग के नाम से जो रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत की गयी है और जिसको माननीय उच्चतम न्यायालय ने विचार योग्य ही नहीं समझा तथा कोई विकल्प न होने की दशा में जो निर्णय पारित किया है उसमें प्रथम दृष्टया कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती। ओबीसी आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने के आदेश देने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत तथा नगरीय निकाय चुनाव कराने को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ने तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं।

निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने कलेक्टरों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चुनाव कराने के लिए तैयार रहने को भी कहा है। इस बार पंचायत चुनाव तीन चरणों में मतपत्र से कराये जायेंगे तो वहीं नगरीय निकाय चुनाव ईवीएम के द्वारा दो चरणों में होंगे। नई व्यवस्था के तहत ओबीसी के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों को अब सामान्य में परिवर्तित किया जायेगा। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह से आधा घंटा चर्चा करने के बाद कहा कि हम चाहते हैं कि ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव हों।

निकाय चुनाव : आरक्षण से उलझा पेंच

जहां तक नगरीय और पंचायत राज संस्थाओं के चुनावों का सवाल है तो संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन का असली मकसद अधिकार सम्पन्न स्थानीय निकायों की स्थापना का रहा है। पूरे देश में पंचायती राज व नगरीय निकाय की व्यवस्था में एकरुपता लाने के साथ ही साथ हर पांच साल में चुनाव कराना इसका महत्वपूर्ण लक्ष्य था, लेकिन यह देखने में आया है कि कई राज्यों ने किसी न किसी कारण से चुनावों को टाल कर, यदि यह कहा जाए कि आम आदमी को सशक्त बनाने की प्रक्रिया को ही बाधित करने की कोशिश की है। यह स्थानीय स्तर पर नजर डालने से स्पष्ट हो जाता है। कोई भी राजनीतिक दल इसका अपवाद नहीं है, हर राजनीतिक दल व उनकी सरकारें ऐसे प्रयासों में शामिल हैं।

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जहां तक महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में इन चुनावों का सवाल है यह ओबीसी आरक्षण के कारण ही बाधित हुए हैं। जहां तक देश की सबसे बड़ी अदालत का सवाल है उसे अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन आरक्षण के लिए वह जिन कसौटियों व जातियों की आर्थिक व सामाजिक स्थितियों को परखना चाहता है वह राजनीतिक दलों के लिए असुविधाजनक लगती है। देश में हर साल 24 अप्रैल को पंचायत राज दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन 1994 में पूरे देश में पंचायत राज कानून लागू किया गया था। इसका उद्देश्य लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने का भी था, यही कारण है कि लोकसभा व विधानसभा की तरह ही पंचायत राज संस्थाओं व नगरीय निकाय के हर पांच साल में चुनाव कराने की बाध्यता रखी गयी।

अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं की भागीदारी को आरक्षण के जरिए सुनिश्चित किया गया। इन संस्थाओं को वित्तीय व प्रशासनिक अधिकार भी दिए गए, इसके चलते ही सांसद व विधायक से ज्यादा अधिकार जिला पंचायत के अध्यक्ष को मिल गए। इन अधिकारों के चलते ही कई राज्यों ने गैर दलीय आधार पर पंचायत चुनाव कराये जाने की व्यवस्था को लागू किया। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि दल के अन्दर उपजने वाले असंतोष को रोकना। जबकि प्रत्यक्ष तौर पर यह दलील सामने आई कि दलीय आधार पर चुनाव होंगे तो ग्रामीण सामाजिक ढांचे पर इसका विपरीत असर होगा। अलग-अलग राज्य सरकारों ने अपनी सुविधा अनुसार बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था कर दी।

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पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाकर कमलनाथ सरकार ने कर दिया था लेकिन बढ़े हुए आरक्षण के अनुसार सरकारी भर्तियां भी नहीं हो रही हैं और न ही उस आधार पर निकाय चुनाव हो पा रहे हैं। इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की 50 प्रतिशत की जो सीमा निर्धारित की थी वह आरक्षण बढ़ाये जाने के कारण उससे अधिक हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में केवल सामाजिक-आर्थिक स्थिति के तथ्यात्मक आंकड़े मांग रहा है।

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राजनीतिक दल व राज्य सरकारें चुनावी लाभ के लिए कागजी आंकड़े पेश कर रही हैं, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मध्यप्रदेश सरकार का है जहां उसने आनन-फानन में एक आयोग का गठन किया और वोटर लिस्ट के आधार पर 48 प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या का अनुमान पेश करते हुए 37 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर डाली। सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए बिना ओबीसी आरक्षण के दो सप्ताह के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया आरंभ करने को कहा है।

और यह भी
ओबीसी आरक्षण को समाप्त करने के फैसले के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा है कि यह पिछड़ा वर्ग विरोधी है और इसने ही जानबूझ कर मामले को उलझाया है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री व पिछड़ा वर्ग के नेता अरुण यादव का आरोप है कि भाजपा की मंशा ही आरक्षण समाप्त करने की है।