भाजपा में दलबदलुओं की भीड़; ‘कचरा’ साबित होगी या ‘कंचन’!

तो क्या अपराधियों के लिए 'सेफ हैवेन' है भाजपा!

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भाजपा में दलबदलुओं की भीड़; ‘कचरा’ साबित होगी या ‘कंचन’!

जयराम शुक्ल की खास राजनीतिक रिपोर्ट 

दूसरी पार्टियां(मुख्यतः कांग्रेस) छोड़कर आए नेताओं/कार्यकर्ताओं की भर्ती को लेकर ग्वालियर में जब भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं ने अपने भविष्य के बारे में जानना चाहा तब गृहमंत्री अमित शाह ने बहुत ही वस्तुनिष्ठ जवाब दिया।

 

उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से सीधे संवाल किया- यहां उपस्थित वे कार्यकर्ता हाथ उठाएं जो दस वर्षों से संगठन में काम कर रहे हैं और उन्हें फिर भी कुछ नहीं मिला? जवाब में 99 प्रतिशत कार्यकर्ताओं ने हाथ खड़ा कर दिए। जब दस वर्षों में आपको कुछ नहीं मिला तो जो आज आए हैं उन्हें क्या मिलेगा समझ लीजिए। बस लगे रहिए।

 

अब बड़ा सवाल यह कि बड़ी संख्या में भाजपा में हुई यह भर्ती ऐन चुनाव में बोझ बनेगी या सहूलियत? इसकी पड़ताल करेंगे लेकिन पहले आंकड़ों के दावे समझ लेते हैं।

 

न्यू ज्वाइनिंग कमेटी के संयोजक डा. नरोत्तम मिश्रा दावा करते हैं- अकेले भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल को 1.26 लाख कार्यकर्ता अन्य दल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए इनमें 40 प्रतिशत कांग्रेस के हैं। और इस तरह अब तक के अभियान की बात करें तो यह संख्या 1.60 के पार जाती है। भाजपा द्वारा जारी किए गए प्रेसनोट को आधार बनाकर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी लेखा लगाते हैं कि वास्तव में मात्र 350 कांग्रेस कार्यकर्ता थे और इनके जाने से कचरा ही साफ हुआ। यानी कि पटवारी पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी समेत 3 सांसद 2 महापौर और 13 पूर्व विधायकों को कचरे की श्रेणी में रखते हैं।

 

पटवारी कहते हैं कि कहने को क्या भाजपा इन आंकड़ों को 50 लाख भी बता सकती है। पर ऐन चुनाव पर कांग्रेस का शिराजा कैसे बिखरता जा रहा है यह पटवारी के कलेजे की हूक ही बताएगी।

 

दलबदलुओं को लेकर ये क्या कह रहे हैं नेता गण

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पटवारी ने पार्टी त्यागी नेताओं को फालतू का कचरा कहा तो प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री प्रह्लाद पटेल ने जरा इसे और स्पष्ट कर दिया। श्री पटेल कहते हैं- हमारे मोदीजी ने कचरे के तीन डिब्बे रख रखे हैं, एक में सूखा कचरा, दूसरे में गीला कचरा तीसरे में मेडिकल वेस्ट। यानी कि सबका मुकम्मल ठौर ठिकाना है।

 

एक दूसरे बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय फरमाते हैं कि भाजपा के पास ऐसी वैक्सीन है कि उनकी डोज मिलते ही सबके सब असली भाजपाई हो जाएंगे।

 

अब कचरे के सवाल पर इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार डा.प्रकाश हिन्दुस्तानी व्यंग करते हैं कचरा भी उपयोगी होता है खाद उसी से बनती है। क्या साबुत, क्या कचरा सबके सब काम के हैं वैसे भाजपा भी तो अपने कइयों को डस्टबिन में डाल चुकी है मध्यप्रदेश में ही देखें प्रज्ञाजी, उमाजी और भी कई..।

 

डा.हिन्दुस्तानी मूल बात पर आते हैं कोई परिवार छोड़कर गया तो घर ताकत कम तो होती ही है। और आज की भाजपा आधुनिक पार्टी है उसका प्रबंधन कार्पोरेट हाउस की भांति है, सबके सब एडजस्ट हो जाएंगे।

 

मोदी जी जब नाले की मीथेन से ईंधन बनाने की बात करते हैं तो समझ लीजिए हर कोई उनके काम का है।

 

वैसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव कहते है- दूसरे दलों से आने वाले भाजपा में वैसे ही घुल-मिल जाएंगे जैसे कि पानी में शक्कर।

 

तो क्या अपराधियों के लिए ‘सेफ हैवेन’ है भाजपा!

 

 

उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक हर कहीं से विपक्ष एक स्वर में कहता है कि भाजपा में वही जा रहे हैं जो काले कारोबारी हैं, जेल जाने का भय है, ईडी, सीबीआई, आईटी का डर सताता है। जितने भी बड़े नेता गए उनमें 11 के करीब तो पूर्व मुख्यमंत्री हैं सबके सब कहीं फंसे हुए थे।

 

अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल यह सब जानते हुए भी काले कारोबारयों को अपने यहां नेता के रूप में पाल रहे थे ?

 

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेता व उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल कहते हैं- विपक्षियों का क्या बस खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। श्री मोदी के नेतृत्व में देश वैश्विक ताकत बन चुका है। राममंदिर में रामलला बिराज चुके हैं। अन्य राजनीतिक दल वैचारिक तौर पर दीवालिया हो चुके हैं। उनके नेताओं पर विश्वास बचा नहीं इसलिए वे भाजपा से जुड़ रहे हैं। भाजपा का ह्रदय विशाल है जब वह वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है तब तो जो दल छोड़ कर आ रहे हैं वे भी हमारे अपने ही हैं बस अबतक गलत जगह में थे।

 

प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्रा ऐसे दल-बदल को एक्सटार्शन कहते हैं- हां यह भयादोहन है, एक तरह से मनोवैज्ञानिक आतंकवाद।

 

लेकिन भाजपा के लीगल सेल से जुड़े एक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी कहते हैं कोई अपराधी किसी भी पार्टी की छतरी ओढ़कर कैसे बच सकता है, कानून बिना पक्षपात अपना काम करेगा। हमारे देश का न्यायतंत्र स्वतंत्र है कोई जाकर फरियाद कर सकता है।

 

ये ‘कचरा’ साबित होंगे या ‘कंचन’!

 

ऐसा सवाल उठाने वाले अन्य दलों से ज्यादा भाजपा में ही हैं। ज्यादातर पुराने कार्यकर्ता अब अपने अस्तित्व को लेकर असुरक्षा की भावना से भर गए हैं।

 

जबलपुर के एक पूर्व महापौर कहते हैं कि हमारी भूमिका अब पोछा लगाने, उसपर दरी गद्दा बिछाने, पुष्प वर्षा करके स्वागत करने तक रह गई है। अभी से वे मेरे जैसों को रीति-नीति समझाने लगे हैं। कहने का आशय यह भी कि धन का रसूख अब अपनी पार्टी में भी हावी होता हुआ दिखता है।

 

लेकिन भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र सिंह इससे इत्तेफाक नहीं रखते। सिंह कहते हैं- भाजपा के भीतर एक फिल्टर प्लांट है, सबको गुजरना होगा। जो पार्टी की रीति-नीति में रहे आए वे पार्टी के, जो बचे वे चाय की पत्ती की भांति छानकर नाली नर्दे में जाएंगे।

 

ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़े उदाहरण है चार साल के भीतर ही वे पार्टी की रीति नीति में जज्ब होकर शुद्ध भाजपाई बनकर निखर चुके हैं। भले ही कोई कुछ कहे पर अब उनके कोई पट्ठे नहीं, सभी भाजपा के कार्यकर्ता हैं।

 

भाजपा प्रदेश कार्यालय में संगठन का काम देखने वाले एक बुजुर्ग नेता कहते हैं- दूसरी पार्टी से आए लोगों की वजह से भाजपा को असम, नार्थ ईस्ट, कर्नाटक, पं.बंगाल साधने में मदद मिली। उत्तरप्रदेश में भाजपा को जो स्थायित्व मिला उसमें दूसरे पार्टी से आए लोगों का योगदान है। रही बात मध्यप्रदेश की, तो सिंधिया का प्रकरण सामने है। और जो अब आ रहे हैं उनसे भाजपा में एक माहौल तो बना ही है।

 

सत्ता का अहंकार सिर चढ़कर न बोलें

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भाजपा का जो वातावरण बना है वह यथार्थ के धरातल पर उतरेगा ही यह कहना इतना आसान नहीं । जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार चैतन्य भट्ट कहते हैं- 2004 में साइनिंग इंडिया का माहौल बना था। नेता, अभिनेता, कारोबारी सभी भाजपा में भर्ती हो रहे थे लेकिन चुनाव में क्या हुआ- सरकार यूपीए की बन गई। अटल जी की जगह सरदार मनमोहन सिंह आ गए। भट्ट कहते हैं कि भाजपा को प्रचार के अतिरेक से बचना होगा। ऐसी स्थिति घातक हो है जब असली भाजपाई भी एरीटेट होने लगे। वे बताते हैं कि महाकोशल के वरिष्ठ भाजपा नेता अजय विश्नोई कहते हैं- हमारी मजबूरी है लेकिन क्या करें एक संदेश तो देना ही है कि कांग्रेस की जड़ें जमीन से बुरी तरह उखड़ रही हैं।

 

शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव का मानना है कि भाजपा में ज्यादातर आकांक्षी लोग ही आ रहे हैं। इनमें से बहुसंख्य चुनाव बाद ही लौटना आरंभ कर देंगे। इनपर विश्वास करना भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने जैसा ही होगा। भार्गव इन्हें भाजपा के लिए तात्कालिक सहूलियत और दीर्घकालिक बोझा ही मानकर चल रहे हैं।