Jhooth Bole Kouwwa katen! झूठ बोले कौआ काटे !
सीएम सिटी गोरखपुर से लेकर लखीमपुर खीरी तक दहला हुआ है। चुनाव की दहलीज पर बैठे उत्तर प्रदेश में वोटों की खेती के लिए मौका ताड़ रही पार्टियों और नेताओं की तो जैसे बल्ले-बल्ले हो गई। हालांकि, इन मुद्दों को भुनाने में जितनी तेजी विपक्ष ने दिखाई उससे अधिक तेजी इनकी हवा निकालने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिखाई।
पीड़ित पक्षों को तत्परता से संतोषजनक समाधान के रास्ते पर ले आए, और बवाल की आंच पर रोटी सेंकने की मंशा, यदि कोई थी, पर हर बार तत्काल तो पानी फेर ही दिया। राज्य सरकार ने कहा कि “विपक्षी दलों का 2022 के विधानसभा चुनाव का सफर लाशों पर नहीं हो सकता”। हांलाकि यह तो वक्त बताएगा कि किसने कितना और कैसा सफर तय किया? मध्य प्रदेश के मंदसौर कांड की तरह विपक्ष के हाथ मुद्दा तो लग ही गया है।
सच यह भी है कि इन घटनाओं ने सरकारी तंत्र के ढीले नट-बोल्टों, इंटेलीजेंस और नेताओं के बड़बोलेपन की कलई खोल दी, साथ ही एक बार फिर लालकिला कांड की तरह किसानों की आड़ में अराजक तत्वों के नापाक इरादों का भंडा फोड़ दिया। उधर, वाद-विवाद के बीच सर्वोच्च न्यायालय ने मामले का स्वतः संज्ञान ले लिया है।
3 अक्टूबर को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के लखीमपुर स्थित तिकुनिया गांव में उनके पिता जी की स्मृति में दंगल था, जिसमें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को शामिल होना था। उनके लिए तिकुनिया से 3 किलोमीटर पहले हेलीपैड बनाया गया था, जहां किसानों ने सुबह से कब्जा कर लिया था। किसान दंगल में नेताओं के आने का उग्र विरोध कर रहे थे। आशंका है कि दंगल के अमंगल बनने की बुनियाद वहीं से पड़ी।
आरोप है कि डिप्टी सीएम को लेने जाने के दौरान मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा और किसानों के बीच विवाद हो गया। इसी दौरान मंत्री के बेटे ने कथित तौर पर उग्र भीड़ पर गाड़ी चढ़ा दी। चार किसानों की घटनास्थल पर या अस्पताल में मौत हो गयी। उधर, उग्र भीड़ के सदस्यों ने गाड़ी में मौजूद तीन भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों और ड्राइवर को सड़क के किनारे लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला। सांसद के बेटे आशीष मिश्रा की गाड़ी और एक अन्य कार में आग लगा दी। इस घटना में रमन कश्यप नाम के एक युवा पत्रकार को भी जान गंवानी पड़ी।
खालिस्तानी एंगल
इस बवाल का चौंकाने वाला तथ्य है, किसानों के बीच भिंडरावाला की टी शर्ट पहने मौजूद प्रदर्शनकारी। सोशल मीडिया पर वायरल फोटो न्यूज एजेंसी पीटीआई की ओर से जारी की गई। प्रमुख मीडिया संस्थानों ने घटना की कवरेज में इस तस्वीर को प्रकाशित किया है। तस्वीर का बैकग्राउंड घटनास्थल से मेल खाता है।
लोग इसी साल गणतंत्र दिवस की घटना नहीं भूले होंगे। जब किसान रैली के दौरान हुए रोंगटे खड़े करने वाले उपद्रव के समय लाल किले की प्राचीर पर सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब तक फहरा दिया गया था। ऐसे में खीरी के उपद्रव में भी खालिस्तानी एंगल का जुड़ना खतरनाक संकेत है। मानना होगा कि इस बार भी इंटेलीजेंस फेल हुई।
सचमुच, अगर ये किसान आंदोलन था तो लाठी, डंडे, तलवारें आदि अचानक कहां से आ गईं? गाड़ी में आग लगा दी गई और किसी को जिंदा नहीं छोड़ा। घटना के पश्चात् मोबाइल से बनाये गए अनेक वीडियो जस के तस सोशल मीडिया पर वाइरल हो गए। आशीष मिश्रा को एफआईआर में नामजद किया जा चुका है, हांलाकि उनका दावा है कि वे गाड़ी मे या घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। पुलिस के अनुसार आशीष मिश्रा फरार हैं।
अब पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्री टेनी के घर के बाहर नोटिस चस्पा कर उनके बेटे आरोपी आशीष मिश्रा को 8 अक्टूबर को पेश होने के लिए कहा है। साथ ही दो लोग गिरफ्तार भी किये गए हैं। पुलिस को घटनास्थल से खाली कारसूतस भी मिले हैं, जिनकी फॉरेंसिक जांच की जाएगी।
भाजपा समर्थक सवाल उठा रहे थे कि कहां है लोगों को रौंदने वाला वीडियो? जवाब में कांग्रेस-आम आदमी पार्टी आदि ने 30 सेकंड का जो वीडियो वाइरल किया वो सचमुच दिल दहलाने वाला है। एक नजर में लगता है कि लोगों को पीछे से रौंदने वाले गाड़ी के ड्राइवर को शायद फांसी की सजा ही मिलती यदि वह जीवित होता। यदि उसने जानबूझ कर ऐसा किया था। लेकिन इस वीडियो पर बारीकी से गौर करने के बाद कुछ प्रश्न भी स्वतः स्फूर्त जन्म लेते हैं।
गाड़ी के आगे और पीछे के शीशे टूटे हुए कैसे थे? क्या इस वीडियो के पहले गाड़ी पर हमला हुआ था और गाड़ी में बैठे लोगों ने बच निकलने के लिए गाड़ी भगाई? लोग रौंदे गए और सवार भी अपनी जान नहीं बचा सके। माना कि गाड़ी चढ़ाने वाला हैवान था तो हमलावर भी शैतान थे। चर्चा भी है कि यह वीडियो संपादित करके जारी किया गया है।
लेकिन अब एक और वीडियो वाइरल हुआ है। 45 सेकेंड के इस वीडियो में काले झंडे लिए किसान सड़क पर आगे की ओर बढ़ते दिख रहे हैं और उसी दौरान थार गाड़ी काफी तेज स्पीड के साथ उन्हें रौंदते हुए निकल जाती है। हमला करने वाली गाड़ी के साथ काफिले में शामिल दो और गाड़ियां तेजी से निकलती हैं। इन वीडियोज की सत्यता जो भी हो, घटना से इनकार नहीं किया जा सकता।
सिस्टम के ढीले नट-बोल्ट
इसके पूर्व, सीएम सिटी गोरखपुर जिले में कानपुर के प्रापर्टी डीलर मनीष गुप्ता हत्याकांड के 72 घंटे के भीतर एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आ गई। जिस रामगढ़ताल थाने की पुलिस ने मनीष गुप्ता को कथित तौर पर पीटकर मारा डाला, उसी थाने से महज 200 मीटर दूर स्थित मॉडल शॉप कर्मचारी की मनबढ़ों ने पीटकर हत्या कर डाली। जबकि दूसरा गंभीर रुप से घायल है।
खैर, पहले तो गोरखपुर पुलिस मनीष गुप्ता की हत्या हुई, मानने को ही तैयार नहीं थी। लेकिन मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस प्रशासन के दावों की पोल खोल दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनकी बर्बरता से पिटाई की गई थी। उनके शरीर पर गंभीर चोट के निशान मिले। वहीं सिर पर गहरी चोट भी लगी थी। इस मामले की एफआईआर लिखने में भी काफी हीलाहवाली की गई।
मनीष की पत्नी मीनाक्षी से अधिकारियों की कई दौर की वार्ता के बाद तीन नामजद व तीन अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया गया। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मिलने के बाद बातचीत से संतुष्ट मीनाक्षी गुप्ता ने कहा कि वे इस मामले में इंसाफ और दोषी पुलिसकर्मियों को फांसी की सजा चाहती हैं। उनके पति की हत्या के मामले में राजनीति न की जाए। सो, राजनीति की यहां भी हवा निकल गई।
सिपाही से आउट आफ टर्न इंस्पेक्टर बना जेएन सिंह
रामगढ़ताल इंस्पेक्टर जगत नारायन सिंह गोरखपुर में सिपाही के रूप में कार्यरत था। बताया जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान उसने चार बदमाशों पर गोली चलाई और कमाल यह कि चारों गोलियां ठीक बदमाशों के पैर में लगीं, ना इधर ना उधर।
और इतने बहुत सारे इत्तेफाक की वजह से उसे सिपाही से आउट आफ टर्न प्रमोशन देकर इंस्पेक्टर बना दिया गया। एसटीएफ में रहने के दौरान भी उसने करीब 9 बदमाशों को मुठभेड़ में मार गिराया। चर्चा हैं कि महकमे के बड़े अधिकारियों से उसकी काफी अच्छी सेटिंग है।
झूठ बोले कौआ काटे
कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते और यह भी सही है कि झूठ बोलने पर कौआ को काटते हुए कभी नहीं देखा गया। तो, राजनीति और नेताओं पर यह मुहावरा बिल्कुल फिट बैठता है। योगी सरकार का इकबाल दिखता है, महसूस होता है, ये सब मानते हैं। बड़े-बड़े दबंगों को उनकी औकात दिखाने वाली योगी सरकार के आंकड़ों से अलग राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के आंकड़े कुछ और कहानी कहते नज़र आ रहे हैं।
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केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 2020-2021 में देश भर में पुलिसवालों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की 11 हजार 130 शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से 5388 शिकायतें उत्तर प्रदेश की पुलिस के खिलाफ थीं। बीते 3 साल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस क्रूरता के 784 मामलों में 20.42 करोड़ रुपए का मुआवजा देने की सिफारिश की थी। इसके अलावा 48 मामलों में अनुशासनात्मक कार्रवाई और एक मामले में मुकदमा चलाने की सिफारिश की गई थी। इस साल फरवरी में संसद में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने कांग्रेस सांसद राजीव सातव के एक सवाल के जवाब में ये जानकारी दी।
उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग में मानवाधिकार उल्लंघन की कुल 22,655 शिकायतें एक अप्रैल -2017 से लेकर 30 नवंबर -2017 तक आई थीं। इनमें पुलिस महकमें के खिलाफ 12,771 शिकायतें थीं। यानी कुल शिकायतों में 56 फीसदी से ज्यादा शिकायतें सिर्फ पुलिस के ही खिलाफ हैं। एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट में देश में कुल 42,54,356 अपराध दर्ज हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश के 3,55,110 अपराध शामिल हैं। देश में हुए कुल अपराधों की तुलना में उत्तर प्रदेश में 8.34 फीसदी अपराध हुए।
योगी सरकार की हनक देखकर इन आंकड़ों को मानने का जी नहीं करता है। शायद यह तस्वीर का एक पहलू है। झूठ बोले कौआ काटे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कड़क छवि को जानने वाले मानते हैं कि ऐसे आंकड़ों का एक बड़ा कारण योगीराज में पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली में बढ़ी पारदर्शिता है। योगी के जनता दरबार में हर बार आने वाली सैकड़ों शिकायतें सिस्टम को सुननी-दर्ज करनी पड़ती ही हैं। लेकिन वोट की राजनीति में बड़ा खेला है।
नेता, विशेषकर सत्ता के मद में कई बार मंत्री-पार्टी पदाधिकारी कुछ ऐसा बड़बोलापन कर जाते हैं कि वो सत्ता और कुर्सी पर भारी पड़ जाता है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बारे में भी आरोप है पिछले दिनों कि उन्होंने किसानों को धमकाने वाली बयानबाजी की थी। कहीं हनक में सनक तो नही गए थे आरोपित? या किसानों के बीच उपस्थित अराजक तत्वों ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दीं कि एक दर्दनाक घटना ने जन्म ले लिया। मध्य प्रदेश के मंदसौर में भी 2 वर्ष पूर्व बड़ा उग्र किसान आंदोलन चल रहा था।
उसी दौरान पुलिस और किसान आमने-सामने हो गए। 6 जून, 2017 को पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें 6 किसानों की मौत हो गई। कांग्रेस इसी मुद्दे को विधानसभा चुनाव में लपक कर मप्र में कमलनाथ की सरकार बनवाने में सफल हो गई थी। इसीलिए, कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे की खेती करने में जी-जान से जुट गई हैं। बोले तो, झूठ बोले कौआ काटे!