Desmostachia Bipinnata:मान्यता है कि कुशा के बिना श्राद्ध कर्म पूरा ही नही हो सकता ,आइये जानते हैं क्या है कुशा ?
सीता जी ने एक कुशा के तिनके से रावण को अपने निकट आने से रोक दिया था
डॉ. विकास शर्मा
कुश, कुशा या दर्भ एक पवित्र घास है, सनातनी परिवारों में पूजा पाठ के लिए कुशा का प्रयोग किया जाता है, किन्तु फिर भी कुशा की पहचान को लेकर हम आश्वश्त नही रहते…
आइये जानते हैं कि कुशा का पौधा कैसा होता है और क्या है कुशा का महत्व? किन्तु कुशा का केवल धार्मिक महत्व ही नही है बल्कि इसका सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।
धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। ऐसी मान्यता है कि कुशा के बिना श्राद्ध कर्म पूरा ही नही हो सकता है। कुशा एक प्रकार की घास है। जो पोएसी कुल का सदस्य है। किंतु धार्मिक ग्रंथों में घास परिवार के 10 सदस्यों को कुशा की श्रेणी में रखा गया है, अलग अलग क्षेत्र में उपलब्धता के आधार पर इन सभी का प्रयोग प्रचलन में किन्तु सर्वोत्तम कुशा दर्भ को माना गया है, जिसका वैज्ञानिक नाम Desmostachya bipinnata या Eragrostis cynosuroides है। इसके कई और समानार्थी भी हैं जो भी शंशय का एक मुख्य कारण है। एक श्लोक से इस बात की पुष्टि होती है।
कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा: ।।
अर्थात कुशा दस प्रकार की होती है – काशा, यवा, दूर्वा, उशीर, सकुंद, गोधूमा, ब्राह्मयो, मौंजा, दश, दर्भा। इनमें से जो भी मिल जाए, उसे पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
कुशा का संग्रहण करना कब शुभ होता है?
कुशा का संग्रहण एक खास दिन किया जाता है। जिसे कुश गृहणी अमावस्या या पिठौरी अमावस्या कहते हैं। यह भादो मास की कृष्ण पक्ष को आने वाली अमावस्या है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिए उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।
औषधीय महत्व:
कुशा की जड़ से मूत्र संबंधी रोग, पाचन संबंधी रोग और प्रदर रोग में लाभ होता है। कुशा की पवित्रता सिर्फ धार्मिक और पौराणिक नही है बल्कि वैज्ञानिक भी है। कुशा की जड़ डालकर रातभर के लिए रखा गया जल प्रातः पीने से मूत्र संबंधी विकारों में आराम मिलता है। इसकी जड़ो में जल शुद्धिकरण की कमाल की क्षमता पाई जाती है। artificial wetlands या root zone technology विषय को पढ़कर इस मामले में जिज्ञासा शांत की जा सकती है।
पौराणिक महत्व:
कुशा की शक्ति के विषय मे धर्म ग्रंथो में भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। रामायण में उल्लेख मिलता है कि सीता जी ने एक कुशा के तिनके से रावण को अपने निकट आने से रोक दिया था। आगे चलकर माता सीता ने अपने पुत्र का नाम कुश रखा। महाराज कुश के वंशज ही आगे चलकर कुशवाहा कहलाये ऐसी मान्यता है। प्राचीन दस्तावेजों में भी हिन्दुकुश पर्वत का उल्लेख मिलता है। संभवतः वहाँ कुशा वनस्पति की अधिकता रही होगी।
एक अन्य विवरण अनुसार गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है। इसीलिये कुशा को पवित्र मानकर इसका प्रयोग धार्मिक व पूजन कार्यो में किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसी भी मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आती है तो कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है।
योग एवं ध्यान में महत्व:
योग साधना व पूजन कार्यो में कुशा की चटाई पर बैठना उत्तम माना जाता है। कुशा विद्युत की कुचालक होती है तो योग व ध्यान के समय शरीर की ऊर्जा पृथ्वी में समाहित नही होती है। पुराने समय मे राजा महाराजा व ऋषि मुनि भी कुशा के आसन पर बैठते व शैया पर शयन करते थे।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)