Don’t Challenge Voters : भाजपा अपने दावों में वोटरों को तो चैलेंज न करें!

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Don’t Challenge Voters : भाजपा अपने दावों में वोटरों को तो चैलेंज न करें!

वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक समीक्षक और ‘मीडियावाला’ के संपादक हेमंत पाल का विश्लेषण

चुनाव की नजदीकी को देखते हुए हर पार्टी अपनी जीत और मिलने वाली सीटों की संख्या के दावे करने से नहीं चूकती। यहां तक कि मंच से मिलने वाला वोट प्रतिशत तक बता दिया जाता है। दरअसल, ये नेताओं का आत्मविश्वास होता है। लेकिन, यदि ऐसे दावों में ‘दंभ’ नजर आए, तो वो नुकसान देता है। पार्टियां अपने आत्मविश्वास को बढ़ा-चढ़ाकर उसे अति-आत्मविश्वास की सीमा तक ले जाकर अपनी बात कहती हैं। परंतु, यदि उनकी बातों में दंभ छुपा हो, तो वो मतदाताओं को भी रास नहीं आता! इन दिनों ऐसा ही कुछ माहौल है।

भाजपा के नेता पिछले कुछ सालों से अपने चुनावी भाषणों में वादों के साथ अपने दंभ का दिखावा करते आए हैं। उनका यह अति-आत्मविश्वास और उसके साथ ‘दंभ’ जैसा प्रदर्शन भारी पड़ रहा है। इसलिए कि चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां वोटरों के सामने याचक होती हैं। वोटरों को दंभ नहीं दिखाया जा सकता। चुनाव में सीटें जीतने के दावे करना अलग बात है, पर सीटों के आंकड़े कई बार उल्टे पड़ जाते हैं। पिछले चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सीटें जीतने के ऐसे ही आंकड़े दिए गए थे। उसके बाद कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में भी सीटों की जीत के ऐसे ही दावे किए, जो बाद में सही नहीं निकले। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में भी चुनाव हुए। वहां भाजपा आसमान फाड़ बहुमत से जीती। लेकिन, वहां की बात अलग थी। उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने कोई ताकतवर प्रतिद्वंदी पार्टी नहीं थी, जो भाजपा को चुनाव में बराबरी की टक्कर दे सके। बाकी राज्यों में यह स्थिति नहीं है।

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साल के अंत में कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को भी राज्यों में बराबरी की प्रतिद्वंदी पार्टियों के सामने उतरना है। जहां तक दावों की बात है, तो भाजपा ने कर्नाटक चुनाव में भी यही किया। हर नेता ने 150 सीटों का दावा किया। लेकिन, जब नतीजे आए तो पार्टी दो अंकों से आगे नहीं बढ़ सकी। अब उसी तरह का दावा मध्यप्रदेश के लिए भी किया जा रहा है। भाजपा का नारा है ‘अबकी बार 200 पार!’ यहां तक कि पार्टी 51% वोट मिलने का भी दावा करने से नहीं चूक रही। पार्टी के नजरिए से यह गलत नहीं है। हर पार्टी को अपनी बात का दावा करने का पूरा हक़ है और यही लोकतंत्र भी है। लेकिन, ऐसे में वोटर को लगता है कि फिर मैं कहां हूँ, जबकि वोट मुझे देना है और कौन सी पार्टी सरकार बनाएगी, ये तय करना मेरा काम है!

मुद्दा यह है कि भाजपा के इस दावे में जो दंभ दिखाई दे रहा है, वो मतदाताओं को कहीं न कहीं प्रभावित कर सकता है। क्योंकि, चुनाव में सिर्फ पार्टी के कार्यकर्ता ही वोटर नहीं होते। असल वोटर तो आम जनता होती है। वह पार्टी के कामकाज, भविष्य की योजनाओं और उसके नेताओं के चरित्र का निर्धारण करते हुए वोट का फैसला करती है। किंतु, देखा जा रहा है कि भाजपा के नेता मंच पर दंभ के साथ ‘अबकी बार 200 पार’ का दावा करने से पीछे नहीं हट रहे! संभव है कि यह दंभ उन पर भारी पड़ जाए। सबसे बड़ी बात यह कि वोटरों के सामने इस तरह का दावा करना इसलिए ठीक नहीं, क्योंकि वोट तो वोटर्स को ही देना है। उन्हें कैसे भरमाया जा सकता है कि उनकी पार्टी कितनी सीटें जीत रही है।

यह पहली बार नहीं हुआ, जब भाजपा के नेता इस तरह का दावा कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भी पार्टी के बड़े नेताओं ने मध्य प्रदेश में 200 सीटों का दावा किया था। जबकि, पार्टी बहुमत लायक सीटें भी नहीं जुटा पाई थी। 2018 में ही छत्तीसगढ़ में 65 सीटें जीतने की बात कही गई थी, पर वहां भी पार्टी बहुमत से बहुत दूर रही। राजस्थान में 150 सीटों दावा किया था, लेकिन वहां भी पार्टी हार गई। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 200 सीट जीतने की बात बड़े दंभ से कही गई थी। पर, मामला दो अंकों में सिमटकर रह गया। ऐसे दिखावे करना स्वाभाविक है, इसमें कुछ भी गलत नहीं। पर, उस दावे में इतना घमंड तो नजर न आए कि ये वोटरों को उनके अधिकारों में हनन जैसा लगता है। क्योंकि, आखिर वोट तो वोटरों को ही देना है!

मध्यप्रदेश में भाजपा को सरकार में 18 साल से ज्यादा हो गए। इतने लंबे अरसे बाद यदि कोई पार्टी यह कहे अभी उसे कई काम करना बाकी है, तो यह बात गले नहीं उतरती। क्योंकि, 18 साल का समय बहुत लंबा होता है। 2004 में जब भाजपा मध्य प्रदेश की सत्ता में आई थी, तब जो बच्चे पैदा हुए थे, वे इस बार वोटर बन गए हैं और इस बार वोट डालने जाएंगे। आशय यह कि 18 साल में एक पूरी नई पीढ़ी खड़ी हो गई, लेकिन पार्टी के वादे पूरे नहीं हुए। इतने समय बाद भी पार्टी सीटों की संख्या के दावे करे, तो यह उसके पक्ष की बात नहीं कही जा सकती। चुनावी वादों और दावों में आत्मविश्वास जताना अलग बात है, पर सीटें जीतने की संख्या और वोट प्रतिशत के दावों को दंभ के साथ मंच से कहना किसी भी दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता।

Author profile
Hemant pal
हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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