मौसम की मार से, बेहाल होते किसान

खग की भाषा, खग ही जाने, किसान की व्यथा, किसान ही जाने.

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मौसम की मार से, बेहाल होते किसान

स्वदेश कुमार सिलावट की खास रिपोर्ट

मेरा सौभाग्य है कि बचपन से ही मेरे दोस्त किसान परिवार के रहे हैं. आज से करीब 50 साल पहले जब हम रतलाम में रहते थे, तब भी मैं किसानों से जुड़ा हुआ था. क्योंकि मेरे फादर वहां पर डॉक्टर होने के कारण कई किसान उन्हें बड़े आदर सत्कार के साथ अपने ग्राम में बुलाते थे एवं खेत पर दाल बाफला एवं मूंग का हलवा, जिसका स्वाद अद्भुत होता था. पार्टी देते थे, हमारा पूरा परिवार ऐसी पार्टियों में जाता था. उस समय डॉक्टरों के पास गाड़ी नहीं हुआ करती थी. क्योंकि शासकीय डॉक्टर उस समय प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करते थे. इसे एक पुण्य का कार्य मानकर लोगों की सेवा निशुल्क करते थे. इसलिए हम लोग किसी दूसरे विभाग, प्रायः कृषि या पीडब्ल्यूडी विभाग की जीप से गांव तक पहुंचते थे. वहां से गांव के किसान हमें ढोल-बाजे के साथ बेल गाड़ी पर बैठाकर बड़े आदर से अपने खेत ले जाते थे. और गांव के सभी बड़े, बूढ़े, सम्मानीय जन वहां पर एकत्रित होकर दुनिया जहान की चर्चा करते थे. जिसमें प्रायः खेती में होने वाले नुस्कान का अक्सर जिक्र होता था. उस समय मुझे समझ में नहीं आता था कि इतने बड़े-बड़े किसान, जिनके खेतों का दूसरा छोर दूर बागड़ पर लगे पेड़ों के अंदाज से ही दिखाई देता था। फिर उन्हें क्या क्षति होती है।

रतलाम में प्राइमरी शिक्षा के पश्चात जब मैं मिडिल शिक्षा हेतु उज्जैन पहुंचा तो वहां पर भी मेरा दोस्त रामचंदर ठेठ किसान परिवार का था. उनकी माली पूरे में हार फूल की दुकान थी. उनके फादर खेत में बहुत मेहनत करते थे. फूलों के साथ-साथ गेहूं की भी खेती होती थी. किंतु मौसम का दुखड़ा वह भी सुनाया करते थे. उस समय जब हम उनके खेत पर जाते थे तो लहराती फसल को देखकर मन में विचार आता था कि क्या क्षति होती होगी.

हायर सेकेंडरी पश्चात जब मैं कॉलेज की पढ़ाई हेतु टीकमगढ़ पहुंचा तब वहां के संपन्न किसान दिनेश मिश्रा, राजेश मिश्रा, अतुल मिश्रा सहित अन्य मेरे दोस्त बने. किसान के साथ-साथ सफल बिजनेस करने के कारण इन लोगों की माली हालत अत्यंत संपन्न थी. किंतु खेती से आने वाली क्षति को लेकर यह लोग भी कभी-कभी दुखड़ा सुनाया करते थे. यद्यपि उस समय खेती ट्रैक्टर से होने लगी थी, और इन लोगों के पास कई ट्रैक्टर भी थे. मैंने भी कई बार इन लोगों के ट्रैक्टर पर बैठकर खेतों में चलाया है. पर कहते हैं ना कि जिसके पैर न फटी पीर पवाई वह क्या जाने दूसरों का दर्द. किसी का दर्द महसूस करने के लिए लगातार उनके साथ रहना अत्यंत जरूरी है. अर्थात सतत निरीक्षण, अवलोकन की आवश्यकता होती है. इस समय तक भी इन लोगों का मौसम के प्रति दुखड़ा सुनकर मेरे मन में वही भाव रहता था कि, इतने संपन्न होने के पश्चात भी क्या क्षति होती होगी.

जनसंपर्क विभाग के सेवा में आने के पश्चात मुझे लंबे समय तक झाबुआ, बड़वानी जिले में रहने का मौका मिला. जहां पर प्रशासनिक व्यवस्थाओं के तहत कई बार किसानों का दुख-दर्द- जानने-सुनने, देखने को मिलता. किंतु उतनी पीड़ा कभी नहीं हुई, जितनी आज हो रही है. क्योंकि उस समय भी हम क्षणिक रूप से किसानों से जुड़ते थे, जिसके कारण उनकी बेहाल व्यवस्था, अवस्था का अंदाजा नहीं लगा पाते थे.

अब मैं शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त होकर भोपाल में बस गया हूं. जहां पर हमने घर बनाया है वह गांव ही है. हमारे घर के पीछे 20-20 एकड़ के 2 किसानों के खेत हैं.वैसे हमारे आसपास चारों तरफ किसानी ही किसान हैं. मेरे घर की छत से मुझे दूर-दूर तक खेत दिखाई पड़ते हैं. प्रतिदिन छत के ऊपर घूमने के कारण मैं, इन किसानों की फसल को निरंतर देखता रहता हूं. मेरे घर से बमुश्किल 20 फीट पीछे जिस किसान का खेत है, उसने बरसात के दिनों में सोयाबीन की फसल लगाई थी. पूरे वर्षा काल में अच्छा पानी गिरा, समय-समय पर होने वाली वर्षा के कारण किसान की सोयाबीन की फसल बहुत अच्छी दिखाई दे रही थी. मुझे पूरा विश्वास हो चला था कि इस किसान को अच्छा लाभ होगा. किंतु जब सोयाबीन में दाना बनने और पकने की बारी आई तो लगातार वर्षा का दौर प्रारंभ हो गया. जिससे सोयाबीन की पूरी फसल पीली पड़ गई, जिसके कारण मेरा अनुमान है कि दाने काले और मानक स्तर के नहीं रहे होंगे. जिससे किसान को उतना ही मुनाफा हुआ होगा जिससे वह दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर ले. यद्यपि मैंने किसान से कभी नहीं पूछा कि उसे कितना हानि, लाभ हुआ है. क्योंकि मैं उसके दुख को बढ़ाना नहीं चाहता था.

सोयाबीन काटने के पश्चात किसान ने पुनः मेहनत की. पूरे खेत में गुड़ाई करने के पश्चात उसने गेहूं की फसल लगाई. मैं प्रतिदिन छत पर घूमने के दौरान फसल को बढ़ते हुए देखता था, फसल की बढ़वार बहुत अच्छी थी. किसान भी उत्साहित था, समय-समय पर खेत में खाद-पानी हेतु सतत मेहनत करता था. मुझे पूरा विश्वास हो चला था कि इस बार, किसान को बहुत अच्छा उत्पादन मिलेगा. जिससे उसकी सोयाबीन में हुई क्षति की पूर्ति हो जाएगी. जब फसल हल्की पीली होने लगी, तब मुझे यकीन हो चला कि अधिकतम 20 दिनों में इस किसान की फसल कट जाएगी, और इस बार किसान को रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन मिलेगा. और किसान धन-धान्य से संपन्न हो जाएगा.

किंतु इस बार भी मुझे घोर आश्चर्य हुआ, होली के 2 दिन पहले मौसम में एकाएक परिवर्तन होने से चली हवा एवं वर्षा, ओला के कारण किसान के 20 एकड़ खेत में लगी गेहूं की फसल जमीन में पूरी तरह से लेट गई. किसानों से जुड़ा होने के कारण मैं समझ गया कि, इससे उत्पादन तो मिलेगा किंतु गेहूं के दाने की चमक एवं आकार पतला हो जाएगा. जिसके कारण इस किसान को दोहरी मार पड़ेगी, एक तो उत्पादन कम होगा, दूसरा उसका भाव भी कम मिलेगा.

किंतु किसान की लाचारी के बाद भी उसके द्वारा बार-बार खेतों में किए जाने वाली मेहनत से मुझे भी उसके साथ विश्वास है कि एक ना एक दिन इस किसान को जरूर लाभ होगा. किंतु लिखते हुए अत्यंत पीड़ा एवं संकोच है कि, यह लाभ उसे होने वाले उत्पादन की जगह बेचे जाने वाले खेतों से होगा. क्योंकि प्रॉपर्टी ब्रोकर्स उसकी जमीन पर नजर, कई दिनों से लगाए हुए हैं.

बेचारा किसान बार-बार मौसम की मार झेल कर कब तक प्रॉपर्टी ब्रोकरो के गिद्ध दृष्टि से बचा रह पाएगा. उसके पास कोई अलादीन का चिराग तो है नहीं, कि जो बोले, खुल जा सिम सिम और उसकी मनोकामना पूरी हो जाए.