End of atiq’s Terror : अतीक के आतंक का अंत, कैसे तांगे वाले के लड़के ने जुल्म की दास्तान लिखी!     

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End of atiq’s Terror : अतीक के आतंक का अंत, कैसे तांगे वाले के लड़के ने जुल्म की दास्तान लिखी!     

Prayagraj (UP) : उत्तरप्रदेश के सबसे बड़े गुंडे कहे जाने वाले अतीक अहमद की खौफ की दास्तान का आज अंत हो गया। उमेश पाल अपहरण कांड में उसे उसे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। जबकि, कई मामलों पर अभी फैसला होना बाकी है। जिस कोर्ट ने उसे सजा सुनाई, उस स्पेशल कोर्ट (एमपी-एमएलए) के प्रीसाइडिंग ऑफिसर जज दिनेश चंद्र शुक्ला, उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले हैं। इसलिए जरुरी है कि अतीक अहमद के मामलों सुनवाई से जज बचते थे। एक बार उसकी जमानत की सुनवाई से दस जजों ने इंकार कर दिया था।

एक जनवरी 1968 को जन्मे दिनेश शुक्ला ने 1982 में हाईस्कूल, 1984 में इंटरमीडिएट, 1986 में बी-कॉम, 1988 में एम-कॉम, 1991 में एलएलबी और 2014 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। दिनेश चंद्र शुक्ला ने साल 2009 बैच के न्यायिक अधिकारी हैं। 21 अप्रैल 2009 को उन्होंने भदोही के ज्ञानपुर में बतौर ज्यूडिशयल मैजिस्ट्रेट अपने करियर की शुरुआत की थी।

तांगेवाले का लड़का ऐसे बना गुंडा 

प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था। इलाहाबाद में उन दिनों नए कॉलेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे, खूब ठेके बंट रहे थे! नए लड़कों में अमीर बनने का चस्का लगना शुरू हो गया था। वो अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को उतारू थे। कुछ भी मतलब हत्या और अपहरण भी। इलाहाबाद में एक मोहल्ला है चकिया। साल था 1979 जब इस मोहल्ले का एक लड़का हाईस्कूल में फेल हो गया। उसके पिता इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे। अमीर बनने का चस्का उसे भी था। 17 साल की उम्र में हत्या का आरोप लगा और इसके बाद उसका धंधा चल निकला। खूब रंगदारी वसूली जाने लगी। नाम था अतीक अहमद यानी फिरोज तांगेवाले का लड़का।

चांद बाबा के खौफ का समय 

पुराने शहर में उन दिनों चांद बाबा का खौफ हुआ करता था। पुराने जानकार बताते हैं कि पुलिस भी चौक और रानीमंडी की तरफ जाने से डरती थी। अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला गया तो पिटकर ही वापस आता था। लोग कहते हैं कि उस समय तक चकिया के इस 20-22 साल के लड़के अतीक को ठीक-ठाक गुंडा माना जाने लगा था। पुलिस और नेता दोनों उसे शह दे रहे थे। वे चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाह रहे थे। इसके लिए खौफ के बरक्स खौफ को खड़ा करने की कवायद की गई और इसी कवायद का नतीजा था अतीक का उभार, जो आगे चलकर चांद बाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरनाक होने वाला था।

दिल्ली के फोन से अतीक को छोड़ दिया 

1986 में उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी। केंद्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। अब तक चकिया के लड़कों का गैंग चांद बाबा से ज्यादा उस पुलिस के लिए ही खतरनाक हो चुका था, जिसे पुलिस ने शह दी थी। अब पुलिस अतीक और उसके लड़कों को गली-गली खोज रही थी। एक दिन पुलिस अतीक को उठा ले गई। बिना किसी लिखा-पढ़ी के। थाने नहीं ले गई। किसी को कोई सूचना नहीं, लोगों को लगा कि अब काम खत्म है। परिचितों ने खोजबीन शुरू की। इलाहाबाद के ही रहने वाले एक कांग्रेस के सांसद को सूचना दी गई। बताया जाता है कि वह सांसद प्रधानमंत्री राजीव गांधी का करीबी था। दिल्ली से फोन आया लखनऊ और लखनऊ से फोन गया इलाहाबाद और फिर पुलिस ने अतीक को छोड़ दिया।

राजू पाल की हत्या के बाद बुरा दौर शुरू 

25 जनवरी, 2005 को विधायक राजू पाल के काफिले हमला किया गया। राजू पाल को कई गोलियां लगीं। फायरिंग करने वाले फरार हो गए। पीछे की गाड़ी में बैठे समर्थकों ने राजू पाल को एक टेंपो में लादा और अस्पताल की ओर लेकर भागे। फायरिंग करने वालों को लगा कि राजू पाल अब भी जिंदा है। एक बार फिर से टेंपो को घेरकर फायरिंग शुरू कर दी गई। करीब पांच किलोमीटर तक टेंपो का पीछा किया गया और गोलियां मारी गईं।

जब तक राजू पाल को जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया 19 गोलियां लगे राजू को डॉक्टरों ने मरा घोषित कर दिया। आरोप लगा अतीक पर। राजू की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद मुकदमा दर्ज करवाया। फरहान के पिता अनीस पहलवान की हत्या का आरोप राजू पाल पर था। 9 दिन पहले ही राजू की शादी हुई थी। बसपा समर्थकों ने पूरे शहर में तोड़फोड़ शुरू कर दी। बहुत बवाल हुआ। राजू पाल की हत्या में नामजद होने के बावजूद अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहे।

2005 में उपचुनाव हुआ। बसपा ने पूजा पाल को उतारा। सपा ने दोबारा अशरफ को टिकट दिया। पूजा पाल के हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी थी और वो विधवा हो गई थीं। लोग बताते हैं कि पूजा मंच से अपने हाथ दिखाकर रोने लगती थीं। लेकिन, पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला। लोग कहते हैं कि ये अतीक का खौफ था और अशरफ चुनाव जीत गया था।

माफिया वाली छवि बनी रही

अतीक भले ही नेता बन गया लेकिन वो माफिया वाली अपनी छवि से कभी बाहर नहीं आ पाया। बल्कि ये कहा जा सकता है कि सफेदपोश होने के बाद उसके अपराधों की संख्या में और तेजी आ गई। सियासत की आड़ में अतीक अपना अपराधिक साम्राज्य मजबूत करता रहा। यही वजह है कि उसके ऊपर दर्ज अधिकतर मुकदमे विधायक-सांसद रहते हुए दर्ज हुए। लोग कहते हैं कि वो अपने विरोधियों को छोड़ता नहीं है। 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या।

बताते हैं कि जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाने की कोशिश करता, मारा जाता। अतीक के खिलाफ सौ से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। अशरफ और अतीक दोनों को मिला दें तो दोनों पर 150 से अधिक मुकदमे हैं। उसके गैंग में 120 से अधिक शूटर रहे। इलाहाबाद के कसारी-मसारी, बेली गांव, चकिया, मारियाडीह और धूमनगंज इलाके इनके आपसी गैंगवार में अक्सर दहलते रहे।

मायावती का ‘ऑपरेशन अतीक’

साल 2007 में इलाहाबाद पश्चिमी से एक बार फिर पूजा पाल और अशरफ आमने-सामने थे। इस बार पूजा ने अशरफ को पछाड़ दिया। अतीक का किला ध्वस्त हो चुका था। मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर कर दिया। मायावती सरकार ने ‘ऑपरेशन अतीक’ शुरू किया। अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए गैंग का चार्टर तैयार हुआ। पुलिस रिकॉर्ड में गैंग का नाम दर्ज हुआ आईएस (इंटर स्टेट) 227, उस वक्त गैंग में 120 से ज्यादा मेंबर थे। 1986 से 2007 तक अतीक पर एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए।

अतीक पर 20 हजार का इनाम घोषित किया गया। उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गई। बिल्डिंगें गिरा दी गईं। खास प्रोजेक्ट अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्त कर दिया गया। इस दौरान अतीक फरार रहा। एक सांसद, जो इनामी अपराधी था, उसे फरार घोषित कर पूरे देश में अलर्ट जारी कर दिया गया। एक दिन दिल्ली पुलिस ने कहा कि हमने अतीक को गिरफ्तार कर लिया है। दिल्ली के पीतमपुरा के एक अपार्टमेंट से यूपी पुलिस आई और अतीक को ले गई, जेल में डाल दिया।

गढ़ बचाने का अंतिम मौका

2012 में अतीक अहमद जेल में था। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपना दल से पर्चा भरा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल के लिए अप्लाई किया। लेकिन, हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज सुनवाई के लिए राजी हुए और अतीक को बेल दे दी गई। अतीक के पास गढ़ बचाने का अंतिम मौका था। अतीक खुद पूजा पाल के सामने उतरा, लेकिन जीत नहीं पाया। राज्य में सपा की सरकार बनी और अतीक ने फिर से अपनी धमक बनाने की कोशिश की। इलाहाबाद के कसारी-मसारी इलाके में कब्रिस्तान की जमीन कब्जाने का आरोप लगा। आरोप हैं कि खुद खड़े होकर कई घर बुलडोजर से गिरवा दिए। जमीनों पर कब्जे के ऐसे खूब आरोप लगे। लेकिन, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से अतीक पर मुलायम हो गए। सुलतानपुर से टिकट दे दिया। विरोध हो गया पार्टी में, पर टिकट बरकरार रहा। हालांकि, सीट बदल गई और श्रावस्ती चले गए।

फूलपुर उपचुनाव हारा

2017 में जब योगी सरकार आई तो मारियाडीह डबल मर्डर की फिर से जांच शुरू हुई। पुलिस ने खुलासा किया तो सब चौंक गए। पुलिस ने आरोप लगाया कि अल्कमा की हत्या अतीक, अशरफ और आबिद प्रधान ने कराई है। दरअसल अतीक को लग रहा था कि अगर जाबिर चुनाव जीत गया तो उसका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। इसलिए अल्कमा को मारने की साजिश रची गई। अल्कमा ने गैर बिरादरी में शादी कर ली थी, इस कारण से आबिद प्रधान और उसका परिवार भी खफा था।

अतीक, अशरफ और आबिद ने एक तीर से दो निशाना लगाने की साजिश रची। बकरीद के अगले दिन मारियाडीह में अल्कमा की गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गई। अल्कमा और ड्राइवर सुरजीत की मौत हो गई, केस चलता रहा। इस बीच फूलपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव घोषित हो गए। इस सीट से बीजेपी सांसद केशव प्रसाद मौर्य यूपी के डिप्टी सीएम बन गए थे। सांसदी से इस्तीफा दे दिया था। जेल में बैठा अतीक भी वहां से निर्दलीय चुनाव लड़ गया और चुनाव हार गया।