भीषण गर्मी – विशेष आलेख:  हाय- गर्मी : जिम्मेदार कौन ?

भीषण गर्मी – विशेष आलेख:  हाय- गर्मी : जिम्मेदार कौन ?

यह ठीक है कि प्राकृर्तिक रूप से मौसम का मिजाज बदलता रहता है , सर्दी गर्मी बरसात के बीच बसंत , शरद पूर्णिमा , मकर संक्रांति , सावन – भादो , बैसाखी आदि के उत्सव पर्व आते हैं , पर बीते दो दशकों में ऋतु परिवर्तन चक्र में तेजी से बदलाव हुआ है । अब कभी भी कोई मौसमी चेंज हम देख और भोग रहे हैं । इसके दुष्प्रभाव प्राणी मात्र को भोगने पड़ रहे हैं पर हम हैं कि मानने – जानने – समझने – सुधरने को तैयार नहीं हैं ।

यही स्थिति रही तो जलसंकट के साथ पर्यावरण संकट गंभीर अवस्था में होगा ।

मौसम में स्वाभाविक चेंज होते ही हैं , यह जरूरी भी हर ऋतु की अपनी अहमियत है पर मानव द्वारा किया खिलवाड़ नुकसानदेह साबित होरहा है ।

कहावत प्रसिद्ध है कि “पग पग रोटी डग डग नीर ” से परिभाषित होने वाले मध्यप्रदेश के एक बड़े हिस्से की यह पहचान में अब मौसम बदल रहा है, मध्यप्रदेश ही नहीं मालवा निमाड़ सहित पूरे देश का चेहरा इस गर्मी में तमतमा रहा है।

अब हर साल मई-जून आते ही पारा बढ़ने पर अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सुर्खियां डराने लगी हैं। इस डर को बढ़ाने में बाजार के उत्पादों का खेल भी शामिल है। कहीं से तो पारा 47 डिग्री पहुँचने की खबर भी आई है । आने वाले दिनों में तापमान बढ़ने व ऑरेंज अलर्ट की चेतावनी लू को लेकर मौसम विज्ञान ने दी है। हर रोज एक नई खबर होती है कि फलां दिन अब तक सबसे गर्म रहा। इतने सालों का रिकॉर्ड टूट गया ।

निश्चित रूप से खेत में काम करते किसान, खुले में जीविका के लिए पसीना बहाते कामगार व आम नागरिकों के लिये यह चुनौतीपूर्ण समय होता है। बच्चों के लिये यह समय विकट जरूर होता है, जिसके चलते देश के लगभग सभी राज्यों में जून माह में बच्चों की छुट्टियां घोषित हुई हैं।

यह समय खासकर बुजुर्गों व पहले ही कई रोगों से पीड़ित लोगों के लिये खास सावधानी की मांग करता है।

साथ ही पशुओं पक्षियों , वन्य जीवों के लिए भी जलस्रोतों के रीते होने से समस्या बढ़ी है । ऐसे में यदि बिजली की कटौती सामने आए तो और कष्टदायक होता है। यह भी सत्य है कि इस मौसम में बिजली की खपत अचानक बढ़ने और जल प्रवाह में कमी से बिजली आपूर्ति प्रभावित होती है। जाहिर है बिजली की कटौती परिस्थितिजन्य भी होती है। देश प्रदेश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी की हिटवेव चल रही है ।

 

इस बीच एक अच्छी खबर ( मौसम विभाग आंकलन अनुसार ) यह भी है कि मानसून देश में एक दिन पहले आ जाएगा और इस बार भरपूर मानसून बरसने की भविष्यवाणी भी की जा रही है ? लेकिन हमें मानकर चलना चाहिए कि ग्लोबल वार्मिंग से मौसम के मिजाज में तल्खी आ रही है। अफगानिस्तान, ब्राजील समेत कई देश अप्रत्याशित बाढ़ का सामना कर रहे हैं। हिमालय के आंगन उत्तराखंड में वन सुलग रहे हैं ग्लेशियर पिघल रहे हैं । जाहिर है पूरे देश को प्राणवायु देने वाले जंगलों के जलने का असर पूरे देश के तापमान पर पड़ेगा। ऐसे में हर नागरिक मान ले कि हमने प्राणवायु देने वाले जंगलों को जिस बेरहमी से काटकर कंक्रीट के जंगल उगाए हैं, उसका असर तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि के रूप में तो सामने आएगा ही। हमें और अधिक गर्मी के लिये तैयार रहना होगा।

 

यह सबके सामने है कि हिमाचल के शिमला , समंदर किनारे के चेन्नई , मेट्रो सिटी बेंगलुरू जैसे शहरों में पेयजल संकट जैसी स्थिति है । जिले में जनपद में , नगरीय क्षेत्रों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी जलसंकट गहराता जारहा है । तात्कालिक चिल्ला चोंट होती है आनन फ़ानन में कुछ व्यवस्था कराई जाती हैं और मानसून आया बरसात हुई और फ़िर सब शांत ?

 

आधुनिक हम इतने हैं कि गंभीर संकट के प्रति केवल ओर केवल प्रतिक्रिया देते हैं , ज्ञान बांटते हैं , ओर मौसम विभाग , गोठड़ा माताजी की भविष्यवाणी से संतोष कर लेते हैं ।

 

हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुरूप जैसी जीवन शैली विकसित की थी, वह हमें कुदरत के चरम से और असामान्य स्थितियों से बचाती थी। हम महसूस करें कि बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों में बढ़ता दबाव भी तापमान की वृद्धि का कारण है। बड़ी विकास परियोजनाओं व खनन के लिये जिस तरह जंगलों को उजाड़ा गया, उसका खमियाजा हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। विलासिता के साधनों, वातानुकूलन के मोह और कार्बन उगलते वाहनों की होड़ भी हमारे वातावरण में तापमान में वृद्धि कर रही है। भौतिक विकास के नाम समाज प्राकृतिक संसाधनों का नाश कर रहा है ।

 

एक सामान्य नागरिक के रूप में हम आत्ममंथन करें कि गर्मी के आने पर हम हाय-हाय तो करने लगते हैं, लेकिन कभी हमने विचार किया कि हम इस स्थिति को दूर करने के लिये क्या योगदान देते हैं? क्या हम पौधा-रोपण की ईमानदार कोशिश करते हैं? हम जल के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करते हैं? क्या वर्षा जल सहेजने का प्रयास करते हैं ताकि तापमान कम करने व भूगर्भीय जल के संरक्षण में मदद मिले?

 

हकीकत यह है कि छतीय वर्षा जल और जलस्रोतों में वर्षा काल का बहता जल हम , समाज और सरकारी तंत्र बचाने संरक्षित करने के प्रति उदासीन हैं । इन हालातों में हमें बढ़ते तापमान के साथ जीना सीखना होगा। गर्मी को लेकर हायतौबा करने से गर्मी और अधिक लगती है। साथ ही गंभीरता से प्रयास भी करना होंगे ।

अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त , वॉटरमैन डॉ राजेंद्र सिंह ने गत दिनों मंदसौर में चर्चा में जानकारी दी कि मालवा – निमाड़ – महाकौशल – बुंदेलखंड में अभी भी ज्यादा नुकसान नहीं है और अलार्मिंग स्थिति बनती जारही है । बड़ा हिस्सा डार्क झोन , ग्रे झोन में पहुंच रहा है । सम्मिलित प्रयास से बदलाव हो सकता है , पर यह एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से होने वाला नहीं है ।

 

हमारे पुरखों ने और परंपराओं ने मौसम अनुकूल खानपान, परंपरागत पेय-पदार्थों के सेवन तथा मौसम अनुकूल जीवन शैली का ऐसा ज्ञान दिया, जो हमें मौसम के चरम में सुरक्षित रख सकता है। पर आधुनिकता की दौड़ और होड़ में हमें वे व्यवस्था पुरातन पंथी लगती है ?

 

अब तो रासायनिक उर्वरकों से बने भोजन खाद्यान्न व अशुद्ध सब्जियां, दूध व उससे बने उत्पादों के उपभोग से हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटी है।

कोरोना में घटी इम्युनिटी से बड़ा वर्ग अबतक उबर नहीं पाया है ।

अधेड़ और युवाओं में असमय हार्ट अटैक के मामले बड़ी संख्या में सामने आये हैं ।

 

हमारे जीवन में लगातार घटते श्रम ने भी जीवनी-शक्ति को कम ही किया है। एक व्यक्ति के रूप में हम बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे तपिश से खुद व समाज को सुरक्षित कर सकते हैं। हम अपने आंगन-छतों में हरियाली उगाकर घर का तापमान अनुकूल कर सकते हैं। साथ ही प्रकृति में विचरण करने वाले पक्षियों व जीव-जंतुओं को भी गर्मी से बचाने के लिये भी प्रयास करने चाहिए। यह गर्मी आने वाले समय में और बढ़ सकती है। सरकार व समाज मिलकर इसका मुकाबला कर सकते हैं।

इस उम्मीद के साथ कि समन्वित और संयुक्त प्रयासों से घर आंगन , खेत खलिहान हरा भरा होगा , वर्तमान और आनेवाली पीढ़ी को स्वच्छ – स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण सौंपेंगे