Global Warming:जलवायु परिवर्तन का बुरा असर, मस्तिष्‍क हो रहा छोटा

ग्लोबल वॉर्मिंग! 10 फीसदी छोटा हो चुका है ब्रेन

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Global Warming:  जलवायु परिवर्तन का बुरा असर, मस्तिष्‍क हो रहा छोटा

कैलिफोर्निया के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के वैज्ञानिक और शोधकर्ता जेफ मॉर्गन स्टिबल ने बताया कि जलवायु परिवर्तन और मानव मस्तिष्क के आकार में कमी के बीच सीधा संबंध है। शोधकर्ता स्टिबल ने अध्ययन के लिए 10 प्रकाशित स्रोतों से खोपड़ी के आकार की जानकारी एकत्र की। उन्होंने 50 हजार साल पुरानी 298 मानव हड्डियों से 373 माप लिए। साइंस अलर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिक स्टिबेल ने इस काल के जलवायु रिकॉर्ड और मानव अवशेषों का अध्ययन किया। अपने विश्लेषण में उन्होंने बताया कि पर्यावरणीय तनाव होने पर मनुष्य किस प्रकार प्रभावित होते हैं।

शोध के निष्कर्ष मानव मस्तिष्क के आकार और व्यवहार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में बताते हैं। स्टिबल ने अपने अध्ययन में वैश्विक तापमान, आर्द्रता और वर्षा रिकॉर्ड को शामिल किया। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, ठंड की तुलना में गर्म जलवायु के दौरान मस्तिष्क के औसत आकार में कमी आई है। मानव मस्तिष्क के आकार में कमी पर पिछले अध्ययनों ने स्टिबेल को नए शोध करने के लिए प्रोत्साहित किया।

 मानव विकास बहुत कुछ जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मानव शरीर का 50 हजार साल पुराना रिकॉर्ड मौजूद है, जिससे पता चलता है कि मानव मस्तिष्क पहले ही 10 प्रतिशत सिकुड़ चुका है।

कैलिफ़ोर्निया स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के वैज्ञानिक जेफ़ मॉर्गन स्टिबल ने अध्ययन किया है कि मनुष्य बदलती जलवायु को कैसे सहन करते हैं।

अपने अध्ययन पत्र में उन्होंने लिखा है कि मानव मस्तिष्क पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझना आसान नहीं है। हालाँकि इसका दिमाग सिकुड़ कर छोटा होता जा रहा है. इसका असर उनके व्यवहार पर भी पड़ रहा है। यह अध्ययन 298 इंसानों के दिमाग पर किया गया है। ये प्राचीन मानवों के मस्तिष्क के जीवाश्म हैं, जो 50 हजार साल पहले के हैं। इसकी तुलना बारिश और गर्मी के आंकड़ों से जोड़कर की गई।

जलवायु परिवर्तन मस्तिष्क
यह अध्ययन ब्रेन, बिहेवियर एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। ऐसा पाया गया है कि मौसम गर्म होने पर मस्तिष्क का औसत आकार घटने लगता है, जबकि सर्दियों में यह बढ़ने लगता है। जेफ मॉर्गन के अनुसार मानव मन समय-समय पर बदलता रहता है। जेफ ने कहा कि पिछले कुछ मिलियन वर्षों में जीवों की कई प्रजातियों का दिमाग विकसित हुआ है, जबकि इंसानों के साथ इसका उल्टा हो रहा है। 298 मानव खोपड़ियों के 373 मापों की जांच की गई है, साथ ही उस भौगोलिक स्थान के मौसम की भी जांच की गई है जहां वे पाए गए थे, ताकि जलवायु का पता चल सके। इसे विभिन्न वर्ष श्रेणियों में विभाजित करके ऋतु के अनुसार गणना की गई।