राजनीतिक गलियारों की गपशप: शिवराज-कैलाश की जुगलबंदी

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राजनीतिक गलियारों की गपशप: शिवराज-कैलाश की जुगलबंदी

– विक्रम सेन

*शिवराज-कैलाश की जुगलबंदी* 

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मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इन दोनों केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश के कद्दावर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की जुगलबंदी की चौतरफ़ा चर्चा हो रही है। दरअसल केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान 2 दिन पहले सपरिवार कैलाश विजयवर्गीय के निवास पर डिनर के लिए पहुंचे थे। कैलाश के निवास पर जिस तरह उत्साह और उमंग के साथ पूरे परिवार ने शिवराज का स्वागत सत्कार किया, उससे जाहिर होता है कि अब कैलाश और शिवराज के बीच सब कुछ बेहतर है।

राजनीति में सब जानते हैं कि कैलाश और शिवराज के बीच पहले कभी नहीं पटी। पिछले कई सालों से एक ही पार्टी में रहने वाले दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक समीकरण उल्टे ही रहे हैं। ऐसे में शिवराज की इंदौर यात्रा के दौरान जब एक कमरे में दोनों की अकेले में 18 मिनट चर्चा हुई तो मध्य प्रदेश की राजनीति में तरह-तरह की चर्चाओं को जन्म मिल गया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन दोनों वरिष्ठ नेताओं की जुगलबंदी मध्य प्रदेश में नया गुल खिला सकती है।

तो क्या मध्य प्रदेश में क्या कोई नया राजनीतिक समीकरण बन रहा है? और कुछ हो न हो, लेकिन सीएम डॉ मोहन यादव जरूर अलर्ट हो जाना चाहिए।

*कहाँ रुकी हुई है IAS अधिकारियों की तबादला सूची*

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मध्य प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में पिछले एक महीने से कई बार IAS अधिकारियों के तबादले की सूचियां की चर्चा लगातार मीडिया में आती रही है। कई बार तो ऐसा लगा कि आज ही सूची आ जाएगी लेकिन वह सूची आती नहीं है। सूत्र बताते हैं कि इन तबादलों को लेकर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के बीच दो दौर की बातचीत भी हो चुकी है। लेकिन, पता यह चला है कि कुछ नामों को लेकर दोनों के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण हर बार सूची जारी होने से अटक जाती है। सुना तो यहां तक गया है कि इस बार की सूची में मंत्रालय से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक कुछ चौंकाने वाले नाम हो सकते हैं। माना जा रहा है कि उन नामों को लेकर ही अंतिम निर्णय लिया जाना है, इसलिए शायद IAS अधिकारियों की एक बड़ी तबादला सूची आने से रुकी है।

 

*मध्य प्रदेश की राजनीति में अब डॉ मोहन यादव नंबर वन*

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राजनीतिक गलियारों में इस बात को देखकर बड़ी चर्चा है कि क्या मोहन यादव अब भारतीय जनता पार्टी में मध्य प्रदेश के नंबर एक नेता हो गए हैं। उन्होंने शिवराज सहित सभी बड़े नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। लोग तो यह कहने में भी नहीं चुक रहे हैं कि जो काम शिवराज 20 साल में नहीं कर सके वह मोहन यादव ने डेढ़ साल में करके दिखा दिए। खास तौर पर विरासत से विकास, अधिकारी कर्मचारियों की पदोन्नति, उज्जैन सिंहस्थ को लेकर बड़े निर्णय, इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में जो निर्णय सालों से अटके पड़े थे, ऐसे मामलों में मोहन ने फैसले लेकर अपनी लाइन बड़ी कर ली है।

‘संवाद’ कार्यक्रम में जिस तरह मोहन ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया वह अपने आपमें संकेत दे रहा था मानो वे अपने आपको शिवराज से बड़ा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हालांकि प्रदेश के मुखिया के रूप में वे हैं भी शक्तिमान।

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*नए पदोन्नति नियम को लेकर अजाक्स और सपाक्स फिर आमने-सामने* 

मध्य प्रदेश में अधिकारियों कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर राज्य सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए निर्णय पर मोहन यादव सरकार भले ही वाह वाही लूटे, लेकिन राज्य के दो संगठन अजाक्स और सपाक्स फिर आमने-सामने आ गए हैं। सामान्य, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के अधिकारी कर्मचारी इस निर्णय से कतई खुश नहीं है। बताया तो यहां तक गया है कि कुछ बिंदुओं को लेकर अजाक्स संगठन भी खुश नहीं है। नए पदोन्नति नियमों को लेकर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में अजाक्स के अध्यक्ष- अपर मुख्य सचिव गृह जेएन कंसोटिया ने खुलकर अपनी बात भी रखी थी।

उधर, सपाक्स संगठन द्वारा नए पदोन्नति नियमों का लगातार विरोध किया जा रहा है।मंत्रालय में प्रदर्शन भी किया गया है। पता चला है कि पदोन्नति के नए नियमों के तहत मंत्रालय में अपर, उप और अवर सचिव सहित सेक्शन ऑफिसर के पदों तथा वर्क्स डिपार्टमेंट लोक निर्माण, जल संसाधन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभागों में ईएनसी,चीफ इंजीनियर, और एसई के पद तक केवल आरक्षित वर्ग के अधिकारियों को ही पदोन्नति मिल सकेगी। ऐसी स्थिति और भी विभागों में बनती दिख रही है। ऐसे में सामान्य, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों में इन नियमों को लेकर असंतोष देखा जा रहा है। पता तो यहां तक चला है कि यह संगठन न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी कर रहा है।

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*कांग्रेस प्रवक्ताओं और IT सेल के पदाधिकारियों के सोशल मीडिया अकाउंट्स बैन!* 

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प्रदेश में कांग्रेस प्रवक्ताओं और आईटी सेल से जुड़े कई पदाधिकारियों की शिकायत है, कि उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स जैसे कि वॉट्सऐप, फेसबुक और एक्स को इन कम्पनी द्वारा बैन कर दिया गया। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि यह कार्रवाई उनकी भाजपा सरकार और संगठन के खिलाफ लगातार की जा रही आलोचनाओं के चलते की गई है।

कांग्रेस के आईटी सेल से जुड़े कई पदाधिकारियों ने यह भी शिकायत की है कि अकाउंट बंद होने के बाद जब वे नए नंबर से वॉट्सऐप चालू कर रहे हैं, तो उन्हें फर्जी नामों से जोड़ा जा रहा है, जिससे पहचान में भ्रम फैल रहा है। इससे कार्यकर्ताओं को नई ग्रुप्स बनाने और अभियान चलाने में दिक्कत आ रही है।

वहीं विशेषज्ञों की मानें तो यह घटना राजनीतिक हस्तक्षेप और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की कंटेंट पॉलिसी के बीच की जंग को दर्शाती है। सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई सोशल मीडिया नियमों का पालन न करने के कारण की गई, या यह राजनीतिक विरोध को दबाने की कोशिश है? फिलहाल कांग्रेस ने मामले को राजनीतिक दमन करार देते हुए इसे सार्वजनिक मंच पर उठाने और कानूनी विकल्पों पर विचार करने की बात कही है।