Farmers के आसपास घूमती सरकार और सियासत

610
Farmers
Farmers

Farmers के आसपास घूमती सरकार और सियासत

मध्य प्रदेश की राजनीति इन दिनों किसानों(Farmers) के आसपास घूम रही है। यह तब और सुर्खियों में आई जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पिछले दिनों मुलाकात का समय देने के बाद उसे टाल दिया। हालांकि दो दिन बाद श्री सिंह को मुख्यमंत्री ने किसानों के मुददे पर चर्चा के लिये बुलाया। लेकिन सीन थोड़ा बदला हुआ था। मुख्यमंत्री से चर्चा के लिए अब एक नहीं एक नहीं दो पूर्व मुख्यमंत्री थे। एक दस साल मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह और दूसरे पंद्रह महीने मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ। इसे कांग्रेस की आंतरिक कलह के रूप में भी जोड़कर देखा जा रहा है।

भेंट का समय मांगा था दिग्विजयसिंह ने और मिलने का समय तय होने के बाद उसे रदद् करने से राजनीति में बबाल पैदा होने के संकेत मिल रहे थे। इसे दिग्विजयसिंह ने किसानों (Farmers)और अपने अपमान से जोड़ कर देखा और इसके बदले नुकसान उठाने की सीएम शिवराजसिंह चौहान चेतावनी भी दे डाली। इसके बाद कमलनाथ की एयरपोर्ट पर इत्तफाक से सीएम के साथ हुई मुलाक़ात के भी सियासी मायने निकाले जाने लगे। कहा जाने लगा कि कमलनाथ सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ मिलकर दिग्विजयसिंह का कद घटाने में लगे हैं।

यह भेंट उनके आपस में मिले होने की अफवाहों के पक्ष में बड़े सबूत के रूप में भी देखी और दिखाई जा रही है। इसे कांग्रेस आलाकमान के पास भी भेज दिया गया है। आने वाले दिनों में इसका क्या असर होगा इसकी प्रतीक्षा की जा रही है। कमलनाथ की बंद कमरा पॉलिटिक्स को लेकर पार्टी के भीतर भी दबी जुबान से ही सही खूब बातें होती रहती है।

WhatsApp Image 2022 01 23 at 2.41.55 AM

बहरहाल , कांग्रेस में शिवराजसिंह चौहान की दिग्विजय सिंह को समय देकर रदद् करने की राजनीति का भाजपा को लाभ मिल रहा है। इधर कांग्रेस नेता सफाई दी रहे हैं कि नाथ – दिग्विजय में कोई मनमुटाव और दूरी नही है। लेकिन किसानो की समस्याओं के लिए समय मांगा था दिग्विजय सिंह ने और साथ में गए कमलनाथ भी। बतौर पीसीसी चीफ इसमें कोई एतराज नही होना चाहिए लेकिन जो घटनाक्रम हुआ उससे कांग्रेस और सूबे की सियासत में चर्चाओं का बाजार खूब गर्म है। ठंडे मौसम में इस मुद्दे की आग पर अभी आगे भी खूब हाथ तापे जाएंगे। सबको याद है कि किसानों की फिक्र और उस पर राजनीति करने के मामले में सीएम शिवराज सिंह चौहान का कोई सानी नही है। अभी तो गेंद उनके ही पाले में है और वे उसे चाहे जहां खेल रहे हैं…

बॉक्स
चर्चाओं में एसीपी…
भोपाल – इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद सबकी नजरें को मिले अधिकार और उनके काम काज पर टिकी हुई हैं। चर्चाओं में हैं भोपाल के एसीपी सचिन अतुलकर। दरअसल अतुलकर कभी उज्जैन कप्तान के रूप में जब चर्चाओं में थे। इस दफा वे प्रदेश के तेजतर्रार मंत्री विश्वास सारंग के कारण सुर्खियों में आ गए। बात यह है कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की तैयारी था। जिसमे मंत्री सारंग और अन्य अफसर साथ थे लेकिन एसीपी अपने वाहन से उतरकर तैयारी में शिरकत नही कर रहे थे। प्रोटोकॉल के खिलाफ यह बात मंत्री को नागवार लगी।

बताते हैं इस मुद्दे को सारंग ने गरिमा के प्रतिकूल माना और सख्त लहजे में एसीपी को समझाइश दे डाली। नई नई पुलिस कमिश्नर प्रणाली में अधिकारों को लेकर बहुत सी बातें हो रही हैं लेकिन मंत्री सारंग ने कर्तव्य का स्मरण करते हुए जो कुछ कहा उसकी चर्चा भी हो रही है। इससे जनप्रतिनिधियों के मामले में पुलिस के शालीन रवैये की भी दरकार को शिद्दत से महसूस किया जा रहा है।

श्री अतुलकर की एसीपी के रूप में तैनाती को लेकर उम्मीद की जा रही है कि वे पुलिस कमिश्नर प्रणाली को सफलता पूर्वक लागू कर बेहतर नतीजे देने में कामयाब होंगे लेकिन उन्हें राजधानी में पॉलिटकल प्रोटोकॉल पर भी फोकस करना होगा। आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के मसले दोबारा नही आएंगे वरना पुलिस और सरकार की किरकिरी तय जानिए…

बॉक्स
बैंगन भी सुर्खियों में
बैंगन जैसे देशज भाषा में भटा कहा जाता है पिछले दिनों इंदौर में एक निजी दावत समारोह में खूब चर्चाओं में रहा। किस्सा एक न्यायमूर्ति के यहां शादी समारोह का है जिसमे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर बड़े बड़े सियासतदां और अफसरान मौजूद थे। बात चल पड़ी बेचारे बैंगन की।

एक समय राजदरबार में राजा और बादशाहों की हां में हां मिलाने के किस्से पर भी बात हुई। बताया गया कि एक बादशाह को बैंगन पसन्द था तो दरबारियों ने उसकी तारीफ में पुल बांधते हुए कहा कि भटा तो सब्जियों का बादशाह है उसके सिर पर ताज भी इस बात की गवाही देता है।

उसके रंग रूप और स्वाद की भी प्रशंसा की गई। लेकिन जैसे ही बादशाह ने उसे थोड़ा नापसंद किया तो दरबारियों ने पैंतरा बदला और बैंगन की बुराई करना शुरू कर दिया।

किसी ने उसके स्वाद को खराब बताया कोई उसे सेहत के लिए नुकसानदेह बताने लगा। किसी ने फरमाया कि यह भी कोई सब्जी है उसका तो नाम ही बेगुन है याने कोई बिना गुन का। इस दावत में ठहाको बीच यह तो तय हो गया कि दरबारियों से बचके चलना चाहिए। खास बात यह है कि चर्चा के दरम्यान सरकार, सियासत और प्रशासन की कई नामचीन हस्तियां मौजूद थी। बैंगन के किस्से कहानी हर दौर में मौजूं है…