

Holi Special: भोपाल में 1946 में निकला था होली चल समारोह
प्रलय श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट
भोपाल शहर में सन 1946 से होली चल समारोह निकलना शुरू हो गया था। लेकिन अगले वर्ष 1947 में भारत – पाक विभाजन के कारण चल समारोह नहीं निकाला गया था। चल समारोह और होलिका दहन की शुरुआत भोपाल शहर में चौक बाजार क्षेत्र से ही हुई थी। सन 1910 के आसपास चौक बाजार से गल्ला मंडी के चौधरी नन्नूमल चौधरी के नेतृत्व में भोपाल शहर में होलिका दहन का सिलसिला शुरू हुआ था। शुरू में नन्नूमल चौधरी के साथ कल्याण अहीर, दुर्गा शंकर मास्टर, शिब्बू चाचा (अग्रवाल पूड़ी भंडार), राधेश्याम गुप्ता (सर्राफा), होलिका दहन कार्यक्रम में सक्रिय रहते थे। नवाबी शासन होने के बावजूद कभी भी होलिका दहन में कोई बाधा नहीं आई।
इसी तरह साल 1946 में चौक बाजार क्षेत्र में सबसे पहले होली चल समारोह निकाला गया था, जो बाल-बिहार में समाप्त हुआ था। दूसरे वर्ष 1947 में होली चल समारोह भारत-पाक विभाजन के कारण रोक दिया गया था, जो सन 1948 से पुनः शुरू किया गया । वर्ष 1946 में भोपाल में पवित्र होली उत्सव समिति का गठन किया गया था।
इस चल समारोह में भक्त प्रहलाद की झांकी एवं हिरणकश्यप की प्रतिमाएं आकर्षण का केन्द्र रहा करती थीं। पं. भगवानदास सारस्वत, उद्धवदास मेहता, ठाकुर प्रसाद शर्मा, खुशीलाल वैद्य, लक्ष्मीनारायण मुखरैया, जमुना प्रसाद मुखरैया, सरदारमल ललवानी, मास्टर भैरों प्रसाद सक्सेना ने 1940 और 50 के दशक में होली चल समारोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी। भोपाल शहर के प्रारंभिक दौर में यह विशेषता रहा करती थी कि होली में कीचड़ का नहीं, टेसू के फूल और रंगों का उपयोग किया जाता था। ऊँट, हाथी, घोड़े भी चल समारोह की शोभा बढ़ाते थे। साल 1950 से होली चल समारोह में लाउडस्पीकर का उपयोग होने लगा था। एक बार जब पं. भगवानदास सारस्वत हिंदू उत्सव समिति के अध्यक्ष थे तब तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. द्वारका प्रसाद मिश्र ने होली चल समारोह पर रोक लगा दी थी, लेकिन बाद में पं. मिश्र ने विधानसभा में पं. भगवानदास सारस्वत की इस बात के लिए प्रशंसा की थी कि उन्होंने सरकार की बात मानकर शहर में अमन-चैन बनाए रखा। रंगपंचमी मनाने एवं उस पर चल समारोह निकालने की परंपरा सन 1960 से शुरू हुई थी। पहले इंदौर में रंगपंचमी मनाई जाती थी, फिर सर्राफा बाजार के व्यापारियों ने भोपाल में इसकी शुरुआत की, जिसका संचालन हिंदू महासभा द्वारा किया जाता था।
भोपाल में होली चल समारोह की शुरुआत करने वाले वरिष्ठ समाजसेवी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. भगवानदास सारस्वत के अनुसार उस जमाने में हम गर्व और परंपरागत ढंग से होलिका दहन और होली चल समारोह निकाला करते थे। उस समय होली पर रंगों एवं टेसू के फूलों का ज्यादा महत्व रहा करता था। गंदगी, पेंट, रसायन आदि से होली नहीं खेली जाती थी।