

Illegal Immigrants: भारत में हर अवैध काम करने वाले के मानवाधिकार हैं
रमण रावल
हमारा देश वाकई दुनिया में सबसे अलग है,विचित्र है। यहां नागरिक के भले ही कुछ कर्तव्य न हो, लेकिन सरकार की बाध्यतायें अनंत हैं। यह मामला तब अधिक चर्चा में आ जाता है, जब किसी भी तरह कि अवैध गतिविधि में लिप्त व्यक्ति या समूह के गलत आचरण की बात उठे।
हाल ही में अमेरिका से अवैध प्रवासियों के देश निकाला मामले की भारत में भरपल्ले चर्चा इस मायने में है कि भारतीय मूल के उन अवैध प्रवासियों को अमेरिका हथकड़ी-बेड़ी में मालवाहक जहाज से भारत भेज रहा है। इस पर हंगामा बरपा है कि सरकार अपने नागरिकों के मान-सम्मान की रक्षा नहीं कर पा रही है। अपने मित्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से एतराज नहीं जता रही और भारतीयों के सुरक्षित व सम्मानजनक वापसी का दबाव नहीं बना रही है।
मोटे तौर पर यह सोच बनता है कि जब नागरिकों का देश निकाला हो तब उन्हें उचित तौर-तरीकों से भेजा जाये, उससे पहले भले ही उस देश की सरकार ने उनके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार किया हो और कैदियों की तरह रखा हो। यह ऐसी एक अतिरिक्त शिष्टाचारी क्रिया है, जिसे अपनाना अवैध प्रवासी पीड़ित राष्ट्र के लिये बाध्यकारी तो बिल्कुल नहीं कह सकते। यह तो उसके सौजन्य पर निर्भर करता है। फिर,अवैध प्रवासी उसके मित्र राष्ट्र के हों या दुश्मन राष्ट्र के अथवा किसी कम हैसियत वाले मुल्क के। इसे तय करने का पूरा अधिकार उस देश की शासन व्यवस्था का ही रहेगा। ऐसे में अमेरिका अवैध भारतीय घुसपैठियों को जेल में ठूंस कर रखने के बाद हथकड़ी-बेड़ी में भेज रहा है तो किसी भी तरह का राजनयिक शिष्टाचार आड़े नहीं आता।
इसे लेकर आये दिन भांति-भांति की प्रतिक्रियायें सामने आ रही हैं। ऐसे तमाम मौकों पर विपक्ष,खास कर कांग्रेस,मीडिया व कथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग खासा आक्रामक हो जाता है। उसे याद आते हैं,उन जैसे अवैध काम करने वालों के मानवाधिकार । वे ताने-उलाहने दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका जाकर ट्रम्प से गले मिल रहे हैं,उनसे सम्मान पा रहे हैं, किंतु अपने नागरिकों के साथ बर्बर बरताव के लिये ट्रम्प से कुछ नहीं कह रहे। ये वे ही लोग हैं जो अजमल कसाब की फांसी रोकने के लिये आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के जज को उठाकर दया याचिका स्वीकार करने का दबाव बनाकर सुनवाई करवाते हैं। ये लोग संसद पर हमले के दोषी बुरहान वानी के समर्थन में लंबी लड़ाई लड़ते हैं और जेएनयू के जुझारू युवा नारे लगाते हैं कि भारत तेरे टुकड़े होंगे। ये ही लोग हाफिज सईद को जी कहकर बुलाते हैं और अफगानिस्तान जाकर बाबर की कब्र पर मातम करते हैं। ये ही लोग वक्फ बोर्ड को देश में कहीं पर भी खाली पड़ी शासकीय-निजी जमीन को अपने मालिकी की बताने के पूरी तरह से अवैधानिक असीमित अधिकार दे देते हैं। ये ही लोग उप्र में आतंक के पर्याय अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को भाई जान बोलकर उनकी दाढ़ी में हाथ डालकर चिरोरी करते हैं कि वे थाने को बंधक न बनाये,हथियार न लूटे,थानेदार की पिटाई न करे और जमीनों पर कब्जे की खुली छूट दे देते हैं। ये ही लोग उस आजमी का समर्थन करते हैं जो सार्वजनिक तौर पर कहता है कि उनकी सरकार आने पर कलेक्टर से जूते साफ करवायेंगे।
ये ही लोग अब अवैध प्रवासियों की सम्मानजक वापसी की पैरवी का रूदन कर रहे हैं। हद तो यह है कि पंजाब के मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत सिंह मान चेतावनी देते हैं कि वे इन प्रवासियों की अगली खेप अमृतसर,चंडीगढ़ या पंजाब में कहीं नहीं उतरने देंगे। बताइये, कितना हास्यास्पद और गैर जिम्मेदार बयान है, जैसे पंजाब एक पृथक राष्ट्र हो, जहां भारत राष्ट्र के नागरिकों को नहीं उतारा जा सकता। यह तब है, जब ज्यादातर अवैध अप्रवासी पंजाब राज्य के ही होते हैं। कोई इनसे क्यों नहीं पूछ रहा कि अपना घर-बार बेचकर, मां-बाप की जीवन भर की कमाई दांव पर लगाकर वे बिना किसी वैध दस्तावेजों के अमेरिका गये क्यों थे? तब क्या ये सरकार से पूछ-बताकर गये थे। क्या इन्हें इतना भी पता नहीं था कि किसी और देश जाकर वहां से अमेरिका में घुसना अवैध होगा ?हद तो यह भई है कि ये ही लोग उन अवैध प्रवासियों को भारत सरकार के विशेष विमान से वापस लाने की पैरवी करते हैं। शर्म आनी चाहिये उन लोगों को जो किसी प्राकृतिक आपदा,युद्ध या विशेष परिस्थितियों में विदेश में फंसे अपने नागरिकों को लाने विशेष विमान भेजने जैसी बात इन अवैध आचरण के दोषी लोगों को लाने के लिये कह रहे हैं।
जब ये तमाम लोग भारतीय रुपये की चमक और देश के सम्मान का सौदा कर डॉलर के लालच में कोई भी तरीका अपनाने को बेकरार थे, तब अब दिक्कत ही क्या है? उन्हें यह क्यों लगता है कि उन्हें अमेरिका अपने देश की जेल में राजनीतिक मेहमान बनाकर रखेगा, बिरयानी-पुलाव खिलायेगा और चार्टर प्लेन से भारत वापस भेजेगा? देश में कुछ नस्लें अभी-भी ऐसी हैं, जो सरकार के विरोध के नाम पर लोकतांत्रिक व्यवस्थायें मानना नहीं चाहतीं। उन्हें राजनयिक शिष्टाचार से भी लेना-देना नहीं । प्रगतिशील, सुधारवादी, मानवाधिकारवादी की आड़ में वे अपनी ही सरकार को किसी भी मसले पर आड़े हाथ लेना नहीं छोड़ते। इनमें विपक्ष के अलावा वे लोग भी हैं जो विशेष कर अमेरिका की विभिन्न भारत विरोधी संस्थाओं से एनजीओ व अन्यान्य नामों पर भारी भरकम रकम प्राप्त करते हैं और वफादारी दिखाते हुए अपनी ही सरकार को आंखें दिखाते हैं। ऐसे लोगों की दुकानों के शटर तेजी से बंद हो रहे हैं। सारी तकलीफ इसी बात की है।