Israel-Iran War 2025: हालात बेहद तनावपूर्ण, दुनिया की नजरें अमेरिका के अगले कदम पर!

क्या खोमेनेई से सीधे युद्ध लड़ेंगे डोनाल्ड ट्रंप या निभाएंगे संतुलन का किरदार? वैश्विक राजनीति की सबसे बड़ी परीक्षा!

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Israel-Iran War 2025: हालात बेहद तनावपूर्ण, दुनिया की नजरें अमेरिका के अगले कदम पर!

– राजेश जयंत की खास रिपोर्ट 

Israel-Iran War 2025: इसराइल- ईरान युद्ध को लेकर हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं। पूरी दुनिया की नजरें अमेरिका के अगले कदम पर है। दुनिया भर के लोगों में यही चर्चा है कि क्या खोमेनेई से सीधे युद्ध लड़ेंगे डोनाल्ड ट्रंप या निभाएंगे संतुलन का किरदार? दरअसल इसे वैश्विक राजनीति की सबसे बड़ी परीक्षा माना जा रहा है!

मध्य-पूर्व में छिड़े इसराइल-ईरान युद्ध ने न सिर्फ पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर दिया है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी बड़ा असर डाला है। इस संघर्ष के बीच अमेरिका की नीति बेहद निर्णायक साबित हो रही है। वह एक तरफ इजरायल को सैन्य, खुफिया और कूटनीतिक समर्थन दे रहा है, तो दूसरी ओर क्षेत्रीय युद्ध को सीमित रखने और अपने हितों की रक्षा के लिए हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है। अमेरिका का मकसद है इजरायल की सुरक्षा, ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकना, और साथ ही क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना, लेकिन इस सबके बीच उसकी हर रणनीति और दबदबा पूरी दुनिया की नजर में है।

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इसराइल और ईरान के बीच छिड़ा संघर्ष न सिर्फ इन दोनों देशों, बल्कि पूरे क्षेत्र को अस्थिरता की ओर धकेल रहा है। ऐसे माहौल में अमेरिका की नीति और मंशा सबसे अहम बन गई है, क्योंकि उसकी हर रणनीतिक चाल इस युद्ध के भविष्य को तय कर सकती है। अमेरिका खुले तौर पर इजरायल के साथ खड़ा है, लेकिन वह सीधे युद्ध में कूदने से बच रहा है; उसकी कोशिश है कि अपने नागरिकों और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा के साथ-साथ इजरायल की सैन्य बढ़त को कायम रखा जाए। ट्रंप प्रशासन लगातार ईरान पर दबाव बना रहा है- कभी बिना शर्त सरेंडर की मांग, तो कभी सैन्य कार्रवाई की धमकी- ताकि ईरान झुके और क्षेत्र में अमेरिकी हित सुरक्षित रहें। हालांकि, अमेरिका की हर नीति के पीछे उसका मकसद सिर्फ इजरायल की मदद या ईरान को कमजोर करना ही नहीं, बल्कि पूरे इलाके में अपनी निर्णायक भूमिका और दबदबा बनाए रखना भी है, जिससे उसकी वैश्विक ताकत और रणनीतिक हित बरकरार रहें। इसराइल-ईरान विवाद में इस समय हालात बेहद तनावपूर्ण हैं और अमेरिका की भूमिका काफी अहम बनी हुई है।


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ताजा अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अनुसार इजरायल के हमलों से ईरान की मिसाइल क्षमता को भारी नुकसान पहुंचा है, लेकिन उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ। ईरान ने पहली बार Sejjil मिसाइल का इस्तेमाल किया और अपने हमले सेंट्रल ईरान से जारी रखे हैं। इजरायल ने अब तक 35-40% ईरानी बैलिस्टिक मिसाइल स्टॉक और करीब आधे लॉन्चर नष्ट कर दिए हैं। अमेरिका की रणनीति फिलहाल डिफेंसिव सपोर्ट और कूटनीतिक दबाव पर केंद्रित है, लेकिन ट्रंप के बयानों और सैन्य तैनाती से स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है । रूस और अन्य देश भी चेतावनी दे चुके हैं कि अमेरिका की सीधी दखल से पूरा क्षेत्र और अस्थिर हो सकता है।

*महत्वपूर्ण घटनाक्रम*

– 13 जून 2025 से इजरायल ने ईरान पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू किए, जिनका मकसद ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को नष्ट करना है। शुरुआती घंटों में ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले हुए, कई ईरानी नेताओं और वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया।

– 18-19 जून 2025 को ईरान ने इजरायल के बेयर शेवा के सोरोका अस्पताल पर मिसाइल हमला किया, जिससे आम नागरिकों में दहशत है।

– इजरायल ने जवाब में ईरान के निष्क्रिय न्यूक्लियर रिएक्टर और कई अन्य ठिकानों पर हमले तेज़ कर दिए हैं।

– ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इजरायल की सैन्य साइट्स और शहरों पर मिसाइलें दागीं, लेकिन इजरायल की एयर डिफेंस और अमेरिकी सहयोग से ज्यादातर मिसाइलें नष्ट कर दी गईं। अब तक 20 से ज्यादा लोग मारे गए और 500 से ज्यादा घायल हैं।

– 19 जून को इजरायल ने हमलों की तीव्रता बढ़ाने का ऐलान किया है और अमेरिकी दूतावास से कुछ लोगों की निकासी भी शुरू हो गई है।

– ईरान अब भी अपने सहयोगी गुटों को सीधे युद्ध में नहीं उतार रहा, लेकिन तनाव लगातार बढ़ रहा है।

– ईरान के सहयोगी गुट (जैसे हिजबुल्ला, इराकी मिलिशिया) भी धमकी दे रहे हैं, लेकिन अभी तक पूरी तरह से युद्ध में नहीं कूदे हैं।

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अमेरिका की भूमिका:

-अमेरिका ने अब तक इजरायल के शुरुआती हमलों में सीधी सैन्य मदद नहीं दी, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि “संभव है हम शामिल हों”।

बताया तो यहां तक गया है कि इस मामले में ट्रंप ने कोई प्लान भी बना लिया है।

-अमेरिकी रक्षा मंत्री ने साफ किया है कि अमेरिका ने अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए मिडिल ईस्ट में अतिरिक्त डिफेंसिव हथियार और एयरक्राफ्ट भेजे हैं।

-ट्रंप प्रशासन के भीतर भी सीधी सैन्य कार्रवाई को लेकर असमंजस है, कुछ सलाहकार सीधे युद्ध से बचने की सलाह दे रहे हैं, वहीं इजरायल अमेरिका को साथ लाने की कोशिश में है।

-अमेरिका फिलहाल सीधे हमले में नहीं है, लेकिन डिफेंसिव सपोर्ट (मिसाइल रोकना, खुफिया सपोर्ट) में एक्टिव है और कभी भी सीधी कार्रवाई कर सकता है।

-विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का “बिना शर्त आत्मसमर्पण” वाला बयान और इजरायल के साथ बढ़ती बातचीत संकेत देते हैं कि अमेरिका कभी भी खुलकर युद्ध में उतर सकता है।

-ईरान ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने सीधी दखल दी तो- “अप्रत्याशित नुकसान” झेलना पड़ेगा।

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*Expert view*

भारतीय विदेश नीति विशेषज्ञ प्रो. हरश वी. पंत के मुताबिक, “अगर अमेरिका खुलकर युद्ध में उतरता है तो भारत समेत पूरी दुनिया की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर बड़ा असर पड़ेगा।” वहीं, अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक रिचर्ड हास का कहना है कि- “अमेरिका की हर रणनीतिक चाल अब वैश्विक शक्ति संतुलन को सीधे प्रभावित करेगी।”

इसी तरह यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट फ्रांसिस्को के प्रो. स्टीफन जुन्स का मानना है कि- “ट्रंप का ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ वाला बयान और सैन्य तैनाती संकेत हैं कि अमेरिका कभी भी खुलकर युद्ध में उतर सकता है।”

माना जा सकता है कि इजरायल की रणनीति मुख्य रूप से ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर उसकी सैन्य क्षमता को कमजोर करने पर केंद्रित है। वहीं, ईरान की कोशिश है कि जवाबी हमलों और अपने सहयोगी गुटों के जरिए दबाव बनाए रखे और इजरायल व अमेरिका को क्षेत्रीय युद्ध में उलझाए। इस टकराव में अगर अमेरिका खुलकर शामिल होता है, तो हालात और भी गंभीर हो सकते हैं- जिससे पूरे मध्य-पूर्व में अस्थिरता और मानव संकट बढ़ने की आशंका है। अमेरिका अब तक खुलकर युद्ध में नहीं उतरा है, लेकिन उसकी नीति, सैन्य तैनाती और बयानों से हालात कभी भी पलट सकते हैं। इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की रणनीति, दबदबा और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने की चुनौती सबसे बड़ी है।