

कथाकार रमेश शर्मा की दो मार्मिक लघुकथाएं
# अस्थि कलश ।
———————
पांच साल बाद घर की देहरी पर अचानक बेटे सुरेश बहू सोनाली को देखकर मां सुधा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा ।
सुधा ” बेटा सुरेश तुम आ गए ।आज मन को शांति मिली है। तुम्हारे पिता तुम दोनों की याद करते-करते दुनिया से चल बसे।”
सुरेश “पापा को गुजरे पांच साल हो गए। मैं अमेरिका में सेटल हो गया। चाहकर भी नहीं आ पाया।”
सुधा “अंतिम संस्कार के लिए तीन दिनतक तुम्हारा रास्ता देखा। अंत में हारकर तुम्हारी दीदी ने चिता को अग्नि दी।”
सोनाली ” अब उस मैटर पर डिस्कस करने से कोई मतलब नहीं है । अभी हम केवल बीस दिनों के लिए आए हैं। प्रॉपर्टीज के डाक्यूमेंट्स कंप्लीट करना जरूरी है। ”
सुरेश “लेकिन पापा की चिता को अग्नि दीदी ने दी है। इसलिए उनका हक पहले बनेगा।”
सुधा “बेमतलब की बहस छोड़ो । खाना खाओ।आराम करो। दीदी भी तुम्हारी बहन है । तुम्हें उच्च शिक्षा दिलाने के लिए दीदी ने दिन रात मेहनत की। शादी तक नहीं की।”
सुरेश ” कल पहले त्रिवेणी संगम जाकर हम स्नान करेंगे। मम्मी आपको ले चलते लेकिन आप चलने फिरने में लाचार हो।”
सुधा “मेरा शरीर बहुत थक चुका है। चलना फिरना मुश्किल है। तुम्हारी दीदी नहीं होती तो शायद अभी तक स्वर्ग सिधार जाती। पांच साल से तुम्हारे पापा की अस्थियां गंगा मैया में विसर्जन के लिए तुम्हारा इंतजार कर रही थी। अब तुम आ गए हो तो…”
सोनाली “जब दीदी को सारी जायदाद बैंक बैलेंस मिलना है तो अस्थि विसर्जन भी उनसे ही करवा दीजिए । हम लीगल एडवाइस लेने जा रहे हैं।”
सोनाली अपने पति सुरेश का हाथ पकड़कर घर से बाहर निकल गई।
=====================
# रमेश चंद्र शर्मा
2 . पुण्य का फल !
————————
साठ साल पहले की घटना। नौतपा। निमाड़ की तपा देने वाली गर्मी। लोग पंडित रामगोपाल की चकनाचूर साइकिल को कांधे पर लादे घर पहुंचे। घर में कोहराम बच गया। पांच साल का बेटा नाना अपने पिता से लिपटकर रोने लगा। पंडितजी ने सिर पर हाथ फेरकर रोते हुए बेटे गले लगा लिया।
बैलगाड़ी वाला ” पुलिस वाले भैया की किस्मत अच्छी थी। मान नदी के पुल पर अचानक दोनों बैल भड़के और इनको साइकिल सहित नदी में उछाल दिया ।”
दूसरा आदमी “सच में बड़ा डरावना भयानक हादसा था। मेरी तो आंखें फटी की फटी रह गई ।सोचा पुलिस वाले भैया नहीं बचेगें।”
गाड़ीवाला ” चट्टानों के बीच सूखी नदी में ऊंचाई से धड़ाम गिरकर भी सुरक्षित बच गये। ”
श्रीमती पंडित (घबराकर) ” गलती गाड़ी वाले भैया आपकी है। पुल पर सामने से सवारी आ रही थी तो आपको गाड़ी वहीं रोक देना था। इनको ईश्वर ने बचा दिया नहीं तो अनहोनी हो जाती ।”
तनावपूर्ण माहौल देखकर पड़ोसी भी इकट्ठा हो गये । सभी गाड़ी वाले को पुलिस थाने ले जाकर बंद करवाने की बहस लगे।
पंडितजी बोले ” गाड़ी वाले की गलती नहीं है ।अचानक बैल भड़क गये। इनके साथ बैल भी गाड़ी सहित नदी में गिरते गिरते बचे। दीनदयाल प्रभु ने हम सबकी रक्षा की।”
पड़ोसी बोला “पुलिस वाले पंडितजी रोज सुबह उठकर भजन करते हैं । मानस का डेली पाठ करते हैं। ईश्वर के यहां अंधेर नहीं है। जरूर कोई पुण्य कर्म आपके आड़े आया है।”
दूसरा पड़ोसी ” एक साल पहले मोहल्ले की कुतिया सड़क पर बस के नीचे आकर मर गई थी। पंडितजी ने उसके चोरों रोते बिलखते पिल्लों को घर पर रखा। दिनरात सेवा की। उनको बड़ा किया।”
श्रीमती पंडित ” सच कहते हो भैया। कुतिया के पिल्लों की आंख तक नहीं खुली थी। यह नहीं माने । घर ले आये। जब भी ड्यूटी से फ्री होते उनका अपने बच्चों जैसा ध्यान रखते थे। बेटे नाना को भी जीवदया की सीख देते हैं। ”
पंडित जी बेटे नाना से बोले ” पुण्य की जड़ पाताल होती है । बेजुबान प्राणियों की सेवा करते रहो । जरूरत मंदों की मदद करने वालों पर दीनदयाल परमात्मा की विशेष कृपा सदैव रहती है।”
बड़े हो चुके चारों पिल्ले आकर पंडितजी के पैरों के पास लेटकर दुम हिलाने लगे। वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो गई।
रमेशचन्द्र शर्मा ,16 कृष्णा नगर, इंदौर
Short Story: शोभा रानी तिवारी की दो लघुकथाएं
Ahmedabad Plane Crash-Maithili Patil : आसमान छूने का सपना:मैथिली की उड़ान और न्हावा गांव का दर्द