हिंदुत्व (Hindutva) के मुद्दे और सत्याग्रह के नाम पर सत्ता के बदलते समीकरण

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हिंदुत्व (Hindutva) के मुद्दे और सत्याग्रह के नाम पर सत्ता के बदलते समीकरण;

भारतीय राजनीति में कई बार उठा पटक , पार्टियों में विद्रोह , सरकारों का पतन या गठन के अवसर आए हैं , लेकिन हाल के महाराष्ट्र के घटना क्रम ने  हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के सारे समीकरण बदल दिए | बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी और मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे बार बार हिंदुत्व के सेना के अजेंडे के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त कर रहे हैं और उनकी सत्ता बचाने के लिए दशकों से सेक्युलर और मुस्लिम हितों के संरक्षक होने का दावा करने वाले शरद पवांर , उनकी एन सी पी , कांग्रेस पार्टी और ममता बनर्जी की टी एम् सी तक मैदान में उतरी हुई है | ठाकरे सी विद्रोह करने वाले एकनाथ शिंदे और उनके लगभग 40 – 45 साथी विधायक , सांसद असली हिंदुत्ववादी कहते हुए पुराने संबंधों और समान विचार वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ समझौता कर पुनः सत्ता में भागेदारी के साथ बाल ठाकरे के की कट्टर विचारधारा और सपनों को साकार करने का संकल्प दोहरा रही है | इस तरह की स्थिति तो कभी हिन्दू महासभा की राजनीति में बड़ी भागेदारी के समय में भी देखने को नहीं मिली |

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भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी 1940 सी 1944 तक अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष रहे थे |संगठन से मतभेद होने पर 1949 में उन्होंने हिन्दू महासभा से त्यागपत्र दिया और 1952 में जनसंघ की स्थापना की | इस दृष्टि से हिंदुत्व के मुद्दे पर दशकों से विभिन्न पार्टियों के बीच मतभेद और टकराव होते रहे हैं | लेकिन अब तो असली पक्के हिंदुत्व के रक्षकों के दावेदारों में दिलचस्प होड़ लग गई है | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अन्य धार्मिक संगठनों के लिए यह सुनहरा काल लग सकता है |

वह इसी तरह का भारत देखना चाहते रहे हैं | जिस तरह  उदार पूंजीवादी आर्थिक नीतियों पर पश्चिमी देशों की तरह भारत के राजनीतिक दलों में बहुत हद तक समानता दिखाई दे रही है , वही हिंदुत्व को लेकर हो गई है | इसका एक प्रमाण जीवन भर भाजपा के हिंदुत्व को स्वीकारते हुए 1991 से अर्थ व्यवस्था को क्रांतिकारी ढंग   से बदलने का बजट तैयार करने का दावा करने वाले यशवंत सिन्हा को न केवल कांग्रेस , तृणमूल कांग्रेस , अयोध्या की आडवाणी रथ यात्रा को रोक जेल भेजने वाले लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ही नहीं  बल्कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी राष्ट्रपति के उम्मीदवार के के रूप में पूरा समर्थन दे रही हैं | आदिवासी और महिला हितों के पुराने सारे दावे वायदे भुलाकर वे भाजपा – एन डी ए की महिला आदिवासी अनुभवी बेदाग़ उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू  का विरोध कर रहे हैं | एक तरह से  उनके पाखंड का पर्दाफाश हो रहा है |

महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सत्तारूढ़ दलों में बिखराव होने पर कई नेता अथवा कुछ पर्यवेक्षक भारतीय जनता पार्टी पर तोड़ फोड़ के आरोप लगा रहे हैं | लेकिन यदि सत्ता अस्थिर और अराजक हो जाए , तो प्रतिपक्ष लाभ उठाने की कोशिश क्यों नहीं करेगा ? महाभारत राजनीति की दुनिया के लिए अनूठा ग्रन्थ माना जाता है | इस ग्रन्थ में नैतिक शुद्धता तथा मानव कर्म के बीच रही दुविधा को बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश किया गया है | महानायक युधिष्ठिर विजय के बाद भी राज करने और भला बने रहने के अंतर्द्वंद में फंसे रहते हैं |  तब उन्हें भीष्म पितामह की यह सलाह याद दिलाई जाती है कि एक राजनेता का धर्म नैतिक शुद्धता नहीं हो सकता | राजनीतिज्ञ को व्यवहारिक   मध्य मार्ग अपनाना चाहिए | अच्छे लक्ष्य और व्यापक हितों के लिए दुष्टों को दंड भी देना चाहिए |

 हिंदुत्व ही नहीं  भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी राजनीतिक दलों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं | महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकारों के मंत्री नवाब मालिक और सत्येंद्र जैन के हफ़्तों तक जेल में रहने , गंभीर आपराधिक मामलों में अदालतों से जमानत तक नहीं मिलने के बावजूद पदों पर बनाए रखना सारे आदर्शों को ताक रखना और लोकतंत्र का मजाक जैसा है | पराकाष्ठा महात्मा गाँधी के सत्याग्रह और तिरंगे के दुरुपयोग की भी हो रही है | सत्याग्रह आंदोलन  सत्य और ईमानदारी के सिद्धांतों के लिए  तथा अत्याचार – भ्रष्टाचार के विरुद्ध होते रहे हैं | यह पहला अवसर था , जबकि

 कांग्रेस पार्टी को राजनीतिक गतिविधि के लिए मिले चंदे के एक सौ करोड़ रूपये एक प्रकाशन संस्थान हेराल्ड को देने और करीब  पांच हजार करोड़ रुपए मूल्य  की सम्पत्तियाँ सोनिया राहुल गाँधी के प्रभुत्व वाली निजी कंपनी को देने के गंभीर आपराधिक मामले की जाँच पड़ताल में मात्र जवाब तलब पर कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली सहित देश भर में सड़कों पर ‘सत्याग्रह ‘ के नाम पर तिरंगे के साथ प्रदर्शन कर कानून की धारा 144 और अन्य नियमों को तोड़कर विरोध प्रदर्शन किए |


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कानून तोड़ने वालों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री , कानूनविद सांसद आदि भी शामिल किए गए , ताकि राहुल गाँधी को जन नेता साबित किया जा सके | पश्चिम बंगाल और केरल में संवैधानिक मर्यादाएं तोड़कर ममता और कम्युनिस्ट सरकारों ने राज्यपाल के विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति के अधिकार छीनने के प्रस्ताव पारित कर दिए | प्रदेशों के मुख्यमंत्री की नियुक्ति और शपथ राज्यपाल द्वारा होती है | वे उनकी सरकारों के संरक्षक की भूमिका निभाते हैं | महीनों वर्षों के विचार विमर्श के बाद सेना में युवाओं की संख्या बढ़ाने और सैन्य प्रशिक्षण – भर्ती की अग्निपथ योजना का हिंसक विरोध करवाया जा रहा है | जबकि यह सारा निर्णय और क्रियान्वयन भारतीय सेना द्वारा होना है | न्याय पालिका से अनुकूल निर्णय न मिलने पर नेता अनर्गल आरोप लगाकर न्यायाधीशों का अपमान कर रहे हैं | यह अराजकता क्या किसी संवैधानिक लोकतान्त्रिक सरकारों से कभी कल्पना की जा सकती है ? इसलिए सम्पूर्ण राजनीतिक तंत्र को आत्म निरीक्षण की आवश्यकता है |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।