Jhuth Bole Kauva Kaate: वक्फ कानून, राजनीतिक धोखाधड़ी !

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Jhuth Bole Kauva Kaate: वक्फ कानून, राजनीतिक धोखाधड़ी !

वक्फ बोर्ड और वक्फ कानून फिर विवादों में हैं क्योंकिः

* तमिलनाडु के तिरुचेंदुरई में ग्रामीणों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उनके पूरे गांव को राज्य वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया गया है। मामला तब उजागर हुआ जब एक ग्रामीण ने अपनी बेटी की शादी के लिए अपनी खेती की जमीन बेचनी चाही। राजगोपाल को बताया गया कि उनकी 1.2 एकड़ जमीन तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है और अगर वह इसे बेचना चाहते हैं तो उन्हें बोर्ड से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना होगा।

Jhuth Bole Kauva Kaate: वक्फ कानून, राजनीतिक धोखाधड़ी !

* वक्फ कानून के चलते मेरठ-मुजफ्फरनगर के विवाद का समाधान वहां की जिला अदालत में नहीं बल्कि 700 किलोमीटर दूर लखनऊ के वक्फ ट्रिब्यूनल में होगा।

* वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के अनुसार, देश के सभी वक्फ बोर्डों के पास कुल मिलाकर 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं जो 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। साल 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां 4 लाख एकड़ जमीन पर फैली थी। स्पष्ट है कि बीते 13 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं।

* वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण के खतरे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताय़ी है, पर वक्फ बोर्ड द्वारा लगातार बढ़ रहे कथित अवैध कब्जों को लेकर जनमानस में चिंता है।

* उत्तर प्रदेश सरकार ने 33 साल पुराना आदेश रद्द करते हुए वक्फ में दर्ज सरकारी जमीन का परीक्षण करने का आदेश दिया है। अगर कोई सार्वजनिक जमीन वक्फ संपत्ति में दर्ज कर ली गई थी, तो उसे रद्द कर दिया जाएगा और वह राजस्व विभाग में मूल स्वरूप में दर्ज की जाएगी।

* वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी के श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा-दर्शन की अनुमति की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लायक बताया। मुस्लिम समुदाय और मस्जिद प्रशासन की दलील है कि ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति वक्फ बोर्ड के स्वामित्व में है और मामले को अदालत के समक्ष नहीं सुना जा सकता, केवल वक्फ बोर्ड को ही फैसला करने का अधिकार है।

* अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने वक्फ अधिनियम, 1995 के प्रावधानों की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी है कि वे “अनुचित” और “मनमाना” हैं। उनकी याचिका में अन्य बातों के साथ-साथ तर्क दिया गया है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध है।

* उधर, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने वक्फ कानून 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने के मामले में ख़ुद को पक्षकार बनाने की मांग की है। जमीयत के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में भी इसी तरह की याचिका लंबित है। विरोध में अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिन्द तीन तलाक, हलाला जैसे इस्लामी कानून का समर्थन करता है। यह संस्था अलगाववादियों का केस लड़ती है।

* दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली वक्फ बोर्ड भर्ती में कथित अनियमितता से जुड़े एक मामले में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान को भ्रष्टाचार रोधी शाखा की चार दिनों की हिरासत में भेज दिया।

याचिकाकर्ता, अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय का तर्क है कि भारतीय संविधान में कहीं भी वक्फ की परिकल्पना नहीं की गई है। उन्होंने मांग की है कि कोर्ट घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून 1995 बनाने का अधिकार ही नहीं है। संसद 7वीं अनुसूची की तीसरी सूची में दिए आइटम 10 और 28 के दायरे से बाहर जाकर ट्रस्ट, ट्रस्ट संपत्ति, धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाओं और संस्थानों के लिए कोई कानून नहीं बना सकती।

Jhuth Bole Kauva Kaate: वक्फ कानून, राजनीतिक धोखाधड़ी !

अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट से मांग की है कि वक्फ एक्ट 1995 के तहत जारी कोई भी नियम, अधिसूचना, आदेश अथवा निर्देश हिंदू अथवा अन्य गैर इस्लामी समुदायों की संपत्तियों पर लागू नहीं होगा। वक्फ कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देते हुए उपाध्याय ने कहा कि इनमें वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है, जबकि ट्रस्ट, मठ और अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है।

याचिका में मांग की गई है कि दो धार्मिक समुदायों के बीच के संपत्ति विवाद को ट्रिब्युनल या अर्ध न्यायिक मंच तय नहीं कर सकते। ऐसे विवाद सिर्फ अदालत में ही निपटाए जाएंगे। याचिका में कहा गया है कि वक्फ कानून के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति दर्ज करने की असीमित शक्ति दी गई हैं। इसमें हिंदू और गैर इस्लामिक समुदाय को अपनी निजी और धार्मिक संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्ड द्वारा जारी वक्फ सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह हिंदू और अन्य गैर इस्लामिक समुदायों के साथ भेदभाव है।

वक्फ बोर्ड 1

वक्फ कानून की धारा-40 वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को यह विश्वास होता है कि किसी ट्रस्ट या सोसाइटी की संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो बोर्ड उस ट्रस्ट और सोसाइटी को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है कि क्यों न इस संपत्ति को वक्फ संपत्ति की तरह दर्ज कर लिया जाए। इस बारे में बोर्ड का फैसला अंतिम होगा। उस फैसले को सिर्फ वक्फ ट्रिब्युनल में चुनौती दी जा सकती है। इस तरह ट्रस्ट और सोसाइटी की संपत्ति वक्फ बोर्ड की इच्छा पर निर्भर है.

याचिका में कहा गया है कि वक्फ देश में रेलवे और डिफेंस के बाद जमीन का तीसरे नंबर पर सबसे बड़ा मालिक है। आरोप है कि पिछले 10 साल में वक्फ बोर्ड ने तेजी से दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि वक्फ बोर्ड को अवैध कब्जे हटाने का विशेष अधिकार है। वक्फ संपत्ति का कब्जा वापस लेने के लिए समयसीमा से छूट है। जबकि ट्रस्ट, मठ, मंदिर, अखाड़ा आदि धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधक, सेवादार, महंत, प्रबंधन और प्रशासन देखने वालों को इस तरह का अधिकार और शक्तियां नहीं मिली हुई हैं।

झूठ बोले कौआ काटेः

वक्फ को लेकर पहला कानून 1923 में बनाया गया था, जिसमें बोर्ड को कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया था। इस अधिनियम को बनाने का अभिप्राय बस यही था कि अगर कोई मुसलमान अपनी संपत्ति अल्लाह को देना चाहता है, तो वो अल्लाह को दे सकता और उसकी संपत्ति कि देखरेख वक्फ बोर्ड करेगा। उसके बाद समय-समय पर इसमें कुछ संशोधन होते रहे। प्रथम संशोधन, वक्फ एक्ट 1954 के तहत हुआ, जिसमें इसे थोड़ी बहुत शक्तियां दी गई। वक्फ एक्ट 1984 के समय राजीव गांधी ने इसे विशेषाधिकार दिए, लेकिन 1995 में जब नया वक्फ एक्ट लाया गया तब इसे प्रशासनिक और न्यायिक अधिकार भी दिए गए। और फिर, वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह ने इसमें कुछ संशोधन करके वक्फ बोर्ड की ताकत को आसमान पर पहुंचा दिया। जबकि, इस तरह का कानून इस्लामिक देशों में भी नहीं है।

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वक्फ एक्ट 1995 की धारा 36 और धारा 40 में प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड किसी की भी संपत्ति को चाहे वह प्राइवेट हो, सोसाइटी की हो या फिर किसी भी ट्रस्ट की, उसे अपनी सम्पत्ति घोषित कर सकता है।

धारा 40 (1) के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित किया जाता है तो उसको उस ऑर्डर की कॉपी तक देने का कोई प्रावधान नहीं है और अगर आपने उसके खिलाफ 3 साल के अंदर अपील नहीं की तो वो ऑर्डर फाइनल हो जाएगा।

धारा 52 और 54 के अनुसार, जो सम्पत्ति वक्फ संपति घोषित हो जाएगी, उसके बाद वहां जो रह रहा होगा वो अतिक्रमणकारी माना जाएगा। उसके बाद वक्फ बोर्ड डीएम को जगह खाली कराने का निर्देश देगा, जिसे मानने के लिए डीएम बाध्य होगा।

धारा 28 और 29 के अनुसार, वक्फ बोर्ड का जो ऑर्डर होगा उसका पालन स्टेट मशीनरी एवं डीएम को करना होगा। यहां सवाल तो उठता ही है कि क्या ऐसा आधिकार किसी पंडित, मठाधीश या फिर किसी अन्य हिन्दू ट्रस्ट को दिया गया है?

धारा 85, इसके तहत अगर कोई मामला वक्फ से संबंधित है तो आप दीवानी दावा दायर नहीं कर सकते है, मतलब आप वक्फ ट्रिब्यूनल में जाने के लिए बाध्य होंगे।

धारा 89, इसमें अगर आप सिविल कोर्ट जाना चाहते है तो आपको वक्फ बोर्ड को दो महीने का नोटिस देना पड़ेगा।


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धारा 101 के अनुसार वक्फ बोर्ड के सदस्य सरकारी कर्मचारी होते हैं। किसी भी रूप से इसका सदस्य या अंग बनने के लिए आपका मुसलमान होना अनिवार्य है। क्या किसी भी हिंदू संस्थान में मठाधीश, शंकराचार्य, पंडित को सरकारी कर्मचारी माना गया है?

तो क्या, वक्फ बोर्ड पूर्ण रूप से एक मजहबी संस्था है जो मजहब की आड़ में भू जिहाद को बढ़ावा दे रहा है, या इस संस्था को एकाधिकार प्रदान कर भारत के भू संसाधन पर मुस्लिमों का वर्चस्व स्थापित किया जा रहा है। तिरुचेंदुरई गांव, जिसका जिक्र शुरू में किया गया है, में किसी भी संपत्ति के मालिक मुसलमानों के बारे में कोई डेटा नहीं है। यहां तक ​​​​कि दस्तावेजों से संकेत मिलता है कि संपत्तियों का पुनर्वास 1927-1928 में हुआ था।

गांव में 1500 साल पुराना सुंदरेश्वर मंदिर है जिसमें 369 एकड़ संपत्ति है, और गांव के पूर्व पंचायत अध्यक्ष दानापाल के अनुसार, इसे साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध हैं। जबकि, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अब्दुल रहमान का कहना है कि जमीन वक्फ बोर्ड की है, निवासी अवैध रूप से रह रहे है। उनका दावा है कि ग्रामीण सांप्रदायिक मुद्दों के चलते बयान दे रहे हैं।

दूसरी ओर, अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां सवाल कानून का हो वहां धर्म को लाने की क्या जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस वक्फ ऐक्ट के खिलाफ कोई फैसला लिया गया तो कब्जा करने वालों की चांदी हो जाएगी। उन्हें खुली छूट मिल जाएगी। आपत्ति जताते हए कोर्ट ने कहा कि वक्फ एक्ट एक रेगुलेटरी कानून है जो वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए है। अगर इस कानून को निरस्त कर दिया जाए तो इससे केवल अतिक्रमणकारियों को ही लाभ मिलेगा।

बोले तो, वक्फ अधिनियम के बहुतेरे प्रावधान ऐसे भी हैं, जिनका धर्मनिरपेक्ष भारत में कोई स्थान नहीं है। अकेले वक्फ से निपटने के लिए एक अलग कानून नहीं बनाया जा सकता है, जब अन्य धर्मों के बंदोबस्त को नियंत्रित करने के लिए इसी प्रकार का केंद्रीय कानून नहीं है। यह तो अन्य धर्मों के साथ की गई राजनीतिक धोखाधड़ी है।

और ये भी गजबः

दिसम्बर 2021 में गुजरात में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका स्थित बेट द्वारिका के दो टापू पर अपना दावा ठोक दिया था। वक्फ बोर्ड ने अपने आवेदन में दावा किया कि बेट द्वारका टापू पर दो द्वीपों का स्वामित्व वक्फ बोर्ड का है। गुजरात उच्च न्यायालय ने इस पर आश्चर्य जताते हुए पूछा कि कृष्ण नगरी पर आप कैसे दावा कर सकते हैं और इसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया।

बेट द्वारका 1

बेट द्वारका में करीब आठ टापू है, जिनमें से दो पर भगवान कृष्ण के मंदिर बने हुए हैं। प्राचीन कहानियां बताती हैं कि भगवान कृष्ण की आराधना करते हुए मीरा यहीं पर उनकी मूर्ति में समा गई थी। बेट द्वारका के इन दो टापू पर करीब 7000 परिवार रहते हैं, इनमें से करीब 6000 परिवार मुस्लिम हैं। यह द्वारका के तट पर एक छोटा सा द्वीप है और ओखा से कुछ ही दूरी पर स्थित है। वक्फ बोर्ड इसी के आधार पर इन दो टापू पर अपना दावा जताता है।

बताते चलें कि महाभारत के 36 साल बाद ही द्वारकापुरी समुद्र में विलीन हो गई थी। 9000 वर्ष पुराना यह उत्कृष्ट नगर 4000 साल पहले समुद्र में समा गया था। पहले माना जा रहा था कि ईसा पूर्व भारत में उच्च कोटि की कोई सभ्यता नहीं रही होगी, लेकिन कार्बन डेटिंग से अब यह स्पष्ट हो गया है कि द्वारका 9000 साल पुरानी नगरी है। हिमयुग के बाद जलस्तर 400 फीट बढ़ जाने से इस पौराणिक नगरी के समुद्र में डूबने की बात कही जाती है।