कल्पना से आगे निकलने वाली फिल्म है ‘कांतारा’  

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कल्पना से आगे निकलने वाली फिल्म है ‘कांतारा’  

विलुप्त होती परंपराओं को सहेजकर रखने का संदेश देती कन्नड़ भाषी फिल्म ‘कांतारा’ विशिष्ट शैली की अनोखी फिल्म है। लोक नृत्य, पारंपरिक वेशभूषा और जंगल की खूबसूरती बयां करती फिल्म की कहानी भी अद्भुत है। ‘कांतारा’ एक कन्नड़ शब्द है जिसका अर्थ होता है एक रहस्यमयी जंगल। फिल्म अपने कथानक, निर्देशन की पकड़, कलाकारों के अभिनय सभी बेजोड़ कही जा सकती है। सबसे अनोखी बात ये कि कोई भी कलाकार ओवर एक्टिंग करते नजर नहीं आता, जो कि हिंदी फिल्मों की सबसे बड़ी कमजोरी है।
तमिलनाडु में वर्षों से चली आ रही भूत कोला एक परंपरा है। जो शांति सुनिश्चित करने के लिए की जाती है। इसी के इर्द-गिर्द घूमती ‘कांतारा’ की कहानी  जो 1847 से 1990 तक के कालखंड को दर्शाती है। फिल्म में ऋषभ शेट्टी जो फिल्म में मुख्य किरदार निभा रहे हैं, की प्रतिभा प्रशंसनीय है। वे फिल्म के डायरेक्टर भी हैं और उन्होंने स्क्रीन प्ले भी लिखा है। आमतौर पर एक्शन थ्रिलर फिल्म में देखने में आता है कि एक्शन हमारी कल्पनाओं को भी लांघकर बहुत आगे निकल जाती है। लेकिन ‘कांतारा’ बिल्कुल अलग है। जिसमें शिवा (ऋषभ शेट्टी) मुख्य किरदार निभा रहा एक अल्हड़-सा, अपनी मस्ती में जीने वाला, बेपरवाह आदमी जो अपने गांव, अपनी लोक-संस्कृति के लिए हरदम मर मिटने को तैयार रहता है। सबसे अच्छी बात यह है कि फिल्म में कहीं भी ओवर एक्टिंग नहीं दिखाई दी। सधी हुई, संतुलित अदाकारी से शिवा सभी का दिल जीतते हुए दिखाई दिए। कम्बाला भैंस की दौड़ से गति पकड़ती कहानी अंत तक अपने दर्शकों को खुद से बांधे रखती है।
सामान्य रूप से जमीनी विवाद जो गांव में आज भी चाहे वो वास्तविक घटना हो या काल्पनिक हर घर में देखने को मिलता ही है तो कुछ इसी तरह से कहानी जमीन के विवाद, सुखमय संगीत और लोक नृत्य के साथ ही एक देव-पूजा और खूबसूरत जंगल के ताने-बाने में बुनी है। जहां पर पारंपरिक वेशभूषा में एक ही परिवार के लोगों द्वारा निभाई जाने वाली यह परंपरा जिसमें लोक नृत्य होता है। माना जाता है कि उस समय एक दिव्य शक्ति आपके भीतर प्रवेश करती है और जंगल के देवता आपको अपनी बस्ती, अपने जंगल को बचाने एवं सुख शांति प्रदान करने में मदद करते हैं। ‘कांतारा’ जब अपने अंतिम पांच से दस मिनट में पहुंचती है तब ऋषभ शेट्टी की एक्टिंग देखते ही बनती है कहीं फिल्म में मार्मिक दृश्य है तो कहीं हास्य का पुट भी है। कुल मिलाकर गजब की सिनेमैटोग्राफी है। फिल्म में जो हल्का-फुल्का रोमांस दर्शाया गया वो नहीं भी होता तो भी यह फिल्म बेहतरीन साबित होती।

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सभी कलाकारों ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है। विशेष रूप से किशोर कुमार जिन्होंने ‘मुरलीधर’ का रोल प्ले किया है। उनकी अदाकारी बेहद उम्दा है। जैसा कि अक्सर फिल्म की कहानियों में होता है एक सस्पेंस क्रिएट किया जाता है, इसमें वो भी है। कब क्लाइमैक्स के बाद सीन पलट जाता है, कब विलेन-हमदर्द और साथी-विलेन बन जाता है एहसास ही नहीं होता। कुल मिलाकर शिवा की माँ किरदार निभा रही ‘मानसी जी एवं सभी कलाकारों ने अपने किरदार को जस्टिफाई किया है।
एक तरफ राजा-महाराजाओं द्वारा जंगल से लकड़ी कटवा कर गांव के लोगों का दुरुपयोग करना और जंगल को नुकसान पहुंचाना और अपना व्यापार बढ़ाना तो दूसरी तरफ फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में मुरलीधर (किशोर कुमार जी) का जंगल के प्रति प्रेम, एक ईमानदार ऑफिसर के रूप में देखने को मिलता है। कुल मिलाकर अपनी लोक संस्कृति एवं परंपरा को निभाने का संदेश देती ये खूबसूरत फिल्म ‘कांतारा’ सभी को देखनी चाहिए।
सामान्यतः फिल्म की सफलता का पैमाना उसकी बॉक्स ऑफिस कमाई को माना जाता है। इस नजरिए से भी देखा जाए तो ‘कांतारा’ ने कमाल किया है। कन्नड़ की इस फिल्म कांतारा बॉक्स ऑफिस पर छाई है। देश में 400 करोड़ के शानदार कलेक्शन करने के बाद फिल्म ने विदेश में भी झंडे गाड़े। बॉक्स ऑफिस पर ‘कांतारा’ की आंधी अभी भी चल रही है। फिल्म की कहानी और कॉन्सेप्ट को काफी पसंद किया गया। साउथ के सुपरस्टार कमल हासन ने भी फिल्म की प्रशंसा की।
कांतारा की कमाई की बात करें तो ट्रेड एनालिस्ट तरन आदर्श के अनुसार, फिल्म का वर्ल्ड वाइड ग्रॉस कलेक्शन 400.90 करोड़ हो गया है। फिल्म ने सबसे ज्यादा कमाई कर्नाटक में की। इसके बाद आंध्र और तेलंगाना में फिल्म ने अच्छा कलेक्शन किया है। ओवरसीज 44.50 करोड़ कमाए है। वहीं, नॉर्थ इंडिया में कांतारा का कलेक्शन कुछ ही दिनों में 100 करोड़ पार कर जाएगा।

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वाणी अमित जोशी

वाणी जोशी कई सालों से साहित्य लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे सामाजिक विषयों पर लेख लिखती हैं, साथ ही कविताएं और गीत भी लिखती हैं। साहित्यिक मंचों पर वे सूत्रधार की भूमिका भी निभाती हैं। देशभर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख और कविताएं प्रकाशित होती हैं।