हर परिस्थिति में मुस्कुराते रहिए, यही कृष्ण का संदेश है…
विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्म भादों में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। कृष्ण देवकी और वासुदेव के पुत्र हैं। हिंदू धर्मावलंबी इसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। इसे जन्माष्टमी वा गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है। कृष्ण जन्म की खुशी हर वर्ष हिंदू परिवारों में त्यौहार के रूप में मनाई जाती है।
श्रीकृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं, जो तीनों लोकों के तीन गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं। भगवान का अवतार होने के कारण से श्रीकृष्ण जी में जन्म से ही सिद्धियां उपस्थित थीं। उनके माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का अन्त करेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वसुदेव और देवकी को कारागार में रखने पर भी कंस कृष्ण जी को खत्म नहीं कर पाया। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि, कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं। और फिर बाल श्रीकृष्ण का पालन पोषण गोकुल में नन्द और यशोदा के घर होता है। कृष्ण भक्तों द्वारा जन्माष्टमी पर्व उपवास रखकर, कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात्रि में जागरण करके मनाई जाती है। मध्यरात्रि के जन्म के उपरान्त, शिशु कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है, फिर एक पालने में रखा जाता है। फिर भक्त भोजन और मिठाई बांटकर अपना उपवास पूरा करते हैं। महिलाएं अपने घर के द्वार और रसोई के बाहर छोटे-छोटे पैरों के चिन्ह बनाती हैं जो अपने घर की ओर चलते हुए, अपने घरों में श्रीकृष्ण जी के आने का प्रतीक माना जाता है।
कृष्ण को राक्षसों के वध, महाभारत और गीता का उपदेश युद्ध स्थल पर अर्जुन को देने के लिए जाना जाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। श्रीकृष्ण के अनुसार व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता, इसलिए स्वयं का आकलन करना बेहद जरूरी है। गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने गुणों और कमियों को जान लेता है वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके हर काम में सफलता प्राप्त कर सकता है।
हमारा मन ही हमारे दुखों का कारण होता है। ऐसे में श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जिस व्यक्ति ने अपने मन पर काबू पा लिया वह मन में पैदा होने वाली बेकार की चिंताओं और इच्छाओं से भी दूर रहता है। साथ ही व्यक्ति को अपने लक्ष्य को भी आसानी से प्राप्त कर लेता है।
क्रोध में व्यक्ति नियंत्रण खो बैठता है और आवेश में आकर गलत कार्य कर देता है। यहां तक कि कभी-कभी गुस्से में व्यक्ति खुद का अहित कर बैठता है। गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि क्रोध को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। यदि गुस्सा आए तो स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें।
गीता के अनुसार व्यक्ति को संदेह या संशय का स्थिति में नहीं रहना चाहिए, जो लोग संशय की स्थिति में रहते हैं, उनका भला नहीं हो सकता है। जीवन में हर व्यक्ति का स्पष्ट नजरिया होना चाहिए।
माना जाता है कि जो भी व्यक्ति गीता की इन पांच बातों का जीवन में अनुसरण कर लेता है, वह हर काम में जरूर विजय हासिल कर लेता है। और उसका जीवन सफल हो जाता है।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार मनुष्य से वह सब करवाता है जो उसके लिए सही नहीं है। अंत में यह अंहकार ही उसके विनाश का कारण बनता है। इसलिए जीवन में जितना जल्दी हो सके अपना अहंकार त्याग देना चाहिए।श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो मनुष्य को जीने का सही ढंग बताता है। गीता जीवन में धर्म, कर्म और प्रेम का पाठ पढ़ाती है। श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी माना गया है। गीता संपूर्ण जीवन दर्शन है और इसका अनुसरण करने वाला व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ होता है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण के उपदेशों का वर्णन है जो उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए थे। गीता की बातों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को खूब तरक्की मिलती है। गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि मनुष्य का विनाश कब होने लगता है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि किसी भी इंसान का पतन उस समय शुरू हो जाता है जब वो अपनों को गिराने की सलाह गैरों से लेना शुरु कर देता है। गीता में लिखा है, सरल व्यक्ति के साथ किया गया छल आपकी बर्बादी के सारे द्वार खोल देता है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस धरती पर कर्मों की चपेट से न तो कोई बचा है और ना ही बचेगा। जिसने जैसा किया है उसे वैसा भरना ही होगा। आज नहीं तो कल उसके कर्म उसके सामने जरूर आएंगे।
श्रीकृष्ण के अनुसार किसी का साथ ना मिलने पर कभी भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई दे या ना दें, ईश्वर हर मुश्किल घड़ी में साथ देता है।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब आत्याचारों को मुस्कुरा कर सहा जाता है तो उस इंसान का बदला भगवान स्वयं लेते हैं। इसलिए किसी भी परिस्थिति में मुस्कुराना नहीं छोड़ना चाहिए। तो हर व्यक्ति के चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहे, जन्माष्टमी पर्व पर यही शुभकामना है…।