Travel Diary 4: धारचूला से नाबी गाँव – ऊँचाई की ओर शिवमय आरोहण

582

चतुर्थ दिवस- आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…

Travel Diary 4: धारचूला से नाबी गाँव – ऊँचाई की ओर शिवमय आरोहण

महेश बंसल, इंदौर

आज की यात्रा सिर्फ एक भौगोलिक चढ़ाई नहीं थी, बल्कि यह शारीरिक सहनशक्ति और मानसिक तैयारी का भी परीक्षण थी।
हमें धारचूला (940 मीटर) से नाबी गाँव (3300 मीटर) तक पहुँचना था – यानी लगभग 2400 मीटर की ऊँचाई एक दिन में गाड़ियों से ही तय करनी थी।

WhatsApp Image 2025 07 03 at 16.28.53 1

पंतनगर से साथ आए वाहन को यहीं विराम देना पड़ा, और स्थानीय वाहन एवं सारथियों को साथ लेकर आगे तीन दिन की यात्रा करना थी। क्योंकि स्थानीय टैक्सी यूनियन के नियमानुसार बाहरी वाहन आगे नहीं जा सकते। पहले यह व्यवस्था थोड़ी जटिल लगी, लेकिन जब मार्ग की हालत देखी – संकरी सड़कें, लैंडस्लाइड से क्षतिग्रस्त सड़कें , बड़े-बड़े पत्थर – तब यह नियम पूरी तरह तर्कसंगत प्रतीत हुआ।

WhatsApp Image 2025 07 03 at 16.28.53

जलप्रपातों और झरनों की भूमि – ऐलागाड़ और ‘प्राकृतिक कार वॉश’

रास्ते में ऐलागाड़ नामक स्थान पर एक भव्य झरना दिखाई दिया —
ऊँचाई से गिरता यह जलप्रपात मानो काली नदी से मिलने को व्याकुल था।
उसकी गूंज, वेग और दृश्यावली – किसी भी प्रसिद्ध हिल स्टेशन के झरनों को मात दे रही थी।

थोड़ा आगे एक और अद्भुत दृश्य — एक ऐसा झरना जो सीधे सड़क पर गिरता था।
हर वाहन वहाँ से धीमे-धीमे गुजरता – मानो पर्वत स्वयं मुसाफिरों की थकान धो रहा हो।
बिना किसी मशीन के, प्रकृति द्वारा रचित ‘इन-कार वॉश’!

 

गुंजी नहीं, नाबी

इस मार्ग पर अधिकांश यात्री गुंजी (3200 मी.) में विश्राम लेते हैं, जिससे शरीर को ऊँचाई के अनुरूप अनुकूलित किया जा सके।
लेकिन हमारी टीम की विश्राम-स्थली थी – नाबी गाँव, जो वहाँ से भी दो किलोमीटर आगे था।

यहाँ हमारा होम स्टे एक तंबू-नुमा चद्दरों से बनी संरचना था, लेकिन उसमें अटैच वाशरूम, सौर ऊर्जा,

 

चार्जिंग पॉइंट, और गर्म पानी की व्यवस्था थी।

शाम 6 से रात 10 बजे तक बिजली उपलब्ध रहती थी। ठंड हल्की थी – एक जैकेट पर्याप्त थी।
जियो का टॉवर तो था, लेकिन इंटरनेट नहीं चल रहा था – और यही अच्छा लगा। प्रकृति की बातचीत में नेटवर्क की खामोशी सुंदर लगती है।

शिव मंदिर तक पदयात्रा – हिमालय के साक्षात दर्शन

होम स्टे से लगभग 200 मीटर ऊपर एक छोटी पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर स्थित था।
वहाँ बैठकर हिमालय की श्वेत-रजत चोटियों को निहारना, बहती हवा की ध्वनि को सुनना और नीचे चलती गाड़ियों की लयबद्ध गति को देखना – आत्मा को सुकून देने वाला था।

मंदिर के मार्ग में पर्वतीय झाड़ियों में खिले सफेद फूल – मानो कठिनाइयों के मार्ग में प्रकृति के हस्ताक्षरित आश्वासन हों।

कैंप फायर की गरिमा – रिश्तों की ऊष्मा में लिपटी रात

रात्रि भोज के बाद सभी यात्री खुले आकाश के नीचे एकत्र हुए।
कैंप फायर की धीमी आँच, आत्मीय ठिठोली, हल्के-फुल्के हास्य और सहयात्रियों के बीच के संवाद –
ठंड और थकान दोनों कहीं पीछे छूट गए।

WhatsApp Image 2025 07 03 at 16.28.55

सभी ने तय किया कि अगले दिन प्रस्थान प्रातः 5 बजे किया जाएगा।
और फिर सब अपने-अपने टेंट में विश्राम हेतु चले गए।

आज का दिन – शिव की छाया में आत्मा को संबल देने वाला यह दिन केवल ऊँचाई की भौगोलिक चढ़ाई नहीं था, बल्कि एक ऐसा अनुभव था जिसने प्रकृति की शिक्षाओं, शिवमयी शांति और मनोबल को आत्मा के भीतर स्थापित किया।

(क्रमशः)

(कल के अंक में आदि कैलाश, पार्वती कुंड एवं गणेश पर्वत के वीडियो सहित दिव्य दर्शन)

Travel Diary-3: पिथौरागढ़ से धारचूला – सीमाओं और सौंदर्य का संगम 

Travel Diary-2 : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा… 

Travel Diary : आदि कैलाश और ॐ पर्वत की वह अलौकिक यात्रा…