Khandwa By-Election : मतगणना से पहले अजीब सा सन्नाटा!

जीत का दावा करने वालों की चेहरे से हवाईयां उड़ रही

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खंडवा से जय नागड़ा की विशेष रिपोर्ट

Khandwa : लोकसभा उपचुनाव के नतीजे कल 2 नवम्बर को घोषित होने के बाद ही यहाँ का चुनावी परिदृश्य स्पष्ट होगा। फ़िलहाल यहाँ के राजनीतिक परिदृश्य में तूफ़ान के पहले का गहरा सन्नाटा दिख रहा है। जीत के दावे भले दोनों तरफ़ से हो रहे हों, लेकिन परिणामों को लेकर उनके चेहरे की हवाईयां उडी हुई है। khandwa संसदीय क्षेत्र का मतदाता का मिज़ाज़ समझना आसान नहीं ह, वह कब क्या अप्रत्याशित परिणाम देगा। पूरे चुनाव के दौरान आम मतदाता की गहरी चुप्पी ने ही नेताओं के आत्मविश्वास को डगमगा दिया है।
खंडवा लोकसभा उपचुनाव के नतीजों को लेकर न तो कोई एक्ज़िट पोल हुआ और न किसी प्रामाणिक एजेंसी ने कोई सर्वे किया, जिससे मतदाताओं के मन की थाह जानी जा सके। इसलिए यहाँ परिणामो को लेकर बड़ा धुंधलका छाया हुआ है। यहाँ जीत और हार के दावों को लेकर सट्टा बाज़ार भी ठिठका हुआ है। इसलिए नतीजों को लेकर उत्कंठा बहुत ज्यादा है। दरअसल, यहाँ भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल के नाम पर जहाँ मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी रामनारायण सिंह के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। चुनाव मैदान में डटे 14 प्रत्याशी चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकेंगे, इस बात की संभावना बहुत कम है। इनमें से कितने अपनी ज़मानत बचा सकेंगे यह देखना ही दिलचस्प होगा।
पिछले चुनाव के आंकड़ों को देखें, तो नोटा (NOTA) को मिलने वाले वोट निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलने वाले वोटो से अधिक रहे हैं। 2014 के वोट लोकसभा आम चुनाव में नोटा में 17149 डाले गए थे, तो 2019 में यह आंकड़ा 16005 था। गौरतलब है कि दोनों प्रमुख पार्टियों को छोड़ किसी भी अन्य दल या निर्दलीय प्रत्याशी को NOTA से ज्यादा वोट नहीं मिले और कोई अपनी ज़मानत भी नहीं बचा सका। इस बार भी कांग्रेस और भाजपा में ही सीधा मुक़ाबला है।
2019 में Khandwa की यह सीट भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान ने 2 लाख 73 हज़ार 343 मतो के बड़े अंतर से जीती थी। अब भाजपा के लिए दो बड़ी चुनौतियाँ है, पहला इस सीट पर अपना कब्ज़ा बरक़रार रखना और दूसरा जीत के इस अंतर को भी कम नहीं होने देना। भाजपा के दिग्गज नेता भी यह तो स्वीकार रहे हैं कि जीत का इतना बड़ा अंतर तो अब बरक़रार रखना मुश्किल है! क्योंकि, अब भाजपा के पास न तो नंदकुमार सिंह चौहान जैसा प्रभावी चेहरा है, न व्यक्तित्व। इधर, महंगाई और बेरोजगारी जैसे बड़े मसलों को लेकर पहले ही भाजपा बैकफुट पर है।
भाजपा के रणनीतिकार भी यहाँ 50 हजार से एक लाख मतों से जीत का दावा कर रहे हैं। इस दावे में भी आत्मविश्वास की कमी दिखती है। उधर, कांग्रेस इसलिए उत्साहित नज़र आ रही है कि उसके पास खोने को कुछ नहीं है। महंगाई और कोरोना के बाद गहराई आर्थिक संकट से नाराज़ लोगो के स्वाभाविक वोट कांग्रेस को मिलेंगे, यह उनका विश्वास है। हालाँकि, कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक भी अब उससे दूरियां बढ़ाता दिख रहा है। इस क्षेत्र के अधिकांश अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत घटना इसके साफ़ संकेत है।
इस चुनाव में हर बड़े चेहरे पर डर हावी
इस पूरे चुनाव में सक्रिय सभी चेहरों पर उत्साह से ज्यादा डर हावी रहा है। कांग्रेस के अरुण यादव को डर था, कि यह चुनाव वे जीत नहीं सके तो उनके राजनीतिक भविष्य पर ख़तरा बढ़ सकता है। इस डर के चलते उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। उनके ही पार्टी के बड़े नेता कमलनाथ को डर था कि कहीं अरुण यादव जीत गए तो प्रदेश अध्यक्ष का उनका दावा मजबूत न हो जाए। ऐसी ही हालत भाजपा की भी है, यहाँ टिकट के प्रबल दावेदार हर्षवर्धन सिंह चौहान और पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस को डर है कि ज्ञानेश्वर पाटिल यदि जीत गए, तो अगले चुनाव में उनका टिकट काटना संभव नहीं है। ऐसे में उनका दावा ख़त्म होगा और पार्टी में एक और प्रतिद्वंदी उनके सामने चुनौती देगा। अर्चना चिटनीस तो बुरहानपुर विधानसभा से फिर दावा कर सकती है! लेकिन, हर्षवर्धन की तो यह राजनीतिक भ्रूण हत्या ही हो गई। सबसे बड़ा डर तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने है, जिन्हें इस सीट के हारने पर उनके अपनी ही पार्टी के विरोधी उन्हें फिर घेर सकते है। उनकी कुर्सी पर फिर ख़तरा मंडरा सकता है। बहरहाल ये डरे हुए लोग एक कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन की टैगलाइन ‘डर के आगे जीत है’ से अपने मन को जरूर समझा सकते हैं।