

Kissa-A-IAS:IAS Ramesh Gholap : लगन और संघर्ष से सफलता पाने की अनोखी कहानी!
अभी इस बात को ज्यादा दिन नहीं बीते, जब एक कलेक्टर की फोटो काफी वायरल हुई थी, जिसमें वे गांव की सड़क के किनारे अपनी कार खड़ी करके जमीन पर पैर फैलाकर बैठे किसी बुजुर्ग से खिलखिलाकर बातें कर रहे थे। बाद में बताया गया ये फोटो उनके गांव की ही है। फोटो अनपेक्षित इसलिए कही जा सकती है कि कलेक्टर कैसे ओहदे वाला अफसर सामान्यतः ऐसा नहीं करते। इस आईएएस अधिकारी ने जो किया वो उसे सराहा भी गया। दरअसल, ये अधिकारी रमेश घोलप हैं, जो जमीन से जुड़े रहे और बड़े संघर्ष के बाद इस पद तक पहुंचे। लेकिन, वे आज भी वे उतने ही सहज और आम आदमी की तरह हैं। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक छोटे से गांव महागांव में जन्मे रमेश ने बचपन से ही कई सारी मुश्किलों का सामना किया।
रमेश घोलप की गिनती झारखंड के तेज तर्रार आईएएस अधिकारियों में होती है। लेकिन, उनका सिविल सर्वेंट बनने का सफर आसान नहीं था। घर के हालात भी ऐसे नहीं थे कि वे आईएएस बनने का सपना देखें। उन्होंने मां और भाई के साथ गांव-गांव घूमकर चूड़ियां भी बेची। उनके पिता साइकिल रिपेयरिंग का काम करते थे। उन्हें शराब पीने की लत थी, इसलिए घर में हमेशा आर्थिक परेशानी बनी रहती थी। मां ने चूड़ी बेचने का काम भी इसीलिए शुरू किया था। लेकिन, उनकी मां शिक्षा के महत्व को जानती थी इसलिए वे उन्हें हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने को कहती। घर की स्थिति को सुधारने के लिए वे और उनके भाई भी 10वीं के बाद अपनी मां के साथ चूड़ी बेचने लगे थे। 12वीं के बाद उन्होंने डीएड का कोर्स किया। इसके बाद ओपन यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री ली।
पिता की मौत रमेश के जीवन का अहम मोड़ साबित हुआ। उनको इस बात का अहसास हो गया कि गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता शिक्षा हो सकता है। पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करते हुए, रमेश ने एक ओपन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में अपनी डिग्री पूरी की। साल 2009 में शिक्षक बनने के बाद भी उनकी असल महत्वाकांक्षा कुछ और थी। कॉलेज के दिनों में रमेश की मुलाकात एक तहसीलदार से हुई, जहां से उन्हें करियर में बड़े सपने देखने की प्रेरणा मिली। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा (CSE) की तैयारी करने का फैसला करके रमेश पुणे चले गए। 2010 में पहली असफलता के बाद साल 2012 में रमेश घोलप ने विकलांग कोटे के तहत प्रभावशाली अखिल भारतीय रैंक (AIR) 287 से यूपीएससी परीक्षा को पास कर लिया, जिसके साथ उनका आईएएस अधिकारी बनने का सपना भी पूरा हुआ पूरा हुआ। रमेश घोलप झारखंड के ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं।
अपनी प्रारंभिक पढ़ाई अपने गांव से ही प्राप्त की। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के घर चले गए। साल 2005 में उनके पिता का देहांत हो गया। रमेश के पास अंतिम संस्कार में जाने के लिए बस का किराया भी नहीं था। रमेश के चाचा के घर से उनके घर तक के उस समय केवल 7 रुपये लगते थे। विकलांग होने के चलते उनका 2 रुपये ही किराया लगता था। मगर आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उनके पास 2 रुपये तक नहीं थे। वे पड़ोसियों की मदद से ही अंतिम संस्कार में पहुंच सके। लेकिन, उन्होंने परिस्थितियों से हार मानने के बजाए उससे संघर्ष किया और अपने लक्ष्य को पा लिया।