बात पढ़ने सुनने में बड़ी अजीब लग रही होगी परंतु यह एक प्राकृतिक सत्य है कई बार हमारा शरीर अलग-अलग तरीकों से हमें बीमारियों की जानकारी कुछ प्रमाण के रूप में देता है। जिस तरह से बीमारी की जानकारी देता है उसी तरह हमारा मन हमें कई बीमारी से कैसे मुक्त हो उस बारे में भी सूचना देता है। परंतु यहां आकर कई व्यक्ति जोकि कि ज्यादातर नेगेटिव थॉट में रहते हैं हम अपने मन की नहीं सुन पाते। उनके दिमाग में एक ही फितुर रहता है कि डॉक्टर को दिखा दे।
जब छोटी-छोटी कई बीमारियों का संग्रह शरीर में हो जाता है आगे जाकर इन्हीं बिमारियो से व्यक्ति के ऑर्गन खराब होने शुरू होते हैं तभी वास्तविकता में डॉक्टर को दिखाना चाहिए और यदि शुरू से ही जो व्यक्ति अपने मन की नहीं सुनते हैं तो उन्हे डॉक्टर को दिखा ही देना चाहिए। हमारे आयुर्वेद में, प्राकृतिक इलाज में और इन सब से मिलकर जो हमारा घरेलू इलाज बनता है यदि हम शुरू से इसका ध्यान रखें तो कई बीमारियां आएगी ही नहीं और यदि आई तो घरेलू इलाज लेते ही शीघ्र चली जाएगी।
व्यक्ति का मन कह देता है कि हमें कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, यह चीज खाना चाहिए या यह चीज नहीं खाना चाहिए, इन सब बातो का हमें गौर करना चाहिए। मन जब यह सब सूचना देता है तब हमारा दिमाग मन की बात न सुनते हुए जिव्हा के स्वाद की बात सुनता है और वही चीज खाता है जिसका स्वाद अच्छा लगता है जबकि मन कहता यह नहीं खाऊं। जब भी सेहत में कुछ गड़बड़ी लगती है तो मन दुखी होता है जिससे हमें बेचैनी, नींद नहीं आना, चिड़चिड़ा होना और किसी भी बात पर रुचि नहीं होना यह सब होता है। और जब शरीर में स्वच्छता रहती है तो मन भी प्रसन्न रहता है और सभी बातों में रूची जाग जाती है। इसलिए मन की जरूर सुने।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)