भीमबेटका के समान बागबाहरा में भी हैं ‘राक पेंटिंग
विक्रमादित्य सिंह
बागबाहरा के एक इतिहासकार श्री विजय शर्मा ने जो बागबाहरा के पास के एक ग्राम कसेकेरा की शाला में शिक्षक हैं और उन्होंने इतिहास विषय पर पीएचडी की है, उन्होंने कुछ माह पहले मुझे यह बताया था की भीमबेटका के समान एक ‘राक पेंटिंग'( शैल चित्र) बागबाहरा ब्लॉक की एक पहाड़ी में है। मुझे तब से इसे देखने की तीव्र इच्छा थी। आज मैं अपने छोटे भाई के साथ उस शैलाश्रय को देखने गया। ट्रेन से जब बागबाहरा से रायपुर की ओर जाते हैं तो अरंड नामक स्टेशन से दाईं ओर, एक मध्यम आकार के पहाड़ की श्रृंखला दिखाई देती है। इसी पहाड़ की एक गुफा में शैलाश्रय एवं शैल चित्र पाए गए हैं।
भादो का महीना है। चार-पांच दिनों पहले इस क्षेत्र में खूब वर्षा हुई है। हालांकि पिछले तीन दिनों से धूप खिली हुई है, अतः चारों तरफ हरियाली व्याप्त थी। सभी तरफ धान के खेत लहलहा रहे थे एवं उनमें पानी भरा हुआ था। आधुनिक ढंग से सब्जी की खेती के फार्म हाउस एवं मछली पालन के तालाब थे। रास्ते के गांवों में विश्वकर्मा पूजा के कारण लोग गुलाल से सरोबार थे। बागबाहरा से लगभग 25 किलोमीटर पक्की सड़क के निकट ‘चंपई माता मंदिर’ तक जाने के लिए सीढ़ियां शुरू होती है। पहाड़ के नीचे एक छोटे से पक्के मकान में जनजाति वृद्ध परिवार, जिसमें केवल पति-पत्नी है, रहते हैं। पति श्री खुमान सिंह ध्रुव की आयु लगभग 72 वर्ष है, जो निकट के जनजाति बहुल ग्राम ‘बेलर’ के निवासी हैं। उनकी ग्राम बेलर में लगभग 15 एकड़ कृषि भूमि है, जिस पर उनके पुत्र कृषि करते हैं । ध्रुव जी ऊपर पहाड़ पर स्थित चंपई माता मंदिर की देखरेख एवं पूजा पाठ करते हैं। आज तीजा का त्यौहार था अतः उनका परिवार यहां आया हुआ था। अच्छी खासी चहल- पहल थी।
हमने ध्रुव जी को अवगत कराकर, पहाड़ पर चढ़ाई शुरू की, लगभग ढाई सौ सीढ़ियां हैं। इस मौसम में कम ही यात्री ऊपर जाते हैं, अतः सीढ़ियों पर काई जमा थी एवं खूब सारे बंदर उछल- कूद कर रहे थे, शाम होने को थी अतः हम लोगों ने जल्दी-जल्दी चढ़ना शुरू किया। ऊपर चढ़ने पर कुछ पठारी क्षेत्र आया, जहां से आसपास के ग्राम एवं वन स्पष्ट दिखाई देने लगे, बड़ा विहंगम दृश्य था। कुछ कदमों की दूरी पर वह गुफा है जिसमें शैल चित्र अंकित हैं यह शैल चित्र केवल गेरुएरंग से बनाए गए हैं एवं अधिकांश प्रकृति की मार से अस्पष्ट, धुंधले होने लगे हैं। यहां के शैल चित्र के विषय में कोसल अंक 12, 2022 में प्रकाशित विवरण निम्नानुसार है:-
” बागबाहरा तहसील में ग्राम पंचायत मोहदी के निकट महादेव पठार है। यहाँ प्रसिद्ध चंपई माता के स्थान से लगभग 100 मीटर दूर एक चित्रित शैलाश्रय का पता चला है, जो स्थानीय लोगों में बेंदरा-कचहरी के नाम से जाना जाता है। दक्षिण-पश्चिम मुखी इस चित्रित शैलाश्रय की चौड़ाई 17 मीटर, गहराई 05 मीटर और ऊँचाई लगभग 02 मीटर है। इसकी पिछली दीवार पर छत के समीप बांये किनारे पर 05 सुस्पष्ट चित्र हैं और दाएं किनारे पर 02 अस्पष्ट अर्धचंद्राकर आकृतियाँ (लटकते हुए तोरण/बंदनवार के समान) द्रष्टव्य हैं। बांयी ओर के स्पष्ट चित्रों में (1) वानर, (2) एक-दूसरे के कमर पर हाथ रखकर नाचती हुई 11 मानवाकृतियाँ, (3) सूर्य अथवा पुष्प और (4) ज्यामितीय रेखांकन बने हुये हैं। समस्त चित्र इकहरे लाल गेरूवे रंग से निर्मित हैं। यह महासमुंद जिलान्तर्गत अब तक ज्ञात पहला चित्रित शैलाश्रय है। इन शैलचित्रों का तिथि निर्धारण करना एक चुनौती है क्योंकि यहाँ से अभी तक कोई संबद्ध प्रस्तर उपकरण अथवा अन्य कोई ऐसा साक्ष्य जो तिथि निर्धारण में सहायक हो उपलब्ध नहीं है। तथापि आकार और बनावट तथा छत्तीसगढ़ अंचल के अन्य चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों से तुलनात्मक आधार पर यहाँ के उपलब्ध शैलचित्रों को प्रथम दृष्टया मध्य पाषाणकाल से प्रारंभिक इतिहास काल के मध्य का माना जा सकता है। इस चित्रित शैलाश्रय के पश्चिम में कुछ ही दूरी पर एक अन्य शैलाश्रय है इसमें चित्र नहीं हैं। अलबत्ता कोटरनुमा यह शैलाश्रय आदिमानव के आवास के सर्वथा अनुकूल है ।”
एक अन्य गुफा में चंपई माता के नाम से देवी जी की मूर्ति स्थापित है जहां नवरात्र में विशेष पूजा अनुष्ठान एवं जोत की स्थापना की जाती है। नीचे आकर कुछ समय हम लोगों ने श्री खुमान सिंह ध्रुव जी से चर्चा की, वे लगभग 2 वर्ष से यहां पर हैं एवं श्रद्धालुओं से नवरात्रि के लिए ‘जोत’ जलाने के लिए दान भी स्वीकार करते हैं। हमने जोत जलाने के लिए अपना अंश प्रदान किया एवं उनसे रसीद प्राप्त की, वे पांचवी तक पढ़े हैं एवं स्पष्ट अच्छे अक्षरों में अपना हस्ताक्षर कर लेते हैं।राजनीति के प्रति मुझे वे जागरूक नजर आए। लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में वे पृथक दलों को अब तक मतदान करते आए हैं। उनका विचार था कि प्रत्याशी को एवं उसका क्षेत्र के प्रति योजना को देखकर वे आगामी विधानसभा चुनाव में मतदान का निर्णय करेंगे परंतु लोकसभा चुनाव में उनका विचार मोदी जी को ही वापस लाने का है ।
ध्रुव जी ने बताया कि यहां हुंर्रा (लकड़बग्घा) आते ही रहते हैं जो बकरियां उठा कर ले जाते हैं। भालू का आना सामान्य बात है, कभी-कभी बिन्दिया बाघ(तेंदुआ) एवं शेर भी दिख जाते हैं, क्योंकि बार अभ्यारण यहां से लगा हुआ है। यहां से निकलते ही बागबाहरा के रास्ते में ग्राम सोरम सिंघि के पहले घना जंगल मिला, फिर ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान खल्लारी यहां भी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां चैत्र नवरात्रि में मेला लगता है। ऊपर पहाड़ पर देवी का मंदिर दर्शन करने के लिए लगभग एक हजार से अधिक सीढियां चढ़ती पड़ती है अतः यहां रोपवे निर्मित किया गया है। खल्लारी की ऐतिहासिकता के विषय में इसी श्रृंखला के 2 जून के लेख में वर्णन किया जा चुका है। यह दुर्भाग्य जनक है कि स्थानीय जनता को इन धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों की जानकारी नहीं है न ही इनका पाठ्य पुस्तकों में समावेश है
विक्रमादित्य सिंह, भोपाल