महाराष्ट्र की राजनीति:फडणवीस और उद्धव की मुलाकात के क्या मायने, क्यों भड़के शिंदे!

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महाराष्ट्र की राजनीति:फडणवीस और उद्धव की मुलाकात के क्या मायने, क्यों भड़के शिंदे!

मुंबई से वरिष्ठ पत्रकार नवीन कुमार की रिपोर्ट

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महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे की मुलाकात से सत्ता के गलियारे में हलचल बढ़ी हुई है। उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने भी एक महीने में तीन बार फडणवीस से मुलाकात की है। बात सिर्फ मुलाकात तक ही सीमित नहीं है बल्कि शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र ‘सामना’ ने भी फडणवीस का स्तुति गान किया है। इससे संकेत मिल रहे हैं कि यह मुलाकात सिर्फ एक बहाना नहीं है। इसके पीछे कुछ तो मकसद है और जिस हंडी में खिचड़ी पक रही है, उसका राज आने वाले समय में खुल सकता है। फिलहाल उद्धव ने इसे एक शिष्टाचार मुलाकात कहा है।

आदित्य ने भी स्पष्ट किया है कि हम स्वस्थ विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं और सरकार के अच्छे काम की तारीफ करना हमारा फर्ज है। इसलिए ‘सामना’ ने भी फडणवीस के गढ़चिरौली में विकास से जुड़े किए कामों की प्रशंसा की। फडणवीस गढ़चिरौली को नक्सल मुक्त करने के साथ इसे स्टील सिटी बनाने का काम कर रहे हैं। नक्सल मुक्त होने से यहां आदिवासियों का विकास होगा। ‘सामना’ ने यह भी लिखा कि बीड़ में बंदूकों का राज है। यहां सरपंच संतोष देशमुख की हत्या में अजित पवार गुट के मंत्री धनंजय मुंडे के करीबी वाल्मीक कराड कथित रूप से शामिल है और उस पर मकोका लगाकर एसआईडी ने हिरासत में लिया है)। फिर भी, अगर गढ़चिरौली में संविधान का राज है तो मुख्यमंत्री फडणवीस प्रशंसा के पात्र हैं।

विधानसभा चुनाव में बीजेपीनीत महायुति को बहुत बड़ी सफलता मिली। न सिर्फ बीजेपी ने उम्मीद से ज्यादा सीटें जीती, बल्कि उसकी सहयोगी पार्टी शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी ने भी अपनी जीत से चौंका दिया। महायुति ने 248 में से 230 सीटें हासिल की। इसके उलट महा विकास आघाडी (एमवीए) के घटक दल कांग्रेस के साथ ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी धरती पकड़ पार्टी बन गई। एमवीए के खाते में 46 सीटें हैं। स्थिति साफ है कि विधानसभा में अब विपक्ष का कोई नेता नहीं है। ऐसे में विधानमंडल में फडणवीस की सरकार के किसी भी फैसले को रोकने की ताकत विपक्ष के पास नहीं होगी। लेकिन, ढाई साल सत्ता से दूर रहने के अनुभव ने फडणवीस को अलग तरह से राजनीति करने पर मजबूर किया है।

इसलिए उन्होंने कहा है कि वह राज्य के विकास के लिए विपक्ष की सलाह का भी स्वागत करेंगे। विपक्ष से दुश्मनी की भावना को अलग रखते हुए फडणवीस ने आदित्य की हर घर पानी योजना को ध्यान से सुना है जिसे पिछली शिंदे सरकार ने रोक दिया था। इसके अलावा आदित्य ने पुलिस कर्मियों के लिए आवास का समाधान और कलेक्टर के स्वामित्व वाली भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए प्रीमियम में कमी करने की मांग की है। हालांकि, फडणवीस को पता है कि अब विपक्ष ताकतवर नहीं है। बावजूद इसके वह चाहते हैं कि सरकार के हर फैसले में विपक्ष की सहमति रहे। और ठाकरे शिवसेना का झुकाव इस ओर दिख रहा है। ठाकरे ने सरकार के जनहित काम को पूरा समर्थन देने का भी ऐलान कर दिया है।

इस मुलाकात से फडणवीस और ठाकरे भले की सहज दिख रहे हैं। लेकिन सियासी खेल में यह मुलाकात शिंदे शिवसेना को असहज जरूर कर दिया है। अजित ने ऐसी कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है जिससे लगे उन्हें यह मुलाकात नागवार गुजरा है। शिंदे शिवसेना ने अपने बेचैनी वाले बयान दिए हैं। खुद एकनाथ शिंदे ने कहा है कि जो हमारी सरकार की आलोचना कर रहे थे अब वे फडणवीस के नेतृत्व वाली हमारी सरकार की तारीफ कर रहे हैं। चलो, उनके मन में अच्छी बातें आ रही हैं। उनका तंज उद्धव पर था। और आदित्य को लेकर तो यहां तक कह दिया कि यह रंग बदलने वाला गिरगिट की नई प्रजाति है। शिंदे के तंज पर ठाकरे भी संयमित हैं। ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे लगे कि शिंदे और ठाकरे में वाकयुद्ध चल रहा है। लेकिन इतना जरूर है कि बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना के अब दो टुकड़े हो चुकी है और जनता की अदालत ने भी असली शिवसेना के लिए शिंदे शिवसेना के पक्ष में अपना फैसला दे दिया है। इसलिए शिंदे शिवसेना ठाकरे शिवसेना को हर स्तर पर कमजोर करने की कोशिश कर रही है।

फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिंदे शिवसेना में थोड़ी नाराजगी तो है। शिंदे शिवसेना को पूरा विश्वास था कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भले ही ज्यादा सीटें मिल जाएं, मुख्यमंत्री तो एकनाथ शिंदे ही होंगे। यह विश्वास टूट गया और शिंदे का बॉडी लैंग्वेज बताता है कि वह खुश नहीं हैं। उनकी पार्टी को मंत्रिमंडल में मनचाहे विभाग नहीं मिले। गृह विभाग उनकी पहली पसंद थी जिसे फडणवीस ने अपने ही पास रखा। अब मन को बहलाने के लिए वह बार-बार अपने गांव जा रहे हैं। वहां से सकारात्मक ऊर्जा लेकर फिर राजकीय काम में लग जाते हैं। दरअसल बीजेपी को 130 से ज्यादा सीटें मिल गई है तो उसे किसी सहयोगी दल की बैसाखी की जरूरत नहीं है। इसलिए अगर शिंदे शिवसेना या अजित गुट की ओर से नाराजगी जाहिर की जाती है तो बीजेपी उसे नजरअंदाज कर रही है।

बीजेपी को पता है कि जिस तरह से शिंदे की शिवसेना बनी और जिस तरह से अजित गुट की एनसीपी अलग हुई उन दोनों के लिए घर वापसी आसान नहीं है। शिंदे और ठाकरे की दुश्मनी जगजाहिर है तो पवार परिवार में मतभेद की कहानी अब किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, पवार परिवार के एकजुट होने के प्रयास चल रहे हैं। शिंदे और ठाकरे के बीच दूरियां बढ़ती ही जा रही हैं। शिंदे शिवसेना ने तो फडणवीस के पाले में इस तरह से बॉल फेंका है जिसे बहुत ही संभलकर फडणवीस को खेलना होगा। शिंदे शिवसेना ने फडणवीस बाला साहेब ठाकरे स्मारक समिति के अध्यक्ष पद से उद्धव ठाकरे को हटाने की मांग की है। दूसरी ओर उद्धव भी इस प्रयास में हैं कि इस समिति में एकनाथ शिंदे को शामिल नहीं किया जाए। शिंदे शिवसेना का मानना है कि उद्धव ने बाला साहेब के हिंदुत्व के विचारों को छोड़ दिया है इसलिए उनका समिति के अध्यक्ष पद पर बने रहना उचित नहीं है।

फडणवीस की नजर शिंदे सेना और अजित गुट दोनों की गतिविधियों पर बनी हुई है। इसलिए राजनीतिक गलियारे में फडणवीस और ठाकरे की मुलाकात को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। वैसे भी, बीजेपी और अविभाजित शिवसेना 25 साल तक साथ रहे हैं। 2019 में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों अलग हो गए। लेकिन, ठाकरे से मुलाकात पर गरमाई राजनीति के बाद फडणवीस ने एक राजनीतिक बयान भी दिया कि उनके साथ एकनाथ शिंदे और अजित पवार अपनी-अपनी कुर्सी पर अच्छे से काम कर रहे हैं। इसलिए फिलहाल चौथी कुर्सी के लिए जगह नहीं है। अब बीएमसी के साथ स्थानीय निकायों के चुनाव तीन महीने बाद होने की संभावना है। बीएमसी पर लगभग तीन दशक से ठाकरे शिवसेना का कब्जा रहा है। लेकिन मूल शिवसेना में विभाजन होने के बाद अब बीजेपी को भरोसा है कि उसका इस पर कब्जा हो सकता है।

बीएमसी के पिछले चुनाव में बीजेपी और शिवसेना की ताकत में ज्यादा अंतर नहीं था। शिवसेना से सिर्फ दो नगरसेवक कम थे बीजेपी के पास। विधानसभा चुनाव के अनुभव से ठाकरे सचेत हो गए हैं और अब शिवसैनिकों की मांग पर अकेले चुनाव लड़ने का संकेत दिया है। बीजेपी भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रही है। अगर यह संभव हुआ तो ऐसे में बीएमसी चुनाव में बीजेपी को शिंदे शिवसेना से भी मुकाबला करना पड़ सकता है। इसलिए मराठी वोट के लिए बीजेपी उद्धव के चचेरे भाई और मनसे के राज ठाकरे से भी दोस्ती बढ़ा रही है। अब फडणवीस और ठाकरे की बढ़ती नजदीकियों को बीएमसी चुनाव के लिए नए समीकरण के रूप में भी देखा जा रहा है। राजनीति में कुछ भी संभव है। विधानसभा में शिंदे शिवसेना के साथ सत्ता में बीजेपी सहभागी रह सकती है तो बीएमसी में ठाकरे शिवसेना से दोस्ती हो सकती है।

विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जिस तरह से ठाकरे ने कहा था कि मुख्यमंत्री फडणवीस को ही बनना चाहिए। उसी तरह से बीएमसी के लिए फडणवीस और ठाकरे के बीच कोई राजनीतिक सांठगांठ हो सकती है। ठाकरे की यह कोशिश रहेगी कि शिंदे शिवसेना बीएमसी में पिछड़ जाए और कट्टर शिवसैनिकों के सहारे ठाकरे शिवसेना फिर से बीएमसी पर काबिज हो जाए। यह बहुत संभव नहीं है। लेकिन बीएमसी के जरिए कई सारी परियोजनाओं को पूरा करना है तो बीजेपी विरोध को कम करने के लिए ठाकरे शिवसेना को साथ कर सकती है। बीजेपी के लिए धारावी पुनर्विकास और बुलेट ट्रेन परियोजनाएं चुनौती बनी हुई है जिसे ठाकरे के सहयोग से पूरा किया जा सकता है।