MBA सलोनी सांसारिक जीवन त्याग कर बनी जैन साध्वी

दीक्षा के बाद अब मल्लीदर्शनाश्री जी के रूप में मिली आध्यात्मिक पहचान

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MBA सलोनी सांसारिक जीवन त्याग कर बनी जैन साध्वी

उज्जैन से मुकेश व्यास की रिपोर्ट

उज्जैन। सुख सुविधा में पली बढी तथा MBA तक शिक्षित उज्जैन शहर के भंडारी परिवार की बेटी सलोनी पर जैन दर्शन की इतनी गहरी छाप पड़ी की सलोनी सुख सुविधाओं के सांसारिक जीवन को त्याग कर जैन साध्वी बन गई। सन्यास दीक्षा ग्रहण कार्यक्रम बुधवार को अरविंद नगर स्थित मनोरमा-महाकाल परिसर में जैन संतों और साध्वियों के सानिध्य में हुआ। दीक्षा विधियों को पूर्ण करने के बाद सलोनी भंडारी सभी सांसारिक सुखसुविधाओं को छोड़ जैन साध्वी बन गईं।

उज्जैन के प्रतिष्ठित भंडारी परिवार की 25 वर्षीय सलोनी ने MBA की डिग्री हासिल की। इसके बाद वह सब कुछ त्याग कर अध्यात्म की राह पर चल पड़ी हैं। सलोनी भंडारी ने अध्यात्म और संयम पथ पर चलने का निर्णय लिया। त्याग के इस निर्णय को मानते हुए पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव आयोजित किया।

सलोनी भंडारी के दीक्षा समारोह की शुरुआत 29 मई से हो गई थी। एक दिन पहले रथ पर सवार होकर सलोनी ने सांसारिक जीवन की प्रतीक वस्तुओं को वर्षी दान वरघोड़े के दौरान अपने हाथों से लुटाया था। इसके बाद शाम को सलोनी की विदाई की अन्य रस्में पूर्ण की गईं। इसमें उन्होंने अंतिम बार अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी। दीक्षा समारोह के पांचवें दिन बुधवार को आयोजन स्थल पर सजाए गए विरती मंडप में दीक्षा विधि के कार्यक्रम जैन आचार्यों और साध्वी मंडल की निश्रा में आरंभ हुए।

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दीक्षा कार्यक्रम की शुरुआत में विधियां आचार्य मणिचंद्र सागरजी महाराज द्वारा ओघा देकर सलोनी को दीक्षा की अनुमति दी गयी। गुरुदेव से दीक्षा की अनुमति मिलते ही इसके बाद आयोजन स्थल पर वीर तिलक के लिये बोली शुरू हुई।
बोली के उपरांत सलोनी को वीर तिलक लगाया गया। इसके बाद उन्होंने अपने सभी सोलह श्रृंगार उतार कर उनका त्याग करते हुए कार्यक्रम में मौजूद परिजनों को दे दिये। इस दौरान सलोनी ने किसी को अंगूठी तो किसी को अन्य श्रृंगार सामग्री अपने हाथों से दी। वीर तिलक के उपरांत सोलह श्रृंगार और अन्य सभी सांसारिक सुख सुविधाओं का त्याग करने के उपरांत सलोनी को एक कक्ष में ले जाया गया। जहां उनका मुंडन संस्कार कराया गया। साथ ही उन्हें साध्वी स्वरूप के श्वेत वस्त्र धारण कराये गये। कुछ देर बाद कक्ष से जब सलोनी बाहर आयी तो वह पूर्ण साध्वी स्वरूप में नजर आ रही थीं।

सांसारिक जीवन की सभी सुख सुविधाओं को छोड़ जैन साध्वी बनी सलोनी भंडारी अब किसी भी तरह की भौतिक सुख सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगी। जैन धर्म में मुनि दीक्षा लेना कठिन निर्णय होता है। अब वैराग्य काल में वे साध्वी स्वरूप में आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करेंगी और जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए माता-पिता भाई-बहन सहित सभी सांसारिक रिश्तों का त्याग और केवल धर्म के उद्देश्य के लिए अलग अलग स्थानों पर किसी भी साधन का उपयोग न करते हुए आजीवन पैदल ही विहार करेगी।