Obstacles to Join Cabinet : रिहाई के बाद भी मनीष सिसौदिया का कैबिनेट में शामिल होना आसान नहीं!

दोबारा मंत्री बनने में कई वैधानिक अड़चनें, उन्हें इंतजार करना होगा!

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Obstacles to Join Cabinet : रिहाई के बाद भी मनीष सिसौदिया का कैबिनेट में शामिल होना आसान नहीं!

New Delhi : दिल्ली सरकार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत पर रिहाई हो गई। उनके दिल्ली सरकार में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। उप-मुख्यमंत्री का पद भी खाली है और मुख्यमंत्री केजरीवाल जेल में हैं। लेकिन, सिसोदिया के सरकार में फिर शामिल होने के लिए कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। 23 फरवरी को आबकारी नीति मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के 5 दिन बाद 28 फरवरी को सिसोदिया ने सत्येंद्र जैन के साथ पद से इस्तीफा दे दिया था।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने शिक्षा और वित्त समेत उनके ज्यादातर विभाग आतिशी को सौंप दिए थे। इस वक्त आतिशी भले ही सरकार में नंबर 2 की पोजिशन पर हो, लेकिन सिसोदिया की तरह औपचारिक तौर पर उप-मुख्यमंत्री का दर्जा उन्हें भी नहीं दिया गया। ऐसे में अब सिसोदिया के बाहर आने के बाद उनके फिर से सरकार में शामिल होने और दोबारा उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर कयास लगने शुरू हो गए।

उन्हें अभी इंतजार करना होगा 

सरकार में मंत्री का एक पद खाली है। पूर्व समाज कल्याण मंत्री राजकुमार आनंद के इस्तीफे के बाद अभी तक उनकी जगह कोई नया मंत्री नहीं बनाया गया। इसकी एक बड़ी वजह मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी भी है। जानकारों का कहना है कि इसी के चलते अभी सिसोदिया का भी सरकार में तुरंत शामिल हो पाना संभव नहीं होगा। मंत्री परिषद में शामिल करने के लिए किसी भी मंत्री के चयन का एकमात्र अधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है। मुख्यमंत्री ही मंत्री का चयन करके उनके नाम का प्रस्ताव एलजी को भेजते हैं। एलजी उस पर अपनी सहमति देकर प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद मंत्री की नियुक्ति के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया जाता है और फिर एलजी मंत्री को शपथ दिलाते हैं।

मुख्यमंत्री केजरीवाल अभी जेल में हैं और उन्हें जेल से सरकार चलाने या सरकार से जुड़ा कोई भी फैसला लेने की इजाजत नहीं। इसके चलते लंबे समय से कैबिनेट की बैठक भी नहीं हो पाई है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी जब उन्हें अंतरिम जमानत मिली थी, तब कोर्ट ने उनके सचिवालय जाने, अधिकारियों की मीटिंग बुलाने, आदेश जारी करने पर रोक लगाई थी। उसी चलते केजरीवाल कोई सरकारी कामकाज नहीं कर पाए थे। हालांकि, अब सिसोदिया के मामले में ऐसी कोई रोक नहीं लगाई गई है, लेकिन अगर उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करना है, तो जानकारों के मुताबिक यह तभी संभव हो पाएगा, जब या तो कोर्ट इसके लिए सीएम को विशेष अनुमति दे या फिर केजरीवाल खुद जमानत पर जेल से बाहर आएं और अदालत उनके ऊपर कोई पाबंदी ना लगाए।

आरोप अभी भी कायम 

जानकारों का कहना है कि सिसोदिया अभी जमानत पर छूटे हैं और उन पर आरोप कायम हैं। ऐसे में हो सकता है कि अगर सीएम उन्हें मंत्री बनाने का प्रस्ताव एलजी को भेजे, तो एलजी सिसोदिया पर लगे गंभीर आरोपों का हवाला देते हुए सरकार के प्रस्ताव पर अपनी सहमति न दें या प्रस्ताव पर कानूनी सलाह लेने के बाद कोई फैसला करें। इस स्थिति में भी सिसोदिया के मंत्री परिषद में शामिल होने में वक्त लग सकता है। हालांकि, जेल से बाहर आने के बाद यह तो तय है कि अब दिल्ली सरकार में तमाम फैसले सिसोदिया से मशविरा लिए बिना नहीं किए जाएंगे। खासकर, मंत्री परिषद के सदस्य उन्हीं के निर्देशों के अनुसार सरकार के कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। ऐसे में केजरीवाल के बाहर आने तक सरकार के संचालन में उनकी भूमिका बेहद अहम रहेगी, भले ही वह मंत्री बनें या ना बनें। वहीं, पार्टी के अंदर भी बिखराव और भीतराघात को रोकने में वह अहम भूमिका निभाएंगे।