टुच्ची-टुच्ची रिश्वत लेते पकड़ में आ रहे अफ़सर, राज्य की इज्ज़त दांव पर!

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वैसे तो ऐसे नाकारा देशभर में मिल जाएंगे, लेकिन इन दिनों मप्र में ये कुछ ज्यादा
ही पाए जा रहे हैं। अख़बार आए दिन ऐसे नाकारा लोगों की ख़बरों से भरे पड़े हैं।
जिधर देखो, उधर कोई न कोई छोटा-बड़ा अफ़सर रिश्वत लेते पकड़ में आ रहा है।
खलबली मची हुई है। पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लग रहे हैं। अब जितने मुंह
उतनी बातें…

– वाकई बड़ी शर्म की बात है। ऐसे ही लोगों की वजह से हमारी पूरी बिरादरी बदनाम
हो जाती है।
– और देखिए, जो पकड़ में आ रहे हैं, उनके चेहरों पर शर्म का कतरा तक नहीं। कल
टीवी पर देख रहा था। पकड़ में आने के बाद भी मंद मंद मुस्करा रहे थे। शर्म तो
मानो बेच डाली।
– सही कह रहे हैं आप। भाईसाहब, उन्हें देखकर मुझे शर्म आ रही थी। सोच रहा था
वाकई हम कैसे-कैसे बेशर्म और नाकारा लोगों के बीच काम करते हैं। ढंग से रिश्वत
तक नहीं ले सकते। छी…
– सुना है सरकार ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सीआईडी जांच बैठा रही है जो रंगे हाथों पकड़
में आ रहे हैं!
– सीआईडी-वीआईडी जांच बैठाने का मतलब नहीं। मैं तो कहता हूं, ऐसे लोगों को
सीधे फायर करना चाहिए। काम करने लायक ही नहीं हैं स्साले।

– भाई साहब, जांच तो होने दीजिए। एक बार जांच हो जाए, फिर देखिए बड़े भी
नपेंगे। आखिर पूरा सिस्टम खराब तो बड़े लोगों की वजह से ही हुआ है ना।
– हां, बात तो तुम्हारी भी सही है। अब कल ही बड़े साहब मुझे पार्टी से सीधे मिलने
का कह रहे थे। कह रहे थे ड्राइवर को लेकर चले जाओ। अब बताओ, सरकार ने ऐसे
अनाड़ी अफसर भर रखे हैं। पूरे सिस्टम की वाट लगाने पर तुले हैं। मैंने साफ मना
कर दिया।
– इसलिए जांच तो होनी ही चाहिए। बल्कि मैं तो कहता हूं सरकार को पूरा जांच
आयोग ही बैठा देना चाहिए। आखिर पता तो चले कि सिस्टम में लूपहोल कहां हैं?
ग्राउंड में लोग इतनी आसानी से पकड़ में कैसे आ रहे हैं।
– हां, कल अपने मुख्यमंत्रीजी भी चिंतित दिख रहे थे। उनका दर्द जबान पर ही आ
गया। बोल दिया- मंत्रालय में बैठ जाओ तो अफसर ऐसी रंगीन पिक्चर दिखा देते हैं
कि सब जगह आनंद ही आनंद नजर आता है। बाहर फील्ड में उतरो तो हकीकत पता
चलती है।
– अच्छा, ये सीएम साहब ने कहा? हम तो उसी दिन कह रहे रहे थे ना कि ग्राउंड में
उतरो तब ही ऐसे नाकारा लोग नजर आते हैं। चलो, देर आयद दूरस्त आयद। अब
सीएम साहब चिंतित हैं तो कुछ तो होगा ही।
– हां भाई, मामला राज्य की इज्जत से जुड़ गया है। ऐसे मामलों से पूरे राज्य के
विकास के दावों की पोल खुल जाती है। अच्छा, करोड़ों का मामला हो और पकड़ में
आ जाए, तब भी ठीक है। इज्जत ही बढ़ती है। लेकिन अब देखो, कोई 20 हजार के
लिए बिछ रहा है, कोई एक लाख में ही धरा जा रहा है। टुच्चईपना की भी हद है।
यह केवल हमारा नहीं, पूरे राज्य का अपमान है। विकास के इतने बड़े-बड़े दावे और
जमीनी हकीकत कुछ और!

-वैसे जो लोग पकड़ में आ रहे हैं, उनके बारे में एक सर्वे आया है। सर्वे कहता है कि
पकड़ में आने वाले 75 परसेंट लोग वे होते हैं जो पहली कोशिश करते हैं।
– तो स्सालो, नौकरी ज्वाइन करने से पहले जब ट्रेनिंग हो रही होती, तब क्या उंघते
रहते। यही मेन चीज नहीं सीखेंगे तो ऐसा होगा ही। हमारी भी नाक कटेगी और राज्य
की भी।
– चलो, ट्रेनिंग में न सीखो, कोई बात नहीं। पर जब फील्ड में आ गए तो हमारे जैसे
अनुभवी लोगों से ही पूछ लो। हम क्या मना कर देंगे! एक तो कुछ आता नहीं और
एटीट्यूड आसमान पर। मैंने तो ऐसे-ऐसे नए लौंडे देखे कि उन्हें पहला नियम भी नहीं
मालूम कि बाएं हाथ से लो तो दाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए।
– तो आप अब भी बाएं हाथ से लेते हैं क्या? वैसे बाएं हाथ से लेना ठीक नहीं है।
हाथ बदल लीजिएगा। शगुन अच्छा नहीं होता। हम लेफ्टहैंडर हैं, लेकिन हमेशा दाएं से
ही लेते हैं।
(बिरादरी और राज्य की चिंता से चली चर्चा अब व्यक्तिगत चिंता पर उतर आई है)
– हमारा ऐसे अंधविश्वासों में कोई भरोसा नहीं है। प्रगतिशील विचारधारा के हैं हम।
वैसे हाथ से लेने का सिस्टम आप बदल डालिए। किसी दिन लपेटे में आ जाएंगे,
बताए देते हैं। हमने तो बदल लिया है। लेफ्ट-राइट का कोई चक्कर ही नहीं रखा। मैंने
तो केवल समझाने के लिए मुहावरा यूज किया था।
– अरे नहीं, हम नौसिखिया हैं क्या! अच्छे अच्छे को सिखाया है हमने। दीवारों
पर टंगे अवार्ड ऐसे ही मिल गए क्या!
– वो ठीक है, पर ऐसे मामलों में ओवर कान्फिडेंस अच्छा नहीं है। जरा ही लापरवाही
में पूरे राज्य की नाक कटते देर नहीं लगती।

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Jayjeet Aklecha photo
जयजीत अकलेचा

जयजीत अकलेचा संवाद की अपनी विशिष्ट शैली में लिखे गए तात्कालिक ख़बरी व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं। मूलत: पत्रकार जयजीत फिलहाल भोपाल स्थित एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में कार्यरत हैं। प्रिंट के अलावा इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया दोनों का उन्हें लंबा अनुभव रहा है।