प्रेरणादायी है वृक्षारोपण के संकल्प का एक साल …

सभी लगाएं पौधे तब बदलेगा प्रदेश का हाल...

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर एक किस्सा सुनाया जाता है कि उन्हें गुड़ बहुत पसंद था। एक बार एक औरत उनके पास अपने छोटे बच्चे के साथ आई और वह बापू से कहने लगी कि ‘बापू मेरा बेटा बहुत ज्यादा गुड़ खाता है। इसके दांत खराब हो गए हैं। आप इसे कहिए कि ये गुड़ खाना छोड़ दे।’ इस पर बापू ने कहा कि वह एक हफ्ते बाद आए।
जब औरत दोबारा आई तो बापू ने उसे फिर एक हफ्ते बाद आने की बात कही। ऐसा तीन बार हुआ। जब चौथी बार वह औरत अपने बच्चे को लेकर आई तो महात्मा गांधी ने उस बच्चे को अपने पास बुलाया। बच्चे को बापू ने बहुत प्यार किया और अपने पास बिठा लिया। बापू ने बच्चे को समझाया कि ज्यादा गुड़ खाना ठीक नहीं, इससे दांतों में कीड़े पड़ जाते हैं, तुम कम गुड़ खाया करो। बापू ने उस औरत से कहा कि वह अपने बच्चे को ले जाए।
बच्चा थोडे दिनों में गुड़ खाना छोड़ देगा। औरत ने बापू से कहा कि इतना ही कहना था तो आप यह बात पहली बार में ही कह सकते थे। इस पर बापू ने जवाब दिया – ” बेटा चार हफ्ते पहले मैं भी बहुत गुड़ खाता था। और मैं ऐसे किसी आचरण को व्यवहार में लाने को नहीं कह सकता जिसे मैं खुद व्यहार में नहीं लाता।”
महात्मा से जुड़ी यह कहानी यह संदेश देती है कि किसी को नसीहत देने से पहले वह व्यवहार अपने आचरण में लाना जरूरी है। राजनेताओं के लिए महात्मा का यह संदेश खास है। क्योंकि जनप्रतिनिधि होने के नाते वह जन-जन से जिस व्यवहार की अपेक्षा करते हैं, यदि उस पर वह खुद अमल नहीं करते हैं तो यह अपेक्षा परिणामदायक नहीं होती। और वही होता है कि जनता भी ऐसी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है।
लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का व्यवहार महात्मा की इस कहानी को चरितार्थ करता है। हाल ही में जैत में गौरव दिवस के अवसर पर ग्रामसभा में शिवराज ने तीसरा प्रस्ताव रखते हुए अपील की थी कि जैत की ग्राम सभा तय करे कि पेड़ लगाकर खुशी मनाएंगे। उन्होंने बताया था कि वह रोज एक पेड़ लगाते हैं। ग्रामवासी रोज एक पेड नहीं लगा सकते तो कोई बात नहीं। कम से कम यह तय करें कि जन्मदिन, शादी और खुशियों के अवसर पर वृक्षारोपण अनिवार्य रूप से करेंगे। तो माता-पिता की पुण्यतिथि पर भी उन्हें पेड़ लगाकर याद करेंगे।
उन्होंने कहा था कि पेड़ लगाने की जगह जल्दी तय कर लेंगे तो सुझाव भी दिया था कि नर्मदा किनारे, अपने बाड़े में और खेत की मेढ़ पर भी पेड़ लगा सकते हैं। प्रस्ताव पारित हो गया था। दस दिन पहले ही 8 फरवरी को तब जैतवासियों को यह तो पता था कि मामा रोज एक पेड़ लगाने का व्यवहार अपने आचरण में ला चुके हैं। लेकिन यह अंदाज नहीं होगा कि मामा को रोज एक पेड़ लगाते हुए 355 दिन हो चुके हैं और दस दिन बाद ही रोज पेड़ लगाने के संकल्प का एक साल पूरा होने जा रहा है।
उम्मीद यही है कि जिस तरह खुद आचरण में लाकर शिवराज न केवल जैतवासियों से बल्कि पूरे प्रदेश की जनता से पेड़ लगाने की अपील करते हैं, उसका असर जनता पर जरूर पड़ेगा। और वह दिन दूर नहीं, जब लोग शिवराज से प्रेरणा लेकर वृक्षारोपण को अपने आचरण में लाएंगे। क्योंकि साल भर वृक्षारोपण करने का संकल्प पूरा करना महज दिखावा नहीं हो सकता। आम आदमी के सामने संकल्प को पूर्ण करना बड़ी चुनौती रहती है।
ऐसे में मुख्यमंत्री की व्यस्तताओं की कल्पना की जा सकती है। इसके बावजूद साल में हर दिन वृक्षारोपण कर शिवराज ने एक उदाहरण पेश किया है। हालांकि आलोचक यह कह सकते हैं कि सरकारी तामझाम के बीच इस तरह दिखावा करना कोई बड़ी बात नहीं है। तो फिर आलोचकों को वृक्षारोपण को कम से कम अच्छा कार्य मानते हुए खुशियों के मौकों पर ही सही इस व्यवहार को आचरण में लाने की चुनौती को तो स्वीकार करना ही चाहिए। यदि यह अच्छी परंपरा लोक के मन में समा गई, तो फिर हमें जंगल बचाने और बढ़ाने की चुनौती से नहीं जूझना पड़ेगा।
फिर शायद ओजोन परत का क्षय, प्रदूषण की समस्या, जलवायु परिवर्तन जैसे भस्मासुर भी हमारे जीवन पर संकट बनकर नहीं मंडराएंगे।शिवराज का यह प्रयास अनुकरणीय है। यदि प्रदेश का हर नागरिक साल में 365 नहीं बल्कि केवल 30 पौधे लगाने का मन ही बना ले, तब भी पांच करोड़ लोगों से ही यह अपेक्षा की जाए तो साल भर में 150 करोड़ पौधे लगाए जा सकते हैं। तिनका-तिनका की तरह यह प्रयास पूरे प्रदेश को हरा-भरा करने के लिए भागीरथी साबित हो सकता है। और तब शिवराज का यह संकल्प वरदान बनकर सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय का स्रोत साबित होगा।