Our Fruits and Flowers:रामफल के साथऔर जानिये देवी- देवताओं के नाम वालो फलों का चमत्कारिक रहस्य।
डॉ विकास शर्मा
कहते हैं, प्रभु श्री रामचंद्र जी ने वनवास के समय इस फल सेवन किया था।तबसे ही यह रामफल प्रभु का प्रिय है। सीताफल, लक्ष्मण फल, हनुमान फल, विष्णुकांता, रिद्धि – सिद्धि #Annona_reticulata #Annonaceaeजैसे कई पेड़ो या फल फूलों के साथ देवी -देवताओं के नाम का गणित जानते हैं आप?
आपको ऐसी कई कहानियाँ ध्यान होगी जिनमे पूजन कक्ष में, चूल्हे के नीचे, तहखाने में, कुएं- बाबड़ी, बड़े मंदिर या महलों के तहखाने में या फिर बंजारा संस्कृति की बात करें तो बंजारी माई मंदिर के आसपास किसी खास स्थान पर खजाना छिपाया जाता है जिसका रहस्य परिवार या कुनबे के किसी खास व्यक्ति को ही ज्ञात होता है। आखिर हमारे बड़े बुजुर्ग ऐसा क्यों करते थे, सीधे सीधे यह धन अपने परिवार को क्यों नही दे देते थे? है न रहस्यमयी बात?
मेरे हिसाब से इसका कारण यह था कि उन्हें उस समय लूटपाट और सत्ता परिवर्तन की स्थिति की जानकारी और पूर्वानुमान होता था, ऐसी विकट परिस्थितियों में जब परिवार का धन लूटपाट लिया जाये तब परिवार के भरण पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन पुनः प्राप्त किये जा सकें इसीलिये सबसे कीमती चीजें जैसे सोने- चांदी के सिक्के, आभूषण आदि सुरक्षित कर दिये जाते थे, ठीक उसी तरह कुछ खास वनस्पतियाँ जो विकट परिस्थितियाँ यानि बायो वॉर के समय मानव सभ्यता को पुनर्स्थापित कर सकें उन्हें ईश्वर की शरण मे उन्ही के नाम से सुरक्षित कर दिया गया। क्योंकि प्राचीन वैज्ञानिक यानि हमारे ऋषि मुनि जानते थे, कि भारतवर्ष से सब कुछ भी लूट लिया जाए तब भी आखिरी एक चीज जो उनके पास बचेगी वह है हमारा धर्म, हमारी संस्कृति। इसे कोई छीन नही सकता, और इसी धर्म और संस्कृति के तले इन बहुमूल्य औषधीय पौधों के ज्ञान को भी सुरक्षित रखा गया।
देवी देवताओं के नाम या इनसे जुड़ाव के कारण इन पेड़ – पौधों को कोई काटता नही है, विशेष पूजन के कारण इन्हें अपनी पुष्प वाटिका में सजाकर रखता है। आधुनिक विज्ञान की भाषा मे इसे एक्स सीटू कन्जर्वेशन कहते हैं। हमारे पूर्वज जानते थे कि यही औषधीय पौधे भविष्य में विश्व पटल पर चिकित्सा क्षेत्र में भारत का नाम रौशन करने वाले हैं। रामफल के सामान्य औषधीय गुण जो चलन या जानकारी में हैं उनकी चर्चा यहीं होगी, लेकिन जिसकी जानकारी सामान्य लोगो को नही है उन गुणों के लिए कुछ वर्ष और इंतजार करना होगा।
रामफल एक ऐसा फल है जो वनस्पति जगत में सीताफल के परिवार से आता है। देखने मे काफी कुछ सीताफल के जैसे ही दिखता है। मिनरल्स, प्राकृतिक शर्करा और स्वाद का यह बेजोड़ संगम है, लेकिन इसके औषधीय महत्व भी कम नही हैं। विटामिन बी. और सी. की प्रचुरता के कारण यह त्वचा रोगों के लिए बेहतरीन औषधि है। खून की कमी हो या मधुमेह इसके सेवन से सारे रोग छू मंतर हो जाते हैं। और तो और इसके छिलके भी कम नही हैं। इसके छिलकों के पाउडर को प्राकृतिक स्क्रब की तरह प्रयोग करने से त्वचा खिल उठती है और कील मुँहासे भी दूर भाग जाते हैं। तो दबा के खाइये, अगर मिल जाये तो, वरना कोसते रहिये इस बेतरतीब विकास को जिसने सिवाए कंक्रीट के जंगलों के कुछ नही दिया और हमारी बहुमूल्य विरासत हमारी औषधियों को हमसे छीन लिया।
इसके रामफल नाम के पीछे कारण यह है कि वनवास के दौरान भगवान श्री राम जी ने इसे स्वीकार किया था, अतः यह प्रभु श्रीराम का प्रिय फल है, तो फिर कोई तो खास बात होगी इसमें। ऐसे ही नही किसी को श्रीराम की संज्ञा दे दी जाती है। लेकिन दुख की बात तो ये है कि 70% से अधिक नई पीढ़ी ने इसका नाम भी नही सुना होगा और 90% के आसपास ने तो इसे कभी देखा ही नही होगा। और ऐसा हो भी क्यों न?
आखिर हम पढ़े लिखे पर्यावरण की चिंता करने वाले लोग जो ठहरे। समय समय पर रासायनिक रंगों से हरे भरे गार्डन केई पैंटिंग प्रतियोगिताएं अयोजित करवाते हैं, अच्छे अच्छे स्लोगन तैयार करते हैं, रैली निकालकर नारे भी लगा लेते हैं। मानव श्रृंखला भी बना लेते हैं। कभी कभी तो कुछ अलग करने और हटके संदेश देने की चाहत में एक दो डगाल पेड़ से तोड़कर अपने आपको प्रतीकात्मक पौधा ही बना लेते हैं। और सबसे कमाल की बात प्रतिवर्ष एक ही स्थान पर एक नन्हे पौधे के चारो ओर 15- 20 लोग मिलकर वृक्षारोपण की फ़ोटो खिंचाते हैं और उस दिन के बाद उस पौधे का भगवान ही मालिक होता है। जितनी उस पौधे की किस्मत उतनी जिंदगी, इसके बाद अगले वर्ष फिर वहीं वृक्षारोपण की रस्म अदा की जाएगी। किस किस का रोना रोएं साहेब। अपन तो भटकने वाले लोग हैं, भटकते भटकते कहीं न कहीं रामफल पा ही जायेंगे, आप अपना सोचें। हाँ और अंत मे एक खास बात चुनाव का समय चल रहा है। 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव प्रारम्भ हो रहे हैं। राष्ट्रहित मे प्रभु श्रीराम जी के लिए, अच्छी और शसक्त सरकार के लिए मतदान अवश्य करें।
डॉ विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई,
जिला छिंदवाड़ा (म.प्र.)