Corruption, Complain के खिलाफ कार्यवाही के लिए प्रशासनिक विभाग की अनुमति जरुरी

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भोपाल: Corruption में लिप्त राज्य के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ जांच और पूछताछ शुरु करने से पहले अब प्रशासकीय विभाग से अनुमति लेना जरुरी होगा। केन्द्र सरकार द्वारा इस मामले में एसओपी जारी किए जाने के बाद अब राज्य सरकार भी विस्तृत दिशा निर्देश जारी करने जा रही है। इस एसओपी के जारी होंने के बाद जीएडी द्वारा जारी किए गए पूर्व आदेश पर लोकायुक्त की आपत्ति का भी पटाक्षेप हो गया है और अब यह अनुमति जरुरी हो गई है।

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Corruption निवारण अधिनियम में 2018 में संशोधन के बाद धारा 17 एक जोड़ी गई थी। इसमें भ्रष्ट अफसर से पूछताछ करने और जांच शुरु करने से पहले उसके प्रशासकीय विभाग से इसके लिए अनुमति लेने का प्रावधान किया गया है। मध्यप्रदेश में सामान्य प्रशासन विभाग ने जब इसकी प्रक्रिया सभी विभागों को जारी की तो मध्यप्रदेश के लोकायुक्त ने इस पर आपत्ति जताते हुए सामान्य प्रशासन विभाग के अफसरों को नोटिस जारी कर पूछा था कि बतााएं यह करना जरुरी क्यों। लोकायुक्त की नाराजगी के बार राज्य सरकार ने इस मामले में स्पष्टीकरण जारी कर कहा था कि उन्होंने कोई आदेश जारी नही किया है बल्कि Corruption अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के लिए प्रक्रिया बताई है। अब केन्द्र सरकार ने भी इस मामले में एसओपी जारी कर दी है। इसके बाद अब सामान्य प्रशासन विभाग इस मामले में विस्तृत निर्देश जारी करने जा रहा है।

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Corruption के इन मामलों में पुलिस को अनुमति लेना जरुरी

एसओपी के मुताबिक Corruption के मामलों में लोक सेवकों, मंत्रियों, पब्लिक सेक्टर के प्रबंधन निदेशकों और जजों के खिलाफ हुई किसी शिकायत पर ऐक्शन लेने से पहले पुलिस अधिकारियों को जांच करने की इजाजत लेनी होगी। पुलिस के साथ-साथ उन जैसी बाकी जांच एजेंसियों को भी इस एसओपी को मानना होगा.

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Corruption निवारण अधिनियम में संशोधन के मुताबिक, अगर किसी अधिकारी के खिलाफ कोई शिकायत करता है तो पुलिस को अपराध की जांच करने के लिए उस अधिकारी के विभाग में उसी रैंक के किसी अफसर या उससे बड़े अधिकारी से इजाजत लेनी होगी। इसके तहत जांच एजेंसियों के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों और विभागों सहित सभी प्रशासनिक अधिकारियों को हर हाल में एसओपी का पालन करना होगा।

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एसओपी में क्या

– अगर पुलिस को किसी सरकारी कर्मचारी के कथित Corruption की Enquiry करनी है तो उसे संबंधित विभाग के उच्च अधिकारी से संपर्क करना होगा.

– पुलिस को सभी सबूतों और पुख्ता जानकारी से सीनियर ऑफिसर को अवगत कराना होगा.

– स्थिति को समझते हुए वो अधिकारी ये तय करेगा कि कथित भ्रष्ट कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करनी है या नहीं. अगर वो ये पाता है कि जांच जरूरी है तो वो जांच को आधिकारिक मंजूरी देने के लिए संबंधित विभाग या मंत्रालय से संपर्क कर उस Enquiry को मंजूरी दे सकता है.

– अगर कथित रूप से भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई है तो Enquiry करने वाले पुलिस अधिकारी को संबंधित विभाग से इसकी परमिशन लेने के लिए शिकायत की एक कॉपी भी डिपार्टमेंट को देनी होगी.

– अगर ऑरिजिनल कंप्लेंट स्थानीय भाषा में की गई है तो उन्हें उस शिकायत का हिंदी या इंग्लिश में सही अनुवाद भी विभाग को सौंपना होगा.

– साथ ही पुलिस को जांच की इजाजत लेने के लिए पूरे मामले का एक लिखित विवरण देना होगा.

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से लेनी होगी इजाजत?

इन पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा Corruption के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले पुलिस को डीजी या उसी रैंक के अधिकारी से परमिशन लेनी होगी-

– केंद्रीय मंत्री
– सांसद
– राज्य सरकार के मंत्री
– विधायक
– सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज
– सार्वजनिक बैंकों के संचालक

अगर डीजी रैंक के अधिकारी से इजाजत नहीं ली गई है या जिस अधिकारी से अनुमति मिली है उसका ओहदा डीजी रैंक से छोटा है तो इस स्थिति में की गई किसी भी तरह की कार्रवाई गैर कानूनी समझी जाएगी।

राज्य शासन के GAD सचिव श्रीनिवास वर्मा के अनुसार Corruption अधिनियम के तहत किसी अधिकारी-कर्मचारी पर कार्यवाही करने से पहले जांच एजेंसी को अब इसके लिए प्रशासकीय विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके लिए केन्द्र की एसओपी जारी हो गई है। सामान्य प्रशासन विभाग भी इसमें विस्तृत निर्देश जारी कर रहा है।