#BRICS Summit 2023 की बैठक में PM मोदी ने भेंट की MP की सुप्रसिद्ध गौंड पेंटिंग ,विश्व पटल पर गौरवान्वित मध्यप्रदेश
गोंड चित्रकला – प्रकृति दर्शन और अनुष्ठान का माध्यम
– रुचि बागड़देव की विशेष रिपोर्ट
#BRICSSummit2023 की बैठक के दौरान आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने BRICS Leaders को भारत की ओर से जनजातीय कला की गोंड पेंटिंग भेंट की। गौरवान्वित हुआ मध्यप्रदेश। प्रदेश की इस उपलब्धि पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए ट्वीट किया है।उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश की सुप्रसिद्ध गोंड पेंटिंग को जी आई टैग भी मिल चुका है। बता दें कि भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग उन उत्पादों पर उपयोग किया जाने वाला एक संकेत है, जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और गुण या प्रतिष्ठा होती है, जो उस मूल के कारण होती है।
"विश्व पटल पर गौरवान्वित मध्यप्रदेश की सुप्रसिद्ध गोंड कला"#BRICSSummit2023 की बैठक के दौरान आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने BRICS Leaders को भारत की ओर से जनजातीय कला की गोंड पेंटिंग भेंट की।
मध्यप्रदेश की कला एवं हस्तशिल्प को विश्व स्तर पर यह सम्मान दिलाने के… pic.twitter.com/iCOtcMWu0i
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) August 25, 2023
अत्यंत सुंदर इन पेंटिंग्स के बारे में जानते हैं—
गोंड कला लोककला का ही एक रूप है। जो गोंड जनजाति की उपशाखा परधान जनजाति के कलाकारों द्वारा चित्रित की जाती है।लोक चित्र कला अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है जहां जीवन का यथार्थ, चित्रण के माध्यम से जीवन दर्शन से रूबरू कराया जाता है. प्रकृति के प्रति आस्था , निष्ठा और लगाव ही इन चित्रकला का दर्शन है.
यह मध्य भारत में पाए जाने वाले गोंड आदिवासी समुदाय की लोक कला है . गोंड समुदाय द्वारा इस कला का प्रयोग अपनी संस्कृति को संरक्षित और संप्रेषित करने के लिए किया जाता है. गोंड जनजातियाँ प्रकृति से अत्यधिक जुड़ी हुई हैं और यह उनके चित्रों में भी दिखाई देता है, उनमें जानवर, महुआ का पेड़, पौराणिक कहानियाँ, हिंदू देवता, स्थानीय देवता और लोककथाएँ आदि शामिल हैं. इस चित्रकला में रेखाओं का उपयोग इस तरह से किया जाता है कि वे स्थिर तस्वीरों को गति का आभास कराती हैं. सफेद, लाल, नीले और पीले जैसे चमकीले, ज्वलंत रंगों का प्रयोग गोंड चित्रकला की एक और उल्लेखनीय विशेषता है . रंग बनाने के लिए, प्राकृतिक सामग्री जैसे लकड़ी का कोयला, रंगीन मिट्टी, पौधों का रस, पत्तियां और यहां तक कि गाय के गोबर का भी उपयोग किया जाता है
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इसी की झलक गोंड चित्रकला में भी मिलती है. लम्बाई और चौड़ाई केवल इन दो आयामों वाली ये कलाकृतियाँ खुले हाथ बनायी जाती हैं जो इनका जीवन दर्शन प्रदर्शित करती हैं। गहराई, जो किसी भी चित्र का तीसरा आयाम मानी गयी है, हर लोककला शैली की तरह इसमें भी सदा लुप्त रहती है जो लोक कलाओं के कलाकारों की सादगी और सरलता की परिचायक है.
गोंड कलाकृतियाँ इस जनजाति के स्वभाव और रहन सहन की खुली किताब हैं . इनसे गोंड प्रजाति के रहन सहन और स्वभाव का अच्छा परिचय मिलता है . कभी तो ये कलाकृतियाँ यह बताती हैं कि कलाकारों की कल्पना कितनी रंगीन हो सकती है और कभी यह कि प्रकृति के सबसे फीके चित्रों को भी ये अपने रंगों से कितना जीवंत बना सकते हैं.
उदाहरण के लिये वे छिपकली या ऐसे ही अकलात्मक समझे जाने वाले जंतुओं को तीखे रंगों से रंग कर चित्रकला के सुंदर नमूनों में परिवर्तित कर देते हैं. यदि हम इसका दार्शनिक पक्ष देखें तो यह उनकी प्रकृति को भी रंग देने की उत्कट भावना को प्रदर्शित करता है.
उनके द्वारा बनाए गए चित्रों के आकार शायद ही कभी एक रंग के होते हैं . कभी उनमें धारियाँ डाली जाती हैं कभी उन्हें छोटी छोटी बिन्दियों से सजाया जाता है और कभी उन्हें किसी अन्य ज्यामितीय नमूने से भरा जाता है . ये कलाकृतियाँ हस्त निर्मित कागज़ पर पोस्टर रंगों से बनाई जाती हैं . चित्रों की विषयवस्तु प्राकृतिक परिवेश से या उनके दैनिक जीवन की घटनाओं से ली जाती है.
फसल, खेत या पारिवारिक समारोह लगभग सभी कुछ उनके चित्रफलक पर अपना सौन्दर्य बिखेरता है. कागज़ पर चित्रकला के अतिरिक्त गोंड जनजाति स्वयं को भित्तिचित्रण और तल चित्रण में भी व्यस्त रखती है.
धार्मिक अनुष्ठानों का एक अंग यह चित्रकला न केवल आसपास के सौंदर्य में वृद्धि करती है अपितु उसकी पवित्रता एवं परंपरा भी बनाए रखती है. पीसे हुए चावल के लेप पीले, गेरू और अन्य मटियाले रंगों में बनाई गयी ये कलाकृतियाँ परिवार की विशेष घटनाओं, ऋतुओं के बदलने, फसल के बोने, वर्षा के प्रारंभ, फसल के कटने या पारिवारिक समारोह जैसे जन्म, विवाह, गर्भावस्था और मृत्यु पर हर समय नये चित्र बनाए जाते हैं विशेषरूप से आँगन, प्रवेश द्वार और घर के अन्य स्थानों पर .
अत: इस चित्रकला को जीवन दर्शन के माध्यम से प्रकृति के प्रति आस्था और निष्ठा दर्शाता है.
– रुचि बागड़देव