बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की शान–कजरी बाघिन

597

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की शान–कजरी बाघिन

अनिल तंवर की खास रिपोर्ट

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बाघ होने से इसे टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है. बांधवगढ़ भी एक प्रमुख टाइगर रिजर्व है. हर टाइगर रिजर्व में कोई ना कोई ख़ास बाघ या बाघिन होती है जिसे पर्यटक बेसब्री से दीदार करना चाहते है.

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की कजरी पर्यटकों की विशेष पसंद है। पर्यटक इसे देखने के लिए जंगल में घंटों घूमा करते हैं. इसकी वजह यह है कि कजरी बाघिन कभी-कभार ही नजर आती है. कजरी को देखने के बाद पर्यटक काफी उत्साहित हो जाते हैं.

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के प्रसिद्द गाइड निखिल सिंह बताते है कि यहाँ आने वाले पर्यटकों की दिली तमन्ना होती है कि कम से कम एक बार करीब से कजरी दिखे. इस बेकरारी का कारण यह है कि कजरी की आँखों के ऊपर और आसपास काली धारियां है. यह ऐसा प्रतीत होता है कि इस बाघिन ने काजल लगा रखा हो. इसी विशेषता के कारण इसका नाम कजरी रखा गया है.

लगभग 8 वर्ष उम्र की कजरी एक चतुर बाघिन है तथा इसका कोड T–41 है. बांधवगढ़ रिजर्व के ताला रेंज में सक्रिय बाघिन स्पॉटी की बच्ची कजरी है. कजरी की एक बहन को उड़ीसा के सत्कोसिया टाइगर रिजर्व भेजा गया था. जिसे इन दिनों कान्हा टाइगर रिजर्व में रखा गया है. दरअसल सत्कोसिया में बसे ग्रामीणों के कारण कान्हा से भेजा गया टाइगर मौत का शिकार हो गया था, जिसके चलते इस बाघिन को वापस मध्यप्रदेश लाया गया और बाद कान्हा टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया.

कजरी इतनी सतर्क रहती है कि अपने बच्चों को तब तक बहुत सुरक्षा में और छिपा कर रखती है जब तक वे बड़े ना हो जाए. एक बार तो टाइगर रिजर्व के ताला जोन में पर्यटक सफारी के लिए गए हुए थे. तभी अचानक वन मार्ग में कजरी घूमते हुए दिखाई दी. कजरी पहले पेड़ के साथ अठखेलियां कर रही थी। उसके बाद मार्ग पर जा रही जिप्सी के पीछे-पीछे चल पड़ी.

कजरी शिकार करने में भी बहुत माहिर है तथा वह हमेशा अनोखे अंदाज से ही चीतल का शिकार करती है. किस्मत वाले पर्यटकों को कभी–कभार वह शिकार करती हुई या शिकार को ले जाते हुए दिख जाती है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में उसका रहवास ताला झोन है.