
PS की जिद और दस्तखत का झमेला
जीवन में कई बार जब आप बड़े असमंजस में उलझे हों , तो एक साधारण सी सीख भी आपको कई समस्याओं से निकाल सकती है, इसलिए हितैषियों का आपके जीवन में बड़ा महत्व होता है। बात बड़ी पुरानी है, तब मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन के पद पर था और हमारे प्रमुख सचिव थे श्री मलय रॉय। परिवहन विभाग का मुख्यालय ग्वालियर में है जहाँ परिवहन आयुक्त और विभाग का पूरा अमला बैठता है और विभाग के प्रमुख सचिव भोपाल मंत्रालय वल्लभ भवन में। सरकारी कामकाज के सिलसिले में प्रमुख सचिव के पास मुझे अक्सर भोपाल जाना पड़ता था। मलय रॉय बड़े ईमानदार और मेहनती अधिकारी माने जाते थे और परिवहन विभाग में उनकी बड़ी धाक हुआ करती थी, पर जब किसी बात पर वे नाराज़ हो जायें, तो उन्हें समझाना मुश्किल हुआ करता था।
प्रशासनिक कामकाज के अलावा वाहनों के परमिटों पर भी अंतिम मुहर प्रमुख सचिव की ही लगा करती थी। दो राज्यों की सीमा में आने वाले मुख्य मार्गों के वाहन परमिट, परिवहन विभाग में दो राज्यों के बीच हुए परस्पर करार के आधार पर जारी हुआ करते हैं और एक राज्य द्वारा जारी किया गया परमिट दूसरे राज्य की प्राधिकृत अधिकारी के प्रतिहस्ताक्षर के बाद ही वैध होता है। मध्यप्रदेश में ऐसा प्राधिकार परिवहन विभाग की एक समिति को था जिसमें परिवहन आयुक्त सदस्य और प्रमुख सचिव अध्यक्ष हुआ करते थे । एक बार की बात है, महाराष्ट्र से एक परमिट करार की शर्तों के विपरीत जारी हो गया। ग्वालियर मुख्यालय में जब वो वाहन परमिट प्रतिहस्ताक्षर के लिए पेश हुआ तो मैंने परिवहन विभाग के हमारे आयुक्त को पूरी स्थित बतायी और निवेदन किया की परमिट करार की शर्तों के बाहर यानी आउट ऑफ़ रेसीप्रोकल एग्रीमेंट है इसलिए इस पर प्रतिहस्ताक्षर होना संभव नहीं है। परिवहन विभाग में श्री रमन कक्कड़ आयुक्त हुआ करते थे, वे मेरी बात से सहमत हुए और मैंने उनके माध्यम से सचिव की हैसियत से टिप्पणी लिख कर फाइल प्रमुख सचिव के अनुमोदन हेतु तैयार कर दी।
अक्सर सप्ताह में एक या दो बार ऐसी सभी जरूरी नस्तियों के अनुमोदन के लिए हम भोपाल जाया करते थे। इस बार जब मैं फाइल लेकर प्रमुख सचिव का अनुमोदन लेने भोपाल पहुंचा तो फाइल पर हमारी टीप उन्होंने अनुमोदित तो कर दी पर ना जाने क्यों नाराज़ हो कर बोले कैसे अधिकारी हैं, बिना देखे परमिट जारी कर देते हैं? इनका स्पष्टीकरण लीजिए । मैंने उस समय तो कुछ नहीं कहा पर ये सोच कर फाइल में आगे कार्यवाही नहीं की कि हम प्रतिहस्ताक्षर करने से मना कर तो रहे हैं, इससे परमिट चल तो पाएगा ही नहीं और जारीकर्ता तो महाराष्ट्र के परिवहन आयुक्त हैं उनका स्पष्टीकरण कैसे लें?
कुछ दिन बाद किसी काम से मैं भोपाल जा रहा था तो ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर प्रमुख सचिव का फोन आया, कि आपने स्पष्टीकरण वाली फाइल पुटअप नहीं की है? मैंने अपना संशय बताया तो वे नाराज़ होने लगे कि आप को क्या करना आप तो फाइल पुटअप करो। बातचीत में कुछ तल्खी लगी तो पास में खड़े रमन कक्कड़ साहब बोले क्या बात है, क्या हुआ? मैंने कहा साहब मान ही नहीं रहे हैं, पर आप ही कहें दूसरे राज्य के प्रमुख सचिव स्तर के आई.ए.एस. अफ़सर का स्पष्टीकरण हम कैसे ले सकते हैं? कक्कड़ साहब बोले अरे आप क्यों टेंशन ले रहे हो, आप तो मज़े लो कि अरे ऐसा भी हो सकता है, कि एक राज्य का प्रमुख सचिव दूसरे राज्य के प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी का स्पष्टीकरण भी ले सकता है। इस एक वाक्य से मेरा दिमाग एकदम शांत हो गया। मैं वापस परिवहन मुख्यालय गया, फाइल निकाल कर स्पष्टीकरण का ड्राफ्ट तैयार किया और फाइल भोपाल भेज दी। ये और बात है कि वो फाइल कभी हस्ताक्षर होकर वापस नहीं आयी।