त्वरित टिप्पणी : महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को लोकसभा में बुधवार को भारी बहुमत से पारित कराने में सोनिया गाँधी की अहम भूमिका

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त्वरित टिप्पणी : महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को लोकसभा में बुधवार को भारी बहुमत से पारित कराने में सोनिया गाँधी की अहम भूमिका

 

गोपेंद्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

 

नई दिल्ली।तीन दशकों से अटका हुआ महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) आज लोकसभा में बुधवार को भारी बहुमत से पास हो गया है। बिल के पक्ष में 454 वोट पड़े जबकि 2 सांसदों ने इसके खिलाफ वोट किया। मतदान की प्रक्रिया पर्चियों के माध्यम से पूरी की गई । संसद द्वारा इसे पारित करने के बाद अब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33% सीटें आरक्षित होने का मार्ग प्रशस्त हों गया है ।

 

महिला आरक्षण बिल को लेकर आज लोकसभा में एक सुखद दृश्य देखने को मिला। कांग्रेस की ओर से सोनिया गाँधी ने बिल का पुरज़ोर समर्थन किया । उन्होंने बहुत ही भावुक होते हुए कहा कि मैं अपने जीवन में जिस पल का इन्तज़ार कर रही थी वह अब पूरा होने जा रहा है। मेरे पति स्वर्गीय राजीव गाँधी ने यह सपना देखा था। उसे साकार होते देख मेरा मन अभिभूत है । राजीव जी ने पंचायत राज में इसे लागू कराया जिसकी वजह से आज लाखों महिलायें सरपंच प्रधान और जिला प्रमुख है।उन्होंने पुरज़ोर ढंग से माँग की कि केन्द्र सरकार को महिला आरक्षण बिल को तुरन्त लागू करना चाहिए और जातिगत जनगणना भी पूरी करवानी चाहिये।

आज संसद में महिला आरक्षण बिल को लेकर विभिन्न दलों के मध्य श्रेय लेने की होड़ भी देखी गई और उनके बयान दिन भर चर्चा का विषय रहें।

 

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि महिला आरक्षण बिल पर आज 60 सांसदों ने चर्चा में हिस्सा लिया। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने लोकसभा में ‘नारीशक्ति वंदन विधेयक’ का समर्थन किया। साथ ही सरकार से यह आग्रह किया कि जाति आधारित जनगणना करा कर विधेयक में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के साथ ही अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए।

 

सोमवार से शुरू हुआ संसद का पाँच दिन का विशेष सत्र संसद की पुरानी इमारत में शुरू हुआ था अब यह सत्र महिलाओं के लिए 33प्रतिशत आरक्षण के फैसले के साथ संसद की नई इमारत में ख़त्म होगा।सोमवार शाम केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी थी ।यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ है।

 

महिला आरक्षण बिल सोमवार को लोकसभा में भी चर्चा में रहा था ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि दोनों सदनों में अब तक 7500 से अधिक जन प्रतिनिधियों ने काम किया है, जबकि महिला प्रतिनिधियों की संख्या करीब 600 ही रही है।इसके बाद नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने पिछले 75 सालों में कांग्रेस सरकारों के कामकाज़ का लेखा-जोखा पेश किया. इस दौरान सोनिया गांधी ने उन्हें महिला आरक्षण बिल की याद दिलाई थी।

 

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है।उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया था लेकिन पारित नहीं हो सका।

 

बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था।इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।

बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए।आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण ख़त्म हो जाएगा।

 

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा।इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका।वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुई।

 

बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया।वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।लेकिन यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं।

ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे।कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है।

 

साल 2008 में इस बिल को क़ानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था।इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे।इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे. इन दोनों सदस्यों की सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक न हो।साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है।

 

अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश कर पारित कराया गया है ।राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा।इस बिल के क़ानून बनने के बाद महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा और लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी।

 

साल 2014 में सत्ता में आई बीजेपी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इस बिल की तरफ़ ध्यान नहीं दिया लेकिन आम चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इसे पेश करने का मन बनाया।हालांकि उसने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण का वादा किया । इस मुद्दे पर विशेष बात यह रही किउसे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का भी समर्थन हासिल है।

 

कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने 2017 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था।वहीं कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने 16 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहराई थी.

 

विशेष सत्र से पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. इसमें कांग्रेस बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति और कई अन्य दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने पर ज़ोर दिया था.

 

इस समय लोकसभा में 82 और राज्य सभा में 31 महिला सदस्य हैं. यानी की लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 15 फ़ीसदी और राज्य सभा में 13 फ़ीसदी है. आखिर लोकसभा में  बुधवार 20 सितंबर को 7 घंटे की लंबी बहस के बाद नारी शक्ति वंदन विधेयक दो तिहाई बहुमत के आधार पर पारित कर दिया गया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस बिल को पारित करने का प्रस्ताव रखा तो ओवैसी की ओर से इस बिल पर मत विभाजन की मांग रखी गई। उनकी मांग  पर लोकसभा में वोटिंग कराई गई और इसके पक्ष में 454 और विरोध में 2 मत पड़े।  इसके बाद इसे पारित कर दिया गया।

अब नारी शक्ति वंदन विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। वहां पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद यह बिल कानून का रूप धारण कर लेगा।

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