जाति की काट Gender सामने डबल इंजन
उत्तर प्रदेश की डबल इंजन सरकार को 2022 में बेपटरी करने की कवायद में विपक्ष नई-नई चालें चल रहा है। लखीमपुर खीरी कांड से ही आक्रामक तेवर में चल रही कांग्रेस महासचिव, उप्र प्रभारी और मुख्यमंत्री पद का संभावित चेहरा प्रियंका गांधी वाड्रा ने विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की घोषणा की है। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ प्रियंका ने जाति के मुकाबले जेंडर(Gender)का तुरूप का पत्ता चला है।
इसके पहले समाजवादी पार्टी मुखिया और उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव “नई हवा और नई सपा” के नारे के साथ एमवाई समीकरण का मतलब मुस्लिम-यादव गठजोड़ नहीं बल्कि महिला-युवा की सपा से नजदीकी बता चुके थे। बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का कहना है कि अब वो विकास की राजनीति करेंगी और मूर्तियों से परहेज करेंगी।
आम आदमी पार्टी तिरंगा यात्रा के जरिये भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को नकली बताते हुए बेनकाब करने का अभियान छेड़ चुकी है। काबिलेगौर ये भी है कि विपक्षी नेता डुबकी लगाने और मंदिर-मंदिर घुटने टेकने, से भी नहीं चूक रहे।
2017 के चुनाव में उप्र में अब तक सबसे ज्यादा महिला विधायक चुनी गईं थीं। उप्र में अबतक किसी भी पार्टी ने 40 फीसदी महिलाओं को टिकट नहीं दिया। खुद कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 12 महिलाओं को टिकट दिया था जबकि राज्य में कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। हालांकि राज्य में कांग्रेस ने तत्कालीन सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था।
सपा ने 34 महिलाओं को मैदान में उतारा था, वहीं बसपा ने भी 403 सीटों में से सिर्फ 21 महिलाओं को टिकट दिया था। भाजपा ने सबसे ज्यादा 46 महिलाओं को टिकट दिया था। प्रदेश में कुल 482 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 42 ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। इनमें भाजपा की 34, कांग्रेस 2, बसपा 2 और सपा की 1 महिला विधायक शामिल थी।
काम केवल इतने से ही नहीं चलने वाला तो, पिछले दिनों अपने वाराणसी दौरे की शुरुआत प्रियंका गांधी वाड्रा ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन से की। प्रियंका लगभग 10 मिनट तक मंदिर में रहीं और उन्होंने पहले गंगाजल से और फिर दूध से बाबा विश्वनाथ का अभिषेक किया।
इसके बाद वे दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा देवी मंदिर गईं। प्रयागराज दौरे में प्रियंका ने मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी भी लगाई थी। प्रियंका आज से विधानसभा चुनाव प्रचार की औपचारिक शुरूआत करेंगी। रैली की शुरुआत पश्चमी उप्र से होगी।
सपा ने बदला एमवाई का नैरेटिव
उधर, सपा मुखिया अखिलेश यादव ने महंगाई, किसान आंदोलन, भ्रष्टाचार और रोजगार का मुद्दा उठाते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार पर तंज कसा है कि डबल इंजन की सरकार के ड्राइवर भाग गए हैं। सपा ने मौके की नजाकत को देखते हुए एमवाई का नैरेटिव बदल दिया।
अब एम का मतलब मुस्लिम न होकर महिला और वाई का अर्थ यादव से बदलकर युवा हो गया है। सपा के कार्यक्रमों और साइकिल यात्राओं में मुस्लिम नेताओं को अब उतनी प्रमुखता नहीं दी जा रही है। यहां तक कि सपा सरकार के पूर्व मंत्री आजम खान के लिए भी सपा कोई खास प्रयास करती नजर नहीं आती है।
दूसरी ओर, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन सुप्रीमो असुदुद्दीन ओवैसी उप्र विधानसभा चुनाव जीतने के लिए लगातार दौरे कर रहे हैं।
उन्होंने एक बयान में कहा कि मुस्लिम-यादव कॉम्बिनेशन से भाजपा को हराया नहीं जा सकता। उसे हराने के लिए A टू Z कॉम्बिनेशन तैयार करना होगा। अगर वे (अखिलेश यादव) सोचेंगे कि 19% मुसलमान
उनको वोट देता रहेगा और वे इन्हीं वोटों पर राजनीति करेंगे तो ऐसा नहीं हो सकता।
दोबारा सत्ता-सुख भोगने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश मंदिरों में माथा भी टेक रहे हैं, ब्राह्मण सम्मेलन कर रहे हैं और राम मंदिर निर्माण के पश्चात् सपरिवार दर्शन करने जाने की मंशा जता चुके हैं। माफिया मुख्तार अंसारी के भाई को सपा में शामिल कराकर अखिलेश यादव ने यह भी जता दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में केवल जिताऊ उम्मीदवारों
पर ही दांव लगाया जाएगा।
इसी क्रम में छोटे दलों से गठबंधन की पक्षधर सपा ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) से गठबंधन का एलान भी कर दिया है। उप्र में करीब 4 फीसदी और पूर्वांचल में 18-20 फीसदी राजभर वोटर्स हैं, जो पूर्वांचल की 119 सीटों पर प्रभाव रखते हैं।
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग
बसपा सुप्रीमो मायावती उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री रही। उप्र में 2007 से 2012 तक का कार्यकाल बसपा का स्वर्णिम काल था, जब मायावती ने लखनऊ में अंबेडकर पार्क से लेकर स्मृति स्थल अंबेडकर मैदान और नोएडा में भी इसी तरह के निर्माण कराए थे। लेकिन, 2014 में बसपा खाता नहीं खोल पायी और 2017 मे तीसरे नम्बर पर रही।
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से 24 साल की दुश्मनी भुला कर साथ चुनाव लड़ी पर नतीजे निराशाजनक रहे। इसलिए, वक्त की मांग को देखते हुए बसपा का फोकस एक बार फिर दलित-ब्राह्मण फार्मूले की सोशल इंजीनियरिंग पर है।
लखनऊ में पार्टी कार्यालय पर आयोजित ब्राह्मण सम्मेलन में मायावती ने कहा कि 2022 में सरकार बनने पर वह पार्क, मूर्ति व संग्रहालय नहीं बनवाएंगी। चर्चा है कि पार्टी अपनी ‘हिंदुत्व समर्थक’ छवि को दिखाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलनों के अलावा कुछ और भी कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रही है।
विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने अल्पसंख्यकों को जोड़ने लिए एक प्लान भी तैयार किया है। इसके तहत 403 विधानसभा क्षेत्रों में एक प्रभारी के साथ सह प्रभारी और बूथ अध्यक्ष के लिए अल्पसंख्यकों की नियुक्ति की गई है। बाहुबली मुख्तार अंसारी को बसपा से बाहर करने की रणनीति भी इसलिए बनाई है ताकि भाजपा से मुकाबला करने में कोई कोर-कसर न रह जाए।
झूठ बोले कौआ काटे
दरअसल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस की विधानसभा चुनावों में एकतरफा जीत ने विपक्ष के हौसले तभी बुलंद कर दिये थे कि भाजपा अजेय नहीं है। ममता ने ‘बंगाल की बेटी’ जैसा भावुक नारा दिया था। मतदान करने वाली 81.75 फीसदी महिला वोटर्स में से ज्यादातर ने टीएमसी को वोट दिया और ममता तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।
पिछले उप्र विधानसभा चुनाव में 63.31 फीसदी महिलाओं ने वोट दिया, जबकि पुरूष मतदाताओं का प्रतिशत 59.15 रहा था। प्रदेश में कानून-व्यवस्था अहम मुद्दा था इसलिए तब महिलाओं ने भाजपा को एकमुश्त वोट दिया और पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की।
बिहार में भी जदयू-भाजपा सरकार बनाने में महिला मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इन तीन
विधानसभा चुनावों में ही नहीं लोकसभा चुनाव 2019 में भी महिलाओं ने चुनाव परिणाम तय करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।
झूठ बोले कौआ काटे, बोले तो, इसीलिए उत्तर प्रदेश में प्रियंका को आगे कर कांग्रेस ने अब जाति की काट जेंडर से करने की कोशिश की है।
ममता की तर्ज पर नया नारा गढ़ा है। विपक्ष के सामने दूसरी चुनौती है, उप्र की राजनीति में मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति से ‘हिंदुत्व’ की राजनीति का नैरेटिव बदल जाना और लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की घोषणा।
इसका मुकाबला करने के लिए अखिलेश यादव संतों से मिल रहे हैं, प्रियंका गांधी मंदिरों में जा रही हैं, डुबकी लगा रही हैं। दरअसल, राहुल गांधी की विफलता के बाद प्रियंका की राजनीति में एंट्री सबसे बड़ा दांव है, और उत्तर प्रदेश ही इसकी दशा-दिशा तय करेगा।
झूठ बोले कौआ काटे, सपा के लिए मुख्य चुनौती यही है कि महिला और युवाओं में सपा के प्रति भरोसा कैसे पैदा करे। मोदी-योगी के चुंबकीय व्यक्तित्व के आगे एम-वाई का नया नैरेटिव स्थापित करना क्या इतना आसान है?
पिछले लोकसभा और उप्र विधानसभा चुनाव के रूझान तो इस मामले में भाजपा का पलड़ा ही भारी दिखाते हैं। फिर, कारसेवकों पर गोली चलवाने के आरोपों की अखिलेश यादव के पास कोई सफाई नहीं है।
अनुच्छेद 370 और सीएए जैसे मुद्दों पर सपा और सपा प्रमुख अपने पहले के दिए बयानों पर ही फंसते हुए दिखाई पड़ते हैं। सुभासपा का दावा है कि उसके साथ 90 से 95 फीसद राजभर वोटर हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और सुभासपा गठबंधन में बीजेपी ने 8 सीट ओम प्रकाश राजभर को दिया था। सुभासपा 4 सीट जीत सकी थी। हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी। उप्र ग्राम पंचायत चुनाव में ओम प्रकाश राजभर के सगे भाई की पत्नी रीता राजभर प्रधानी का चुनाव हार गई थीं।
बोले तो, सुभासपा कोई
चुनाव जीते या ना जीते लेकिन किसी का भी खेल बिगाड़ सकती है। यही हाल असुदुद्दीन औवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन का भी है। कितना खेलेगी कितना बिगाड़ेगी अभी कुछ कहना अनुचित होगा।
झूठ बोले कौआ काटे, 2007 में बसपा सुप्रीमो मायावती की जीत में दलित-ब्राह्मण फार्मूले की सोशल इंजीनियरिंग ने बड़ी भूमिका निभायी थी। उस चुनाव में बसपा ने 51 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 20 जीते थे। हांलाकि बाद में यह फार्मूला अनेक कारणों से बेहतर नतीजे नहीं दे सका।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस बार बसपा की योजना
ब्राह्मणों को पिछले तीन चुनावों से ज्यादा टिकट देने की है। वे ब्राह्मणों को जोड़ने की कवायद इसलिए कर रही हैं क्योंकि माना जा रहा है कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज हैं।
दूसरी ओर, डबल इंजन की उप्र सरकार की रफ्तार प्रदेश में घटी कुछ-एक घटनाओं के बावजूद बाधित नहीं हुई है। मोदी-योगी की जोड़ी सबका साथ-सबका विकास के नारे के साथ राजनीतिक दांवपेच में भी कहीं से कमजोर नहीं है।
बोले तो, दलीय गठजोड़, हालिया मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये जातिगत-क्षेत्रीय संतुलन साधने का मामला हो या कांग्रेस से
ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद को भाजपा का चेहरा बनाने की कवायद हो, भाजपा 2022 का मैदान गंवाने के मूड में कत्तई नहीं दिखती।
और तो और, दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए उप्र की राजनीति में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उत्तराखंड की पूर्व गवर्नर बेबी रानी मौर्य की एंट्री भी करा दी।
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मौर्य के नाम के आगे, पार्टी के सारे बैनरों में “जाटव” भी लिखा जा रहा है जो अब तक कभी नहीं लिखा गया। उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी “जाटव” समाज से हैं। उधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक महीने पूर्व दनादन उप्र के दौरे शुरू कर चुके हैं। प्रत्येक दौरा विकास के तोहफों और नई परियोजनाओं की सौगात से लबरेज रहता है।
वैसे तो मुद्दे अनेक हैं, चालें चलने, खुद को खरा प्रूव करने के लिए पक्ष-विपक्ष के पास पर्याप्त समय भी। देखना होगा कि अंततः बाजी किसके हाथ रहती है।