राज-काज: भाजपा को कैलाश, कांग्रेस को याद आए अरुण….

राज-काज: भाजपा को कैलाश, कांग्रेस को याद आए अरुण….

– भाजपा को अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और कांग्रेस को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की याद आ गई है। ये दोनों नेता अपने-अपने दलों में उपेक्षा का दंश झेल रहे थे। न कैलाश के पास पार्टी की ओर से कोई काम था, न अरुण की कांग्रेस में पूछपरख थी। विधानसभा चुनावों में कांटाजोड़ हालात बनने के बाद दोनों दलों को अपने इन नेताओं की क्षमता समझ में आ गई।

भाजपा सरकार और संगठन में अब बदलाव यानि भटकाव...

इसीलिए कैलाश को अचानक सक्रिय किया गया। वे भोपाल-दिल्ली के बीच सेतु बने। रात में मुख्यमंत्री निवास और प्रदेश भाजपा कार्यालय में बैठकें कर पार्टी के अंदर पनप रहे असंतोष पर काबू पाने की कोशिश की। ग्वालियर जाकर जयभान सिंह पवैया एवं अनूप मिश्रा से एकांत चर्चा की। आखिर! कैलाश हैं भी अच्छे रणनीतिकार और चुनाव प्रबंधक।

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दूसरी तरफ अरुण को प्रदेश में यादव समाज को कांग्रेस के पक्ष में लामबंद करने का काम सौंपा गया। शुरूआत उन्होंने बुंदेलखंड के दौरे से की। इसके बाद वे प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में जाएंगे। गुना में भाजपा सांसद केपी यादव केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण पार्टी में असहज हैं। कांग्रेस इसका भी लाभ उठाने की कोशिश में है। महाकौशल सहित प्रदेश के अन्य अंचलों में भी यादव वोटरों की तादाद अच्छी खासी है। कांग्रेस ने इन्हें साध लिया तो उसकी पौ-बारह हो सकती है।

कटनी में भाजपा के पूर्व विधायकों के बागी तेवर….!

– सागर, जबलपुर सहित कुछ जिलों के बाद अब कटनी में बगावत के स्वर सुनाई पड़ने लगे हैं। यहां के चार पूर्व विधायकों ने कांग्रेस से भाजपा में आए संजय पाठक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इन पूर्व विधायकों अलका जैन, सुकीर्ति जैन, गिरिराज पोद्दार एवं रुद्र प्रताप सिंह का कहना है कि जिले में सत्ता और संगठन पूरी तरह से पाठक के कब्जे में है। पाठक जो चाहते हैं, वही होता है।

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हालात ये है कि हमारे पास लंबे समय से कोई काम नहीं है। अलका जैन सहित कुछ ने बाकायदा वीडियो जारी कर कहा है कि यदि हमें कोई काम न मिला तो हम अपना अलग रास्ता चुनने को मजबूर होंगे। इन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ संगठन के मुखिया वीडी शर्मा को भी अपनी पीड़ा से अवगत कराया है। शिकायत की प्रतियां दिल्ली तक पार्टी नेतृत्व के पास भेजी गई हैं। कटनी वीडी शर्मा के लोकसभा क्षेत्र में आता है। भाजपा के सामने समस्या यह है कि वह एक जिले के असंतुष्टों से निबट नहीं पाती और दूसरे जिले से नाराजगी के स्वर फूट पड़ते हैं। भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में तय हुआ था कि यदि कोई नेता सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन असंतुष्टों पर नेतृत्व के निर्देश बेअसर हैं। इस तरह असंतोष का बढ़ना, उजागर होना भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।

‘सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’ चरितार्थ….

– कांग्रेस में भावी मुख्यमंत्री को लेकर ‘सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’ जैसे हालात हैं। दरअसल, कांग्रेस मानकर चल रही है कि चुनाव बाद उसकी ही सरकार बनने वाली है। लिहाजा, मुख्यमंत्री को लेकर अभी से सिर-फुटौव्वल है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के सर्वशक्तिमान नेता हैं। पार्टी उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ रही है। ऐसे में कमलनाथ एवं उनके समर्थकों को यह अभियान चलाने की क्या जरूरत है कि चुनाव बाद कमलनाथ ही मुख्यमंत्री बनेंगे?

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इस मसले पर अरुण यादव, अजय सिंह, डॉ गोविंद सिंह जैसे नेता कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव बाद होगा। इनकी हां में हां दिल्ली से आने वाले कांग्रेस नेताओं ने मिलाई है। पहले प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस में पहले से नेता घोषित करने की परंपरा नहीं है। चुनाव बाद विधायक दल और पार्टी नेतृत्व मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करेगा। यही बात दिल्ली से आए पवन खेड़ा ने भी मीडिया से बात करते हुए कही। फिर भी विवाद शांत नहीं है। अब दिग्विजय सिंह ने कह दिया कि चुनाव बाद कमलनाथ ही मुख्यमंत्री बनेंगे, प्रदेश की 99 फीसदी जनता उन्हें ही चाहती है। सवाल ये है कि कांग्रेस अभी से कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की जल्दी में क्यों हैं? ऐसा कर अनावश्यक विवाद क्यों पैदा किया जा रहा है?

 क्या सच में नहीं हो रहा भाजपा में कोई बदलाव….?

– केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बन जाने की अफवाह के बाद प्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन में नेतृत्व परिवर्तन का मसला ठंडा पड़ गया है। ऐसा तीन नेताओं के बयानों के बाद हुआ। सबसे पहले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयर्गीय ने कहा कि प्रदेश में कोई बदलाव नहीं हो रहा।

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विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। इसके बाद खुद वीडी शर्मा ने कहा कि वे प्रदेश अध्यक्ष बने थे, तब उन्हें नहीं पता चला था कि वे अध्यक्ष बनने वाले हैं और जब मेरे हटने का निर्णय होगा, तब भी मुझे पता नहीं चलेगा। बदलाव की अटकलों पर अंतिम विराम भाजपा के राष्ट्रीय नेता विनय सहस्त्रबुद्धे के बयान से लगा। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि प्रदेश में कोई नेतृत्व परिवर्तन होने वाला नहीं है। शिवराज सिंह चौहान पर पार्टी को पूरा भरोसा है। हालांकि उन्होंने वीडी शर्मा का नाम नहीं लिया। इससे लगता है कि भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर विराम लगाकर चुनाव पर फोकस बढ़ा दिया है। पार्टी के अंदर असंतोष सबसे कमजोर कड़ी मानी जा रही है। इसे दुरुस्त करने का काम शुरू हो गया है। पार्टी के नेता असंतुष्टों से बात कर रहे हैं, और अनुशासनहीनता करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू हुई है।

 राजधानी में सरकार के एक मंत्री का बंगला ऐसा भी….

– भाजपा प्रवक्ता डॉ हितेश वाजपेयी ने सरकार के एक कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव के बंगले का जिक्र अपने ट्वीट में अलग अंदाज में किया है। ऐसा उन्होंने इसलिए भी किया क्योंकि राजधानी की चकाचौंध में सराबोर सत्ता के गलियारों के बीच इस मंत्री का बंगला ऐसा है, जो क्षेत्र के लोगों और मरीजों से भरा रहता है। उनके इलाज के साथ ठहरने, खाने-पीने की सारी व्यवस्थाएं हैं। वाजपेयी ने अपने ट्वीट में लिखा कि मैंने जाकर देखा कि ‘बंगले के एक हिस्से में गोपाल भार्गव रहते हैं। बंगले के दूसरे हिस्से में 100 मरीजों के लिए बढ़िया ठहरने की व्यवस्था है, जो भोपाल जैसे मंहगे शहर में इलाज के लिए आते हैं। जब मैं गया तब भोजनशाला में उनके लिए भोजन तैयार हो रहा था, मूंग की दाल, फुल्के और भिन्डी की सब्जी। दर्शन उस अन्त्योदय के हकदारों के हुए, जिनके आशीर्वाद से गोपाल जी का सार्वजनिक जीवन ‘अजेय’ हुआ । ग्रामीणों की वो उम्मीद से भरीं कृतग्य आंखें जैसे लाखों मौन आशीर्वाद गोपाल जी को देते हुए महसूस कर रहा था मैं। उनके इस रूप को देखकर मुझे गर्व हुआ कि मैं उस पार्टी का सदस्य हूं, जिसके नेता गोपाल भार्गव जी जैसे हैं। यह हमारे जैसे राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है जो राजनैतिक क्षेत्र के उद्देश्य को समझाता है और उसकी सार्थकता के दर्शन कराता है।’
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