Rape Case Against Shahnawaz : शाहनवाज हुसैन पर दुष्कर्म मामला दर्ज करने के आदेश

हाईकोर्ट ने निर्देश दिए 'तीन महीने में जांच पूरी की जाए!'

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Rape Case Against Shahnawaz : शाहनवाज हुसैन पर दुष्कर्म मामला दर्ज करने के आदेश

New Delhi : दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन (Syed Shahnawaz Hussain) के खिलाफ दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कर तीन माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया। दिल्ली की एक महिला ने जनवरी 2018 में निचली अदालत में याचिका दायर कर शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म की FIR दर्ज की अपील की थी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में भाजपा नेता को राहत प्रदान करने से इनकार किया। महिला ने आरोप लगाया था कि हुसैन ने छतरपुर फार्म हाउस में उसके साथ दुष्कर्म किया व जान से मारने की धमकी दी। सैयद शाहनवाज हुसैन शाहनवाज हुसैन बिहार से MLC हैं। वे बिहार में जदयू-बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री भी थे। शाहनवाज हुसैन तीन बार सांसद भी रहे और अटल सरकार में मंत्री भी रहे!.

मजिस्ट्रेटी कोर्ट ने 7 जुलाई को हुसैन के खिलाफ धारा 376/328/120/506 के तहत FIR दर्ज करने का आदेश देते हुए कहा था कि महिला की शिकायत में संज्ञेय अपराध का मामला है। पुलिस ने पेश रिपोर्ट में तर्क रखा कि हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता! लेकिन, अदालत ने पुलिस के तर्क को खारिज कर दिया।

हाई कोर्ट की जज न्यायमूर्ति आशा मेनन ने फैसले में कहा कि सभी तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने तक पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आ रही है। पुलिस की और से निचली अदालत में पेश रिपोर्ट अंतिम रिपोर्ट नहीं थी! जबकि, अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकार प्राप्त मजिस्ट्रेट को अंतिम रिपोर्ट अग्रेषित करने की जरूरत है।

पुलिस अदालत के औपचारिक आदेश के बिना भी संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर जांच के साथ आगे बढ़ सकती है। लेकिन, फिर भी FIR दर्ज होनी चाहिए। इस तरह की जांच के निष्कर्ष पर, पुलिस को धारा 173 CRPC के तहत एक अंतिम रिपोर्ट जमा करनी होगी। यहां तक कि मजिस्ट्रेट रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है। फिर भी यह निर्धारित कर सकता है कि संज्ञान लेना है या नहीं और मामले को आगे बढ़ाना है।

अदालत ने हुसैन की अपील को खारिज करते हुए कहा कि यदि मजिस्ट्रेट FIR के बिना क्लोजर रिपोर्ट या धारा 176 (3) CRPC के तहत रिपोर्ट के रूप में मानने का इरादा रखते है तब भी उन्हें नोटिस जारी कर अभियोक्ता को विरोध याचिका दायर करने का अधिकार देने सहित मामले से निपटना पड़ता है।
इससे पहले निचली अदालत ने पुलिस के तर्क को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि महिला की शिकायत में संज्ञेय अपराध का मामला है। संज्ञेय अपराध वो अपराध है जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती। उस वक्त पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता!