Sachin Got Stronger : गहलोत गुट के रुख से सचिन की ताकत बढ़ी, 8 नए MLA समर्थन में!  

सचिन के संयम से पार्टी हाईकमान की नजर में भी उनकी स्थिति बेहतर  

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Sachin Got Stronger : गहलोत गुट के रुख से सचिन की ताकत बढ़ी, 8 नए MLA समर्थन में!  

Jaipur : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के चुनाव के साथ राजस्थान में सत्ता संघर्ष इस मुकाम पर पहुंच जाएगा, ये उम्मीद किसी ने नहीं की थी। कांग्रेस हाईकमान और राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी अंदाजा नहीं था कि जहां चिंगारी भी नहीं थी, वहां आग भड़क जाएगी। जिस सचिन पायलट को वे पार्टी के बागी बताकर हाशिए पर धकेलना आसान समझ रहे थे, वही सबसे मुश्किल हो गया। अभी भी पेंच सुलझा नहीं है, पर इस पूरे घटनाक्रम से सचिन पायलट की ताकत जरूर बढ़ गई! क्योंकि, उन्होंने न तो CM अशोक गेहलोत को लेकर कुछ कहा न बागियों पर टिप्पणी की। इस वजह से वे पार्टी हाईकमान की आंखों में चढ़ गए और उनकी इमेज भी मजबूत हुई है।

कांग्रेस को पिछले चुनाव में सत्ता तक पहुंचाने वाले सचिन पायलट को आजकल पार्टी का ‘गद्दार’ कहा जा रहा है। CM अशोक गहलोत तो पहले उन्हें नकारा और निकम्मा तक कह चुके हैं। लेकिन, पार्टी में इतना अपमान झेलने के बावजूद संयम बरतने वाले पायलट का कद बढ़ गया। जी-तोड़ मेहनत के बाद भी उन्हें CM की कुर्सी नहीं मिली, पर आगे का रास्ता साफ़ हो गया।

दो साल पहले उनके हक की आवाज को पार्टी के दूसरे गुट ने बगावत बताया हो, पर तब और आज के हालात में बहुत फर्क है। तब पायलट के बगावती फैसले में 18 विधायक उनके साथ थे, पर अब उनके साथ खड़े होने वालों की संख्या बढ़ी है। उनकी तरफदारी करने वालों में आधा दर्जन से ज्यादा विधायक और शामिल हो गए। ये वो विधायक हैं, जो कभी अशोक गहलोत के साथ थे। लेकिन, हाल के सियासी संकट में उनका रुख बदल गया। वे पार्टी हित में बिना पायलट का जिक्र किए उनकी तरफदारी कर रहे हैं। कुछ विधायक और मंत्री तो खुलकर पायलट के समर्थन में बगावत पर उतर आए।

पहले से ज्यादा मजबूत हो गए पायलट

इस बात से इंकार नहीं कि अशोक गहलोत ने AICC अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने और CM पद छोड़ने के मामले में पार्टी हाईकमान का भरोसा तोड़ा है। गहलोत समर्थक विधायकों की और से विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करना भी अनुशासनहीनता ही था। हाईकमान ने इस मसले पर अशोक गहलोत को क्लीनचिट भले मिल जाए, लेकिन पार्टी के कई विधायकों की नजर में यह बगावत है।

जोधपुर से ओसियां विधायक दिव्या मदरेणा, उदयपुरवाटी से विधायक और मंत्री राजेंद्र गुढ़ा जैसे नेता लगातार गहलोत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। इससे गहलोत को कोई नुकसान हो या न हो, पायलट को फायदा जरूर हो रहा है। ऐसे दो विधायक या मंत्री नहीं हैं, ऐसे नेताओं की संख्या आधा दर्जन से अधिक है। इन बगावती तेवरों के चलते ही यह भी कहा जा रहा है कि गहलोत के चलते पायलट पहले से ज्यादा मजबूत हो गए।

गहलोत से बगावत, पायलट का समर्थन  

अब कई विधायक पायलट के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। जिन विधायकों ने शांति धारीवाल और महेश जोशी के कहने पर इस्तीफे दिए थे, उनमें से ही कुछ विधायक अब गहलोत गुट से छिटकने भी लगे। शांति धारीवाल के घर बगावत की बैठक में शामिल होने वाले विधायक इंदिरा मीणा, जितेन्द्र सिंह, मदन प्रजापत और संदीप यादव भी अब सचिन पायलट की तरफदारी करने लगे। इनका कहना है कि वे हाईकमान के फैसले के साथ हैं। मदन प्रजापत तो यहां तक कह चुके हैं कि सचिन पायलट को अगर मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है, तो इसमें किसी को क्या दिक्कत!

18 विधायक थे अब 8 नए जुड़े  

विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, भंवरलाल शर्मा, दीपेंद्र सिंह शेखावत, हेमाराम चौधरी, गजेंद्र सिंह शक्तावत, रामनिवास गावड़िया, इंद्रराज गुर्जर, गजराज खटाणा, राकेश पारीक, मुरारी लाल मीणा, पीआर मीणा, वेद प्रकाश सोलंकी, सुरेश मोदी, मुकेश भाकर, हरीश मीणा, बृजेंद्र ओला और अमर सिंह शुरू से सचिन पायलट के साथ थे। लेकिन, अब ये 8 विधायक भी पायलट के लिए गहलोत से बगावत करते नजर आ रहे हैं। ये हैं खिलाड़ीलाल बैरवा, राजेंद्र गुढ़ा, वाजिब अली, दिव्या मदेरणा, इंदिरा मीणा, जितेंद्र सिंह, मदन प्रजापत और संदीप यादव।

सचिन पायलट भले ही संयमित हैं और प्रतिक्रिया से बच रहे हैं, लेकिन मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और विधायक दिव्या मदेरणा लगातार हमलावर हैं। कांग्रेस की तेज तर्रार नेता दिव्या मदेरणा लगातार गहलोत गुट की ओर से उठाए गए कदम को गलत करार देते हुए ट्वीट कर रही हैं। हालांकि उन्होंने साफ किया कि वे न तो गहलोत गुट के साथ हैं और न पायलट गुट के! वे किसी गुट में नहीं है। वे तो सिर्फ हाईकमान के फैसले के पक्ष में है।

उधर, मंत्री राजेंद्र गुढ़ा का कहना है कि धारीवाल के सरकारी बंगले पर जो नौटंकी हुई उसका नतीजा बहुत बुरा होगा। गुढ़ा ने कहा कि सिर्फ तीन-चार लोगों ने सारे विधायकों को कब्जे में कर रखा है। जिन विधायकों ने धारीवाल और महेश जोशी के बहकावे में आकर इस्तीफे दिए हैं। उनमें कोई भी विधायक बिना टिकट के सरपंच का चुनाव भी नहीं जीत सकते।