Sona Patha Oroxylum Indicum: क्या सोनपाठा के विषय मे जानते हैं, आप?

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Sona Patha Oroxylum Indicum
Sona Patha Oroxylum Indicum

Sona Patha Oroxylum Indicum: क्या सोनपाठा के विषय मे जानते हैं, आप?

सोनपापड़ी और सोनपरी तो खूब सुना है, मगर क्या सोनपाठा के विषय मे जानते हैं, आप? वैसे जहाँ भी सोना आया, उसका संबंध दिमाग से जरूर मिलेगा। फिर चाहे वो सोना चांदी च्यवनप्राश हो, सोनपाठा हो या आधुनिक युग का जानू- सोना- बाबू हो। कोई दिमाग बढ़ायेगा तो कोई खायेगा। है न
सोनपाठा या श्योनाक सम्पूर्ण भारत मे लेकिन बहुत कम संख्या में पाया जाने वाला दुर्लभ औषधीय पेड़ है। इसकी अधिक उपलब्धता हिमालय के आसपास ही है, किन्तु अत्यंत कम मात्रा में इसके वेद दूर दराज के क्षेत्रों में देखने को मिल जाते हैं। छिंदवाड़ा जिले के औषधीय खजाने का यह भी एक बहुमूल्य रत्न है। और लगभग सभी दिशाओं में नालों के किनारे या खेत की मेडो पर इसकी झाड़ियां देखने को मिल जाते हैं।
इसके पेड़ छोटे वृक्षो के रूप में दिखाई देते हैं, जिंन्हे दूर से ही लटकती हुयी तलवार के समान बड़ी बड़ी फलियों के कारण पहचाना जा सकता है। इसकी जड़ की छाल, पत्तियाँ तथा बीज सभी औषधीय महत्व के माने गए है लेकिन इस पर अधिक शोध की आवश्यकता है। पुराने वैद्य एवं जानकर इसे बहुमूल्य जीवन दायिनी औषधियों की श्रेणी में रखते हैं, जिसके लिए अक्सर रामवाण दवा नाम का जिक्र सुनने को मिलता है। इसमें Oroxylin-A सहित कई अन्य महत्वपूर्ण रसायन पाये जाते हैं, जिनका प्रभाव दिमाग की याददाश्त बढ़ाने के लिये उपयोगी होता है।
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उष्ण स्वभाव के कारण पेट तथा स्वांस संबंधी रोगों के लिये यह उत्तम औषधि मानी गयी है। बीजा के समान ही श्योनाक के बर्तन/ ग्लास में पानी पीने से बहुत सी बीमारियो में आराम मिलता है। लेकिन जहाँ बीजा से मधुमेह, रक्त चाप आदि में फायदा मिलता है तो वहीं इसमें मलेरिया बुखार से लेकर वात रोग और खांसी में फायदा होता है।
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दशमूलारिष्ट का नाम आप सबने सुना होगा, उन दस मूलो में से एक मूल इसकी भी है। दशमूलारिष्ट औषधी वात रोग, पित्त रोग सहित, मधुमेह, पुराने से पुराने रोग, तीक्ष्ण व बार बार लौटने वाला ज्वर सहित कई अन्य बीमारियों की कारगर औषधि है। इसकी जड़ो की छाल का पाउडर सौंठ और शहद के साथ मिलाकर चाटने से खाँसी तुरंत बैठ जाती है। इसके अलावा बबासीर में भी यह उपयोगी है। स्वभाव से यह गर्म होता है अतः पित्त, कफ और वात रोग में उपयोगी है।
मेरे जंगल भटकने के सफर के दौरान सतपुड़ा के जंगली क्षेत्र में रहने वाली एक वृद्ध ग्रामीण महिला ने बताया कि इसके पत्ते का रस कान का दर्द और मुँह के छाले ठीक करता है, जबकि बंद फोड़े पर इसके पत्ते को नमक और सरसों तेल में कुनकुना गर्म करके रखने पर मुँह खुल जाता है। आपके पास इस दुर्लभ औषधि से संबंधित जानकारी हो तो कृप्या साझा करें।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग,
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाड़ा (म.प्र.)
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