

होली पर्व पर विशेष: होलिका जल भस्मी भयि जीवित भयो प्रहलाद!
होलिका पर्व, धुरेंडी पर्व धुरेंडी की मान्यता, शब्द लोक पात्र (होलिका के पति) राजा धूरड। धूरड, धूरा, धूलेंडी पर विशेष!
धूसर प्रेम न पाईयो,
सखी, तजे विरह में प्राण।
प्रेम रंग होरी भस्मी
प्रेम को रखियो मान!!
भक्त प्रहलाद के पिता असुर राज हिरण्यकश्यप के राज में प्रभु भक्ति नाम जप करना अपराध माना जाता था। क्योंकि दुष्ट हिरण्यकश्यप स्वयं को ही सर्वोपरि स्वीकार कर चुका था। ईश्वर प्राप्त वरदानों को यदि दुष्कर्म में लगाया जाय, अनीति की जाए तो तब वे वरदान मानव-मात्र को भी नहीं फलते। अपने ही पुत्र को प्रभुभक्ति में लीन देखकर उसके पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अनेक यातनाएं देकर उसका मनोबल कमजोर करना चाहा था परंतु हर बार सत्यकर्म, सच्ची भक्ति के आगे अपने पुत्र से पराजय उसे स्वीकार नहीं थी। अस्तु योजना बनाई गई कि भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका अग्नि में लेकर उसे बैठें। क्योंकि होलिका को वरदान था अग्नि भी उसे भस्म नहीं कर सकती। अतः योजनाबद्ध तरीके से होलिका सज-धज कर अपने भतीजे भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी। कर्म की गति भी न्यारी होती है। हुआ विपरीत होलिका जल भस्मी भयि जीवित भयो प्रहलाद।
जब ये खबर होलिका के पति राजा धूरेड ने लगी तब उस स्थल पर जाकर देखा और जब देखा कि प्रहलाद जीवित हें और होलिका भस्म हो गई तब उसी भस्मी में राजा धूरेड भी अपनी प्रिय को खोज खोजकर लोट लगाने लगे,बावरे प्रीत में क्या न करते। सारी राख में होरी होरी का विलाप, प्रेम की पराकाष्ठा आखिर प्राण त्याग का कारण बनी। तभी से भस्म अर्थात अलग अलग रंगों से धूरेडी पर्व मनाया गया।
लोक गाथाओं की परम्परा मैने अपनी दादी सूरज बाई से विरासत में पाई हें। दादी ने लोक मान्यताओं को जीवन दर्शन से जोड़ अति सटीक गाथाओं या वार्ता को बड़े रोचक प्रसंग से सुनाकर अपनी परम्पराओं को जीवित रखने हेतु ही शायद मुझे चुना। लोक पर्व गणगौर में होली की राख से गौर प्रतिमा भी मिट्टी के साथ मिलाकर बनाई जाती हे हमारी मान्यताओं के अनुरूप। तात्पर्य यही कि स्त्री की महत्ता पूजनीय के साथ समर्पण की भी है ही। इसी पर्व को मेरी दादी महादेव के मदन दहन प्रसंग से भी बताती थीं।
शिवसती से जोड़कर कोई कथा हो या कोई पौराणिक प्रसंग , हर गाथा में स्त्री ही अग्निधर्मा बनी हे। आप हम सभी पढ़ते श्रवण करते ही आए हैंं। शिव सती मां सीता, द्रौपदी अग्नि से जन्मी, होलिका, मतलब जितने पौराणिक प्रसंग हैं स्त्री से प्रमाण मांगे गए हैं शायद सतीप्रथा भी उस काल में स्त्रियों के मन के इतने करीब रहा हो। अनेक प्रसंग, त्यौहार पर्व हमारी भारतीय परम्पराओं में गाथाओं के माध्यम से संस्कृति को दर्शाते हैं और इसी संस्कृति को रक्षण करना प्रसारित करना हमारा धर्म हैं।
आप सभी को होलिका पर्व की बधाई शुभकामना!
माधुरी सोनी मधुकुंज!