रविवारीय गपशप : अतिक्रमण हटाने की रोचक कहानी 

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रविवारीय गपशप : अतिक्रमण हटाने की रोचक कहानी 

 

आनंद शर्मा

इस सप्ताह नेटफ़्लिक्स में रेड 2 देखने मिल गई जो अजय देवगन की पिछले साल आई फ़िल्म रेड का सीक्वल है । फ़िल्म में अजय इनकम टैक्स अफ़सर बने हैं जो बड़े रसूखदारों के यहाँ छापा मारकर काला धन निकालते हैं । दोनों ही फ़िल्में मनोरंजन के मसाले से भरपूर हैं , अलबत्ता ये और बात है कि वास्तविकता इससे कोसों दूर होती है ।

वर्ष 1992 में मेरा तबादला सीहोर जिले में हो गया और मैं मुख्यालय का अनुविभागीय अधिकारी बना दिया गया । एक दिन कलेक्टर से मार्क होकर मेरे पास एक शिकायत आई कि फ़लाँ आदमी ने सीहोर तहसील के बिलकीसगंज टप्पे में स्थित वन क्षेत्र पर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है जिसे हटवाया जाए । जाँच करने पर पता लगा कि कब्जा तो है पर भूमि वन विभाग की है । मैंने रिपार्ट भेज दी कि ये हमारा नहीं वन विभाग का मसला है । अगले दिन कलेक्टर अजय सिंह ने मुझे अपने चेम्बर में बुलाया और कहा ये क्या लिख दिया ? हमारे और और वन विभाग में क्या फर्क , अतिक्रमण है तो हटाओ और जरूरत है तो फारेस्ट के अफसरों को साथ ले लो । मैंने अगली सुबह वन विभाग के अफसरों को साथ लिया और वन क्षेत्र के लिए रवाना हो गया । वह क्षेत्र बड़ा ही दुर्गम था , पहुँचने में ही दो घण्टे से ज़्यादा लग गए । गाँव में पहुँच कर स्कूल भवन में गाँव वालों को इकट्ठा किया तथा पटवारी और वनरक्षक से पूछताछ की तो पता लगा अलग अलग जगहों पर जंगल से लगी वन विभाग की पड़त पड़ी जमीनों पर फसल बोई हुई है । अतिक्रॉमक को बुलाया तो उसने कुबूल किया कि फसल उसी ने बोई है । तब तक हमारे आसपास बहुत से ग्रामीणजन इकट्ठे हो गए थे । मैंने वनविभाग के लोगों से कहा आप प्रकरण दर्ज कर जो भी कानूनी कार्यवाही आवश्यक हो , वो करो । हमारे साथ आए तहसीलदार ने ग्रामीणों से कहा “आपकी शिकायत पर हम सब यहाँ आए हैं , अब अतिक्रमण हटाने में हमारी मदद करो और अपने जानवर ले आओ ताकि फसल चरा कर जमीन खाली करा लें । ग्रामीणों ने सुना और सिर हिला कर ग्राम में वापस चले गए । हम इंतिजार ही करते रहे लेकिन कोई वापस न आया , तो वन विभाग के एस.डी. ओ. साहब कहने लगे “ ये अतिक्रामक प्रभावशाली है इसके ख़िलाफ़ शायद ही कोई अपने जानवर ला पाएगा ।” मैंने तहसीलदार से पूछा अब अतिक्रमण हटाने के लिए क्या करें ? तहसीलदार बोले “जिसने अतिक्रमण किया है , उसके पास तीन चार ट्रेक्टर हैं , उसी से ट्रेक्टर में फलिया लगा कर चला देंगे , तो जो बोया है वो नष्ट हो जाएगा । मैंने अतिक्रामक को बुलाया और ट्रैक्टर मांगे । मुझे आश्चर्य हुआ उसने मय ड्राइवर के अपने ट्रेक्टर हमें सौंप दिए । एक ट्रैक्टर पर मैं ख़ुद बैठा और बाकियों पर अन्य अधिकारी । पटवारी और वनरक्षक को साथ ले , सभी ट्रैक्टरों से किए गए अतिक्रमण को हटाने हम चल पड़े । दो तीन घंटे में सारा अतिक्रमण मय बागड़ के हटा दिया और वापस शाला भवन आकर बैठ गए । तब तक चार बज चुके थे , और सभी को जोरों की भूख लगी हुई थी । छोटा सा गाँव कहीं खाने का इंतिज़ाम भी नहीं था , तभी पटवारी जी मेरे पास आए और बोले ठेकेदार साहब जिन्होंने अतिक्रमण किया था वो आपसे मिलना चाहते हैं । मैंने कहा अब क्या हर्ज है बुला लाओ । ठेकेदार समक्ष में आया और कहने लगा अब तो सब कार्यवाही हो चुकी है , आप लोगों के लिए मैंने खाना बनवा लिया है , कृपया चल कर खाना खा लें । वन विभाग , राजस्व विभाग और पुलिस के जवानों सहित हम बीस पच्चीस आदमी थे । मुझे लगा कार्यवाही तो हम कर ही चुके हैं अब निमंत्रण स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है क्योंकि इतने सारे लोगों को भोजन कराने की जिम्मेदारी भी मेरी ही थी । अगले घण्टे हम सबने छक कर भोजन किया । तब तक शाम हो चुकी थी हमने वापसी के लिए तैयारी कर ली और वाहनों में बैठ सीहोर के लिए रवाना हुए । जैसा की मैंने कहा था मार्ग बड़ा दुर्गम था , वापसी का रास्ता नहर नुमा संकरा था और रास्ते में किसी ने पानी छोड़ दिया था जिससे कीचड़ हो गया था । थोड़ी दूर जाने पर मेरी जीप कीचड़ में फँस गई , बाक़ी सभी वाहन पीछे थे , पीछे लौटने का रास्ता नहीं था । मुझे लगा अब शायद निकलने में रात भर लगेगी । तभी सामने से वही ठेकेदार अपने ट्रेक्टर लेकर आ गया । उसके पहियों में चैन लगी हुई थी जिससे वे कीचड़ में चलने के काबिल थे । एक एक कर के उसने सारे वाहन सड़क के उस छोर तक पहुँचा दिए जहाँ से रास्ता अच्छा था । मैंने उससे जाकर हाथ मिलाया , धन्यवाद दिया और कहा “ हमने तुम्हारी सारी फसलें , तुम्हारे ही टेक्टर से बर्बाद कर दीं , तुम पर मुकदमे दर्ज किए , जुर्माने किए , वन विभाग ने तुम पर तीतर-बटेर रखने का केस लगाया और बदले में तुमने हम सब को खाना खिलाया और अब अपने ट्रेक्टर से हमारे फँसे वाहनों को ठिकाने लगा दिया आख़िर ऐसा क्यों किया ? ढेकेदार बोला “ आप लोग सरकार हो , पुलिस बंदूक पटवारी फारेस्ट गार्ड के साथ गाँव पधारे । मैं कितना भी विरोध करता आप वही करते जो करने आए थे , सो मैंने जल्दी करवा दिया और असली बात ये है कि मैंने सहयोग किया तो आप का मेरे प्रति मन भी ख़राब नहीं हुआ बाक़ी रही मदद की बात तो तो आप तो मेहमान हो मदद करना तो फ़र्ज़ ही था और एक आख़िरी बात ये गाँव तो हमारा ही है कहाँ जमीन जा रही है और कहाँ फसल और इतनी मुसीबत उठा कर आप और कितनी बार आओगे ? मैंने उसकी बात के मर्म को समझा और उससे हाथ मिला अपनी जीप में बैठ गया । सीहोर की ओर चलते हुए मैंने बगल में बैठे एस.डी.ओ. फ़ॉरेस्ट को कहा , भैया इस बार तो हमने अतिक्रमण हटा दिया अब आगे आप ख़ुद सतर्क रहना ।