शहीदों को सही श्रद्धांजलि अखंड भारत पुनर्निर्माण ही है…
जब बात शहीदों की होती है, तब लता मंगेशकर द्वारा गाया गया देशभक्ति गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों,जरा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी,जरा याद करो कुर्बानी” जुबां पर खुद-ब-खुद आ जाता है। 31 मार्च 2023 को जब मध्यप्रदेश की राजधानी शहीद हेमू कालानी मय हुई, तब लता दीदी और उनकी आवाज में यह गीत मन गुनगुनाने लगा। यह गीत बहुत लोकप्रिय है। इस गाने को प्रदीप कुमार ने लिखा है,जबकि संगीत सी. रामचंद्र ने दिया है।
तो पहले बात करें हेमू कालानी की।भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी, स्वराज सेना के नेता थे और एक छात्र संगठन अखिल भारतीय छात्र संघ(एआईएसएफ) से संबद्ध थे। वह देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा उनके 20वें जन्मदिन से दो महीने पहले केवल 19 वर्ष की उम्र में फांसी दी गई थी। बहुत संक्षिप्त में अगर जानें तो हेमू कलानी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध के सुक्कुर में एक सिंधी हिंदू परिवार में हुआ था। यह अब पाकिस्तान में है। एक बच्चे और युवा के रूप में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए अभियान चलाया। वह भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजों को बाहर निकालने के उद्देश्य से विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने लगे।1942 में हेमू कालानी महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए। सिंध में आंदोलन के लिए समर्थन ऐसा था कि ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों को उनके बाद यूरोपीय बटालियनों वाली सैन्य टुकड़ी भेजनी पड़ी।
हेमू कालानी को पता चला कि इन सैनिकों की एक ट्रेन और उनकी आपूर्ति 23 अक्टूबर को उनके स्थानीय शहर से गुजरेगी और उन्होंने रेलवे ट्रैक से फिशप्लेट हटाकर इसे पटरी से उतारने का फैसला किया। उनके पास आवश्यक उपकरण नहीं थे और इसलिए फिक्सिंग को ढीला करने के लिए एक रस्सी का उपयोग करना पड़ा। तोड़फोड़ करने से पहले उन्हें अंग्रेजों ने देख लिया था। हेमू को उसके सह-षड्यंत्रकारियों के नाम प्रकट करने के प्रयास में भारतीय इंपीरियल पुलिस द्वारा पकड़ा गया, कैद किया गया और प्रताड़ित किया गया। उन्होंने किसी भी जानकारी का खुलासा करने से इंकार कर दिया, मुकदमा चलाया गया और मौत की सजा सुनाई गई। सिंध के लोगों ने वायसराय से दया की याचना की लेकिन इसे देने की शर्त यह थी कि अधिकारियों को उनके सह-षड्यंत्रकारियों की पहचान बताई जानी चाहिए। उन्होंने फिर से सूचना देने से इंकार कर दिया और उन्हें 21 जनवरी 1943 को फांसी दे दी गई। राष्ट्र की बलिवेदी पर मर मिटने के लिए हेमू कलानी इतने खुश थे कि सजा मिलने तक उनका वजन काफी बढ़ गया था। अपने फाँसी के दिन वह अपने हाथों में भगवद गीता की एक प्रति के साथ मुस्कुराते हुए और पूरे रास्ते गुनगुनाते हुए फांसी पर चढ़ गया।
शहीद हेमू कालानी के जन्म शताब्दी वर्ष के समापन समारोह पर राजधानी भोपाल में आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हेमू कालानी जी का मानना था कि “हम नहीं रहेंगे लेकिन भारत जरूर रहेगा”। इसी आदर्श को लेकर संत कंवरराम जैसे देशभक्त भी बलिदान के लिए आगे आए। उन्होंने कहा कि सिंधी समुदाय ने भारत नहीं छोड़ा था। वे भारत से भारत में ही आए थे। सिंधु संस्कृति में वेदों के उच्चारण होते थे। हमने तो भारत बसा लिया लेकिन वास्तव में राष्ट्र खंडित हो गया। आज भी उस विभाजन को कृत्रिम मानते हुए सिंध के साथ मन से लोग जुड़े हैं। सिंधु नदी के प्रदेश सिंध से भारत का जुड़ाव रहेगा। वहाँ के तीर्थों को कौन भूल सकता है। भागवत ने कहा कि आज भी अखंड भारत को सत्य और खंडित भारत को दु:स्वप्न माना जा सकता है।
यानि हेमू कालानी की यादों संग एक बार फिर अखंड भारत की चर्चा शुरू हुई है। आज जरूरत है कालानी जैसे कालजयी व्यक्तित्व को अपने जीवन में उतारने की। राष्ट्र निर्माण के लिए सर्वस्व त्याग नहीं भी कर सकते तो कम से कम ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर एक अखंड भारत के सपने को साकार कर शहीदों को सही श्रद्धांजलि दी जा सकती है। शहीदों की यादों में हर बरस मेले लगते रहेंगे, बस जरूरत है उनके विचारों को आत्मसात कर उनके बताए मार्ग पर चलने की।