तर्पण में नहीं भेद,आरएसएस के साथ भाजपा, कांग्रेस और अन्य दल के दिवंगत नेता हुए एक…

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

भाजपा नेता गोविंद मालू ने आरएसएस स्वयंसेवकों के साथ दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्र के शहीदों का तर्पण किया एक साथ – पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने हाल ही में कहा था राजनीति में मतभेद रहें, पर मनभेद नहीं होना चाहिए
– प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने विशेष अवसरों पर राजनीति से परे व्यक्तिगत संबंधों को निभाने की बात की थी स्वीकार

Bhopal MP: राजनीति में अलग-अलग दलों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप करते अक्सर ही नजर आते हैं। ऐसे अवसर कम ही देखने को मिलते हैं, जब दलीय भावना से ऊपर उठकर आपसी प्रेम और मानवीयता के प्रसंग सामने आ सकें। यहां तक कि पिछली विधानसभा के समापन में तो विदाई का ग्रुप फोटो ही नहीं खिंच पाया था। ऐसा प्रसंग इससे पहले दर्ज नहीं हुआ था। खैर अभी हम बात कर रहे हैं इंदौर में हुए तर्पण की। पितृ पक्ष में इसे पितरों की प्रेरणा मानें या दलगत राजनीति से ऊपर उठकर किया गया नेक काम। भाजपा नेता गोविंद मालू ने आरएसएस के दिवंगत प्रचारकों, स्वयंसेवकों के साथ दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्रियों नेहरू जी, शास्त्री जी, इंदिरा जी, राजीव जी, मोरारजी देसाई, अटलजी, चरणसिंहजी, चंद्रशेखरजी, आदि तथा विद्वानों- मनीषियों,कोरोना में दिवंगत हुए और राष्ट्र के शहीदों का तर्पण श्राद्ध कार्यक्रम एक साथ किया। तो हुआ न दलीय भावना से ऊपर उठकर इंसानियत, आपसी भाईचारे और प्रेम भावना का खास उदाहरण। भाजपा में प्रदेश मीडिया प्रभारी, खनिज विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष और अलग-अलग दायित्वों को संभालने वाले वर्तमान प्रदेश कार्यसमिति सदस्य गोविंद मालू की पार्टी जहां नेहरू, इंदिरा और राजीव को फूटी आंखों से नहीं देखना चाहती और गांधी परिवार के प्रति भाजपा का प्रेम तो जगजाहिर ही हैै, ऐसे में यदि तर्पण में यह नेता साथ में एक जगह एकत्र हुए होंगे तो मालू को आशीर्वाद भी दे रहे होंगे और असमंजस में भी होंगे कि आखिर दलीय वैमनस्यता के बीच इतनी उदारता का भाव आखिर जिंदा कैसे बच पाया। वैसे हाल ही में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के जन्मदिन पर इंदौर के ही भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता कैलाश विजयवर्गीय और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भोपाल में उनके निवास पर जाकर बधाई दी थी। अजय सिंह को सफाई देना पड़ी कि वह भाजपा में नहीं जा रहे बल्कि उनका मत है कि अलग-अलग दलों के नेताओं के बीच मतभेद होना चाहिए पर मनभेद नहीं होना चाहिए। वैसे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से भी जब इस पर प्रतिक्रिया ली गई थी तो उन्होंने भी अजय सिंह को बधाई देते हुए मेलजोल को राजनीति में भी व्यक्तिगत संबंधों के रूप में परिभाषित किया था। वैसेे मालू का काम भी मतभेद होने और मनभेद न होने की कसौटी पर सौ फीसदी खरा उतरता है।

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वैसे मालू एक दशक से यही उदारता दिखा रहे हैं। “आनंद गोष्ठी” द्वारा लगातार 10 वें वर्ष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तपोनिष्ठ दिवंगत स्वयं सेवकों व दिवंगत पूर्व सरसंघचालक,भाजपा के दिवंगत नेताओं, महापुरुषों, दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्रीयों नेहरूजी, शास्त्रीजी, इन्दिराजी, राजीव गांधी, मोरारजी देसाई, अटलजी, चरणसिंहजी, चंद्रशेखरजी, आदि तथा विद्वानों- मनीषियों,कोरोना में दिवंगत हुए और राष्ट्र के शहीदों का तर्पण श्राद्ध कार्यक्रम हँसदास मठ, एरोड्रम रोड पर किया गया था। पण्डित पवन तिवारी के सान्निध्य और मंत्रोच्चार के साथ गोविन्द मालू ने अपने साथियों और कार्यकर्ताओं के साथ विधि विधान से तर्पण व श्राद्ध कार्यक्रम सम्पन्न किया।इस अवसर पर पूज्य सद्गुरु अन्ना महाराज जी, श्री हँस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी श्री रामचरणदास जी,सांसद शंकर लालवानी, विष्णु बिंदल, जगमोहन वर्मा, हरि अग्रवाल, मोहनलाल सोनी, विशाल देशपांडे, अमित विजयवर्गीय सहित कई संत महात्मा उपस्थित थे। लालवानी,
सद्गुरु अन्ना महाराज, गोविन्द मालू आदि ने श्राध्द की महत्ता भी बताई।

Ghamasan on Twitter: "गोविन्द मालू के कांग्रेस से पांच सवाल https://t.co/afMhLwrBm2 #govindmalu #bjp #leader #indore #MadhyaPradesh #politics #Congress #LokSabhaElections2019 #Election2019 #indoreelection2019 #Phase7 ...

अजय सिंह और गोविंद मालू की तरह भाजपा-कांग्रेस के सभी नेता मतभेद और मनभेद का गणित समझ जाएं तो शायद राजनीति की दिशा और दशा ही बदल जाए। वैसे रविवार को दो दिग्गज नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह के बयान भी आए। भारत बंद की अपील करते हुए दिग्विजय सिंह ने तीन किसान बिलोंं पर मोदी को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो दिग्विजय द्वारा खुद को भाजपा नेताओं से बड़ा हिंदू बताने के सवाल पर साध्वी प्रज्ञा सिंह ने दिग्विजय सिंह पर कटाक्ष करने में कोई रियायत नहीं बरती। खैर यही उम्मीद करें कि राजनीति में पितृ पक्ष साल में एक बार आने की जगह महीने में कम से कम एक बार तो आना ही चाहिए जब अटल जी की तरह दलीय भावना से ऊपर उठकर सभी दल के नेता अन्य दलों के नेताओं के प्रति मनभेद न होने की उदारता का दिल खोलकर प्रदर्शन कर सकें।

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