आज का विचार – “फूट विनाश का कारण होती है”

पढ़िए एक रोचक बोध कथा

1055

आज का विचार -“फूट विनाश का कारण होती है”

कुछ लकड़हारे लकड़ी काटने के मंतव्य से एक जंगल में घूम- घूम कर वृक्षों का निरीक्षण करने लगे। उनको ऐसा करते देखकर जंगल के वृक्ष शोक करने लगे।

उनको शोक करते देखकर एक पुराने वटवृक्ष ने पूछा -“बंधुओ ! तुम लोग इस प्रकार किस कारण से शोक कर रहे हो ?!! वृक्षों ने कहा -”आप देख नहीं रहे हैं कि यह अनेक लकड॒हारे हम सबको देखते फिर रहे थे। कुछ ही समय में यह सबको काटकर गिरा देंगे।’

वटवृक्ष ने उन्हें ढाढ़स बँधाते हुए कहा -”तुम सब व्यर्थ चिंतित हो रहे हो, लकड़हारे हममें से किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते।’

कुछ समय बाद लकड़हारों ने जंगल में अपने तंबू लगा लिए और काटने कौ योजना बनाने लगे। वृक्ष अब और दुखी होने लगे। वृक्ष ने उन्हें पुन: समझाया -‘तुम सब प्रसन्‍न रहो। हम सब इतने मजबूत हैं कि इनकी योजना कदापि सफल नहीं हो सकती। ‘वटवृक्ष की बात सुन कर वृक्षों की चिंता जाती रही।

किंतु जब एक दिन बहुत सी लोहे की कुल्हाड़ियाँ बनकर आ गईं तो बेचारे वृक्ष वटवृक्ष को भला-बुरा कहने लगे। वे बोले -”आप तो कह रहे थे कि ये लकड्हारे अपनी योजना में सफल नहीं हो सकते।

किंतु यह तो दिन-दिन हम सबको काटने का उपक्रम करते ही जा रहे हैं। अब तो लोहे की कुल्हाड़ियाँ भी बनकर आ गईं। अब हममें से किसी की खैरियत नहीं है।”!

वटवृक्ष ने फिर कहा -”इतनी ही नहीं, इससे चार गुनी कुल्हाड़ियाँ बनकर क्‍यों न आएँ और इतने ही लकड़हारे इकट्ठे हो जाएँ तब भी हममें से किसी का बाल बाँका नहीं कर सकते।

किंतु एक दिन जब कुल्हाड़ियों में लकड़ी के बेंट पड़ गए तो अन्य वृक्षों के कुछ कहने से पहले ही वटवृक्ष बोला -” भाइयो! अब हम सबको इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी नहीं बचा सकते हम सब काट डाले जाएँगे।’

जंगल के सारे वृक्ष बरगद से कहने लगे -‘“जब हम सब कटने की बात कहते थे तब आप हमको मूर्ख समझते थे और विश्वास दिलाते थे कि ये लकड़हारे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते, पर अब क्या बात हो गई जो आप स्वयं ही निराशा की बात करने लगे!”

वटवृक्ष ने गंभीरता से उत्तर दिया -‘तब तक केवल लकड़हारे और कुल्हाड़ी एक दूसरे के सहायक थे इसलिए हमको कोई खतरा नहीं था। किंतु अब देखो न कि हमारे ही कुल का काष्ठ लकड़हारों की कुल्हाड़ी का बेंट बनकर हमारे विनाश में सहायक हो रहा है।

जब अपना ही कोई व्यक्ति शत्रु का सहायक बन जाता है तब विनाश से बच सकना असंभव हो जाता है। ”वटवृक्ष की बात ठीक निकली। दूसरे ही दिन से लकड़हारों ने वृक्षों पर कुल्हाड़ी बजाना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में जंगल को काटकर नीचे गिरा दिया।

यात्रा संस्मरण :कुम्भलगढ़ की आत्मा बावन देवरी, पहुँचना थोड़ा दुर्गम हो .. आपके धैर्य को चुनौती देता!