

घूमें देश-विदेश
दक्षिणपूर्व एशिया की पूर्वी सीमा पर स्थित वियतनाम इस मायने में दिलचस्प है कि मानवीय यंत्रणा की सारी सीमाओं को सहकर तथा विश्व की तमाम ताकतवर शक्तियों के लालच व शोषण को झेलकर यानी दुनिया भर के झंझावातों से पार पाकर यह आज न केवल आत्मनिर्भरता के नए सोपान तय कर रहा है , बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में एक अलग मिसाल कायम कर रहा है ।
पेलियोलिथिक काल खण्ड से उपजे इस देश में हजारों साल चीन के राजवंशों का शासन रहा है । सन 939 में ली डायनेस्टी ने अपना शासन कायम किया , और कई सौ वर्षों के विभिन्न राजवंशों के शासन के बाद , पुर्तगाल, स्पेन , इंग्लैंड और फ्रांस के सौदागरों की निगाह इसकी भरपूर उर्वर धरती पर पड़ी और अंततः फ़्रांस ने 1883 में इस पर अपना अधिकार क़ायम कर इसे इण्डोचायीन का हिस्सा बना दिया । द्वितीय विश्वयुद्ध में कुछ बरस जापान के आधिपत्य में रहने के बाद जब युद्ध समापन हुआ तो 1945 में मशहूर नेता हो ची मिन्ह ने इसकी स्वतंत्रता की घोषण की , पर ये सरल ना था , फ़्रांस इस पर अपना अधिकार जमाता रहा और सन 1955 में एक समझौते के तहत उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के विग्रह के साथ देश में इनका अपना राज कायम हुआ । इसके दोनों हिस्सों पर अमेरिका और रूस दोनों का अलग अलग कब्जा था । अमेरिका ने लगभग बीस वर्षों तक चले इस युद्ध में ना केवल अपने हजारों नौजवान खोए बल्कि पूरे विश्व में और ख़ुद अपने नागरिकों में इसकी भारी आलोचना झेली और अंततः 1975 में उसकी पराजय के साथ वियतनाम साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित एक सोशलिस्ट रिपब्लिक में बदल गया ।
पिछले कुछ वर्षों में पर्यटन के क्षेत्र में वियतनाम ने बेमिसाल तरक्की की है , और भारतीय घुमक्कड़ों के बीच तो सस्ती विदेश यात्रा के लिए इसने ऐसी लोकप्रियता हासिल कर ली है कि अहमदाबाद से हनोई और हो ची मिन्ह सिटी के लिए वियतजेट की सीधी फ्लाइट है । पर सच तो ये है हमसे कहीं ज़्यादा दूसरे देश के भ्रमणप्रेमी इसमें रुचि ले रहे हैं । अमरीका ,यूरोप ,ऑस्ट्रेलिया तथा रूस के अलावा चीन और जापान के पर्यटक भारी संख्या भी भारी संख्या में वियतनाम जा रहे हैं ।
वियतनाम की राजधानी है , हनोई जो रेड और ब्लेक नदी से घिरा हुआ फ़्रेंच आर्किटेक्ट से सजी इमारतों वाला शहर है । यहाँ इतनी झीलें हैं कि इसे झीलों का शहर भी कहते हैं । हो ची मिन्ह , जिन्हें वियतनाम में महात्मा गांधी सी इज़्ज़त हासिल है , की समाधि इसी शहर में है , जहाँ रोजाना सुबह कई सौ मीटर लंबी क़तारें उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए लगती हैं । यद्यपि इस देश में पच्चासी प्रतिशत नागरिक किसी धर्म को नहीं मानते हैं , पर यहाँ वन पिलर पगोडा और परम्यूम पगोडा जैसी ख़ूबसूरत धर्मस्थल इमारतें भी हैं । हनोई में ट्रेन स्ट्रीट है जहाँ पटरियों पर दुकानें सजी रहती हैं और ट्रेन के आने पर अलग हो जाया करती हैं , यह दृश्य सचमुच देखने लायक है । खूबसूरत वाटर पपेट शो नदी में करतब करती कठपुतलियों का करतब है जो आपका दिल जीत लेगा । हनोई से लगभग एक सौ सत्तर किलोमीटर दूर “निन्ह बिन एवं टॉम कॉक “ नामक खूबसूरत स्थल है , जो कभी हनोई से पहले वियतनाम की राजधानी हुआ करती थी ।यह विश्व धरोहर स्थल है जो चूने के पर्वतों के बीच गुजरती जल धाराओं का ऐसा अनोखा तिलिस्म है कि आप उसके जादू में देर तक जकड़े रहेंगे । हनोई में हम भारतीयों के भोजन के लिए कई रेस्तरां हैं , हालाकि वियनामी स्ट्रीट फ़ूड आपको ज़रूर चखना चाहिए , इस सावधानी के साथ की पानी आप बोतलबंद ही पियो और पानी ना पीना हो तो बियर स्ट्रीट है जहाँ झूमते नाचते सैलानी आपका दिल जीत लेंगे ।
वियतनाम का दूसरा और सबसे प्रसिद्ध शहर है “ हो ची मिन्ह सिटी “ जिसका पूर्व का नाम साईगॉन था और आज भी जिसे अधिकतर लोग साईगॉन ही कहते हैं , हमारे मुंबई की तरह का शहर है । खूबसूरत गगनचुम्बी इमारतों का ये शहर कभी नहीं सोता , और अपने दमकते मॉल , खाने के ढेर ठिकानों और मनोरंजन के विविध स्रोतों से आपको सोने भी नहीं देता पर ये अकेला शहर ही आकर्षक नहीं है बल्कि हो ची मिन्ह सिटी और उसके आसपास पर्यटकों को मोह लेने वाले अनेक स्थल हैं । मैकलॉंग डेल्टा है जहाँ आप मैकलॉंग नदी में नावों से दोनों ओर दूर तक धान के लहराते खेतों का मुलहजा कर सकते हो , चू ची टनल है जो वस्तुतः अमेरिका से हुए युद्ध और उसके अत्याचारों की याद दिलाने के लिए वियतनामियों ने सम्हाल कर रखा है और जहाँ जमीन के अंदर स्थित सुरंगों में वे आपको ले जाते हैं जो तीन मंजिल नीचे दस मीटर तक की गहराई में स्थित हैं , पर इन सबसे जुदा है “ हा लोंग बे “ । हा लोंग बे विश्व धरोहर स्थल है जहाँ समुद्री खाड़ी के बीच जब आप जहाज से जाते हो तो आपके चारों और चूने के पर्वत करीने से सजाई थाली जैसे प्रतीत होते हैं । दिलचस्प बात ये है कि इन शृंखल्ला बद्ध पर्वतों की कुल संख्या 1969 है , और ये इनके लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सन 1969 में ही वियतनाम के गांधी हो ची मिन्ह जिन्हें वे प्यार से अंकल हो कहते थे का निधन हुआ था । हा लोंग बे में ही आप चूने के पर्वतों की गुफाओं में पानी के रिसाव से लाखों सालों में बनीं चुनें पत्थरों की विस्मयकारी कलाकृति से रूबरू होते हो , और मन ही मन हिंदी फ़िल्म का मशहूर गीत गुनगुनाने लग जाते हो “ ये कौन चित्रकार है “ ।
वियतनाम के पर्यटन क्षेत्र में इतनी तरक्की के पीछे उसका प्राकृतिक सौंदर्य तो है ही पर उसके नागरिक भी हैं । ग़ज़ब की हॉस्पिटैलिटी और विनम्रता के मिश्रण से आपको हमेशा लगता कि आप कोई नवाबज़ादे हो । बज़ट को ख्याल में रख कर घूमने वालों के लिए तो ये निश्चित ही जन्नत है ।
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