

घूमे देश विदेश:इतिहास के कई किस्से छुपे हैं बुरहानपुर के गर्भ में!
– आनंद शर्मा
सरकारी कामकाज के सिलसिले में जब एक बार बुरहानपुर का दौरा लगा तो मन में इंदु सैंडर्स की प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Twentieth wife’ के अनेक सफ्हे कौंध रहे थे। यह पुस्तक मुमताज महल और ताजमहल बनने की कहानी पर है। इस किताब में बुरहानपुर में मुमताज की मृत्यु और फिर शाहजहां के द्वारा ताजमहल बनवाए जाने को तफ़सील से बयां किया है। लेकिन, बुरहानपुर की प्रसिद्धि के पीछे यही एक दास्ताँ नहीं है, बल्कि अनेक और भी ऐतिहासिक तथ्य उसे विश्व प्रसिद्ध बनाते हैं।
बुरहानपुर में सभ्यता के प्रसार का सिरा महाभारतकालीन यदुवंशियों तक जाता है और कहते हैं की यहाँ स्थित असीरगढ़ के दुर्ग का निर्माण तब का ही है। बहरहाल मध्यकाल में इस स्थल पर फारूकी साम्राज्य का अधिपत्य था, जिसे अकबर ने युद्ध कर अपने अधीन किया और तब से ही मुग़ल ये जान गए थे की दक्षिण की विजय का यह महत्वपूर्ण पड़ाव है। इसी कारण जहांगीर से ले कर औरंगजेब तक मुग़ल शहजादे यहाँ गवर्नर नियुक्त किए जाते थे। कहते हैं की शाहजहां और उसकी प्रिय बेगम मुमताज को ये जगह बेहद पसंद थी और इसी स्थान पर स्थित आहूखाने (मृग विहार) में उसके मृत शरीर को तब तक रखा गया जब तक कि उसकी कब्र पर स्थित विश्व प्रसिद्ध मकबरे का निर्माण नहीं हो गया, जिसे हम आज ताजमहल के नाम से जानते हैं।
शाहजहां को यह जगह इतनी पसंद थी कि जब उसे यहाँ से हटाकर कांधार का गवर्नर बनाया गया तो उसने नई जगह जाने से इंकार कर दिया। आज भी हममे से कुछ बिगड़ैल अफसर ऐसी हरकतें करते हैं। बहरहाल ताज महल पहले यहीं बनना तय हुआ था। पर, बाद में संगमरमर की उपलब्धता और कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते इसे आगरा में राजा जयसिंह से स्थान लेकर बनाया गया, जिसके बदले जयसिंह को यहाँ जगह दी गयी , आज भी बुरहानपुर में जयसिंहपुरा स्थान है।
इन मुग़ल कालीन शासकों के अलावा इस जगह में विश्व प्रसिद्ध कवि और भक्ति काल के प्रसिद्ध विचारक रहीम यानि अब्दुल रहीम खानखाना भी बीस वर्षों से अधिक रहे। रहीम कितने शानदान सेनापति और बेजोड़ प्रशासक थे, ये आप शाही किले कि सैर करके ही जान पाते हो। कहते हैं कि उस समय ही रहीम ने बुरहानपुर के लिए अंडर ग्राउंड वाटर सिस्टम आधारित पेयजल व्यवस्था का प्रबंध कर दिया था, जो बुरहानपुर के अलावा ईरान में ही थी। उस पर भी मज़ेदार बात यह कि इस सिस्टम से आज भी बुरहानपुर के लोग पानी पी रहे हैं। जबकि ईरान में यह सिस्टम अब ख़राब हो चुका है।
शाही महल के खूबसूरत दीवाने आम और ख़ास के के साथ साथ महल में बने हमाम के इंतिजामात देखकर आप दंग रह जाते हो, जहां उस ज़माने में मुमताज और उन जैसी बेगमों के लिए गरम और ठंडे पानी के मिश्रित और इत्र से सुगन्धित जल के स्नान का प्रबंध था। ये सब विवरण बता रहे इतिहास के प्रोफ़ेसर श्री फलक ने मुझे जब ये बताया कि इसके अलावा आम लोगों के लिए भी शहर में एक अलग हमाम बनाया गया था, तो मैं यह सोचे बिना न रह सका कि हुक्मरानों के अलावा आम जनता का इतना सोचने वाला शासक कोई कवि हृदय ही हो सकता था। क्या ही अच्छा हो कि हुक्मरानों का शायर या कवि होना अनिवार्य कर दिया जाए। हमाम की दीवारों पर बनी चित्रकारी ब्रश से नहीं बल्कि चाकू से छील कर रंगों के बीच उकेरी गई है।
नगर के बीच में ही दरगाहे हकीमी है, जो बोहरा समाज के आदि धर्मगुरु हकीमुद्दीन साहब की है, जो औरंगजेब के समकालीन थे। इनकी ही वंश परंपरा के वर्तमान धर्मगुरु बुरहानुद्दीन साहब हैं। दरगाह में आज भी सैकड़ों लोग अनेक बीमारियों से निजात पाने माथा टेकने आते हैं। कहते हैं सिखों के अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंदसिंह जी भी नांदेड़ जाते समय कुछ दिन यहाँ रुके थे। आपको पता ही होगा की नांदेड़ में ही उनका निर्वाण हुआ था और तब ही उन्होंने कहा था की अब कोई व्यक्ति सिख समाज में गुरु नहीं होगा। बल्कि गुरूग्रंथ साहब ही चिरंतन गुरु होंगे। यहाँ रुकने के दौरान उन्होंने अपनी देखरेख में ग्रंथ साहब का लेखन करवाया और उनके दस्तखतशुदा ग्रंथ साहब आज भी यहाँ की गुरुद्वारा में सुरक्षित है, जिसे गुरु की जयंती में आम लोगों के दर्शनार्थ रखा जाता है। क्या जाने यह निर्णय कि अब के बाद समाज में ग्रंथ साहब ही गुरु होंगे, गुरु गोविंद सिंह जी ने बुरहानपुर के प्रवास के दौरान ही लिया हो!
राजा जयसिंह जिन्होंने अपनी जमीन अपने मित्र शाहजहां को ताजमहल बनाने के लिए दी थी, उनका इंतकाल भी बुरहानपुर में ही हुआ था। उनकी छतरी आज भी यहाँ बनी है। कहते हैं शिवाजी महाराज से मुग़ल शासकों के व्यवहार से वे बहुत आहत थे। तो इतनी प्रसिद्द जगह का अवसान कैसे हो गया! कहते हैं कि समय का चक्र ऐसे ही घूमता है, कपड़े के व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध इसके कारीगरों को इंग्लैंड की मशीन निर्मित वस्त्र प्रणाली ने बहुत चोट पहुंचाई। इसके बाद अगला कुठाराघात हुआ और सूरत के बजाय अंग्रेजों ने मुंबई के बंदरगाह को निर्यात के लिए उपयुक्त पाया और सूरत से अटूट बंधन में बंधे बुरहानपुर के व्यवसाय की कमर टूट गई। फिर रही सही कसर पूरी कर दी रेल लाइन ने जिसमें बुरहानपुर, मुंबई और कलकत्ते के बीच था ही नहीं। पर ये सब पुरानी बातें हैं अब इन सब को पीछे छोड़ बुरहानपुर फिर प्रगति के पथ ओर बढ़ रहा है।