Sagar : आज जब लोग उम्र बढ़ने के साथ बूढ़े होने लगे हैं, कुछ लोग उम्र को पीछे छोड़ते हुए अपनी सक्रियता बरक़रार रखते हैं। सागर के डॉ रमेश श्रीवास्तव को ऐसे जुनूनी लोगों में गिना जा सकता है, जो इस उम्र में भी मरीजों को देखते हैं और चिकित्सा क्षेत्र के बदलाव पर नजर रखते हुए मरीजों का इलाज करते हैं। 75 साल पहले 2 रुपए में इलाज शुरू करने वाले डॉ रमेश श्रीवास्तव आज व्हीलचेयर पर हैं और 50 रुपए में मरीजों का इलाज करते हैं।
उनके जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें शुभकामना संदेश भेजा है। PM ने अपने पत्र में लिखा कि बधाई देने के साथ उनके लंबे जीवन की कामना की गई है। कहा गया कि आपका ये प्रयास जीवन को एक सही संदेश देता है ये सभी के लिए और डॉक्टर बिरादरी के लिए भी प्रेरक प्रसंग है।
27 फ़रवरी को 100 साल की उम्र पूरी करने वाले डॉ रमेश श्रीवास्तव मरीजों का इलाज करने वाले वे प्रदेश के संभवत इकलौते डॉक्टर होंगे। लेकिन, उनमें चिकित्सा सेवा के प्रति अपने लगाव और जुनून किसी युवा से कम नहीं है। उन्होंने 2 रुपए में शहर में प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की थी, आज वे 50 रुपए लेते हैं। दो बड़े ऑपरेशन और पैर में फ्रैक्चर के बाद भी वे पूरी तरह स्वस्थ हैं। लेकिन, मरीजों के इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ते। डॉ श्रीवास्तव पिछले एक साल से चलने में असमर्थ हैं। लेकिन 90 वर्ष की उम्र तक उन्होंने व्यायाम नहीं छोड़ा। उनका कहना है कि जीवन में यह बहुत जरूरी है।
उन्हें आज भी क्लिनिकल एक्सपीरियन्स पर बहुत भरोसा हैं। फिर भी चिकित्सा सेवा में हो रहे बदलाव को समझने के लिए डॉ श्रीवास्तव रोजाना आधा घंटा किताब और इंटरनेट को देते हैं। उनके अनुभव का ही नतीजा है कि सागर के अलावा और भी कई डॉक्टर उनसे अपना इलाज कराने पहुंचते हैं।
डॉ रमेश व्यवस्था डॉक्टरों की मोटी फीस को ठीक नहीं मानते। उनका क्लिनिकल डायग्नोस्टिक अनुभव ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। डॉ श्रीवास्तव का कहना है कि उनके समय में जांच की मशीनें नहीं थी। यही कारण है कि पढ़ाई और प्रैक्टिकल मेडिसिन पर आधारित होती थी।
जिम्मेदारी का बंधन
डॉ रमेश श्रीवास्तव सागर के उन गिने-चुने डॉक्टर्स में से हैं जिन्होंने सागर में प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की। उन्होंने 1945 में नागपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी से एलएमपी की डिग्री पूरी की इसके बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ बनने के लिए मद्रास जाने का फैसला किया। लेकिन, अचानक उनके पिता को लकवा हो गया और घर में भाई और दो बहनों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। इसके बाद में वे पीजी का दाखिला छोड़कर सागर आ गए और 1946 में कटरा इलाके में अपनी क्लीनिक खोली। कोरोनाकाल में भी डॉ श्रीवास्तव ने मरीजों को इलाज से मना नहीं किया और कई लोगों की जान बचाई।