रैगांव में जोर आजमाइश…भाजपा का नया चेहरा और कांग्रेस की पुरानी च्वाइस…

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Karnatak Election
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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट 

रैगांव विधानसभा उपचुनाव में 16 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। सपा के चुनाव चिन्ह पर भी उम्मीदवार किस्मत आजमा रहा है लेकिन जोर आजमाइश भाजपा के नए चेहरे प्रतिमा बागरी और कांग्रेस की पुरानी च्वाइस कल्पना वर्मा  के बीच ही है। रैगांव में 110266 पुरुष मतदाता और 97169 महिला मतदाता यानि 207435 मतदाता हैं।

313 मतदान केंद्र यहां उम्मीदवारों के खाते में दर्ज होने वाले मतों के साक्षी बनेंगे। सबसे अहम बात यह है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बसपा का कोई उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं है। चुनाव मैदान में बीजेपी से प्रतिमा बागरी और कांग्रेस से कल्पना वर्मा के बीच कांटे की टक्कर का अनुमान जताया जा रहा है।

यह सीट भाजपा के लिए साख का सवाल है क्योंकि भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से रिक्त हुई सीट पर पार्टी ने परिवारवाद को नकारते हुए नए चेहरे प्रतिमा बागरी पर दांव लगाया है। तो कांग्रेस ने पिछले चुनाव में पार्टी उम्मीदवार के बतौर पराजय का मुंह देख चुकी कल्पना वर्मा के रूप में पुरानी च्वाइस को ही तवज्जो दी है।

कांग्रेस इस सीट पर 35 साल से नहीं जीती। कांग्रेस ने आखिरी दफा 1985 में यह सीट जीती थी। तब कांग्रेस के रामाश्रय प्रसाद ने बीजेपी के जुगल किशोर बागरी को हराया था। 1977 से अस्तित्व में आई इस सीट पर कांग्रेस अभी तक केवल दो बार ही चुनाव जीत पाई है।

1993 में मतदाताओं ने 3 बार से चुनाव हार रहे जुगल किशोर बागरी को बीजेपी से विधायक चुना, तो 1998, 2003, 2008 तक जुगल किशोर बागरी चुनाव जीतते रहे, लेकिन 2013 में उनकी जगह उनके बड़े बेटे पुष्पराज बागरी को टिकट दे दिया गया। पुष्पराज बसपा की उषा चौधरी से पुष्पराज चुनाव हार गए थे। 2018 में एक बार फिर से जुगल किशोर बागरी पर जनता ने विश्वास जताया।

ऐसे में यह सीट भाजपा के रुझान वाली सीट मानी जा सकती है। दस बार हुए चुनावों में पांच बार भाजपा ने जीत दर्ज की है, तो बाकी पांच बार में से दो बार कांग्रेस, एक-एक बार जनता पार्टी, जनता दल और बसपा की किस्मत चमकी है। पिछले चुनाव में कल्पना वर्मा को बागरी ने बड़े अंतर से हराया था, तब ऊषा चौधरी भी चुनाव मैदान में थी, जो अब कांग्रेस के साथ हैं।

भाजपा ने वैसे तो पुष्पराज बागरी सहित जुगल किशोर बागरी के दावेदारों के टिकट वापस करवाकर डैमेज कंट्रोल किया है लेकिन दमोह उपचुनाव से सबक लेने के बाद दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीने की तर्ज पर पार्टी को भितरघात होने पर भारी चौकसी रखना जरूरी है।

जातिगत समीकरण पर नजर डालें तो रैगांव सीट पर अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के मतदाता रैगांव विधानसभा सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका में हैं जबकि सवर्ण मतदाताओं को भी नकारा नहीं जा सकता। अनुसूचित जाति वर्ग में हरिजन, कोरी और बागरी समुदाय के सबसे ज्यादा मतदाता हैं।

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा-कांग्रेस ने यहां दिग्गजों को तैनात कर जीत सुनिश्चित करने का दारोमदार उनके कंधों पर डाला है। इनमें चुरहट में भाजपा से जीत दर्ज करने वाले शरदेंदु तिवारी और हारने वाले कांग्रेस के अजय सिंह राहुल भैया भी अपने-अपने दलों से मोर्चा संभाले हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा चुनाव की घोषणा से पहले से यहां सक्रिय हैं तो नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी चुनावी सभा करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में नरेंद्र सिंह तोमर सहित कई स्टार प्रचारक रैगांव के मतदाताओं को रिझाने का काम करेंगे।

फैसला मतदाताओं को करना है कि कांग्रेस की पुरानी च्वाइस को स्वीकार कर पार्टी को तीसरी जीत का उपहार देती है या फिर सरकार पर भरोसा जताते हुए क्षेत्रीय विकास के मद्देनजर भाजपा के नए चेहरे पर मुहर लगाकर पार्टी को सिक्सर लगाने की सौगात देती है।