जब आई जी व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने बापू को यूं किया याद

जब आई जी व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने बापू को यूं किया याद

गांधी चिंतन के एक प्रसंग में सेठ लखमीचंद गोठी धर्मशाला ट्रस्ट के विशेष आमंत्रण पर जब मैं इटारसी की गोठी धर्म शाला पहुंचा तो मुझे नर्मदापुरम संभाग की आई जी दीपिका सूरी , मुझे महात्मा गांधी पर प्रमुख वक्ता की भूमिका में दिखीं,तो सहज ही यह जिज्ञासा जगी कि वे बापू को किस तरह परिभाषित करेंगी। उनका अंदाज अनूठा ही रहा। उन्होंने कहा कि बापू एक ऐसे राजनीतिज्ञ थे, जो हर बार असत्य, हिंसा,अन्याय, के खिलाफ एकला चलो की परंपरा से,अकेले ही, बिना कोई भीड़ जुटाए चल पड़ते थे। यह उनकी नैतिक ताकत ही थी कि भीड़ स्वविवेक से उनके पीछे चल पड़ती थी। गांधी विचारधारा को वर्तमान किशोर व युवा पीढ़ी से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि जब आज मैं अपने इर्द गिर्द बच्चों को हिंसक वीडियो गेम्स खेलते हुए देखती हूं तो सोचती हूं कि क्या ये कभी गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत को समझ सकेंगे। आज घर घर में सोशल मीडिया की धूम है। सुबह एक मैसेज देखा,गांधी जी के तीनों बंदरों से प्रेरणा लेने वाला। किसी ने लिखा था कि आज के दौर में हम गांधी जी को श्रद्धांजलि स्वरूप इतना तो कर ही सकते हैं कि कोई भी बुरी पोस्ट न तो देखें, न ही उसे फारवर्ड करें और न ही उसे लाइक करें। दीपिका सूरी के बोलने का अंदाज आडियंस को अपनी बातों से सीधे कनेक्ट करने वाला था। उन्होंने कहा भी कि गांधी जी किसी को कोई भी बात कहने या कोई भी सलाह देने के पहले स्वयं अपने आपको उससे कनेक्ट करते थे। तभी उनकी बातों का पूरे देश पर असर होता था। सम्पूर्ण विश्व ने उनको एक कर्मयोगी जननायक की तरह स्वीकारा। जिस देश की गुलामी से हम आजाद हुए उसी देश की राजधानी लंदन में 4,5 वर्ष पूर्व जाना हुआ तो मैंने देखा कि वहां के संसद भवन के ठीक सामने गांधी जी की प्रतिमा स्थापित है। यह गांधी विचारधारा की ही ताकत है,जिसे आज भी सम्पूर्ण विश्व में स्वीकारा जाता है। गांधी जी से जब भी देश को कोई संदेश देने को कहा गया तो उन्होंने यही कहा कि मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। गांधी जी ने पुलिस प्रशासन की भूमिका बताते हुए कहा था कि उसे रिफारमर होना चाहिए। अपराधियों को पकड़कर दंड दिलाने, के साथ ही , उनकी मानसिकता को समझकर ,उनमें बदलाब लाने के लिए भी अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करने चाहिए। वे कहते थे कि पाप से घृणा करो, न कि पापी से। कोई भी कार्य करने से पहले यह सोचो कि उसका सबसे अधिक प्रभाव किस, किस पर, कैसा पड़ेगा। सबसे अधिक पीड़ित लोगों की पीड़ा को आत्मसात करके फिर कोई कार्य करो। दीपिका सूरी के उद्बोधन का वह चरमोत्कर्ष था जब उन्होंने बताया कि गांधी जी की नजरों में सात सबसे बड़े पाप कौन कौन से व क्यों हैं। गांधी जी ने स्पष्ट कहा कि सिद्धांत के बिना राजनीति,कर्म व चरित्र के बिना धन,त्याग के बिना पूजा,मानवीयता के बिना विज्ञान, आत्मा के बिना सुख,नैतिकता के बिना व्यापार,7 सबसे बड़े पाप हैं। गांधी जी के लिए देश की आजादी सिर्फ राजनीतिक नहीं थी। उनका कहना था कि मैं तब देश को आजाद मानूंगा जब रात के अंधेरे में भी महिलाएं सुरक्षित रूप से सड़कों से निकल सकें,जब धर्म, जाति आदि के नाम पर देश में कहीं कोई भेदभाव नहीं हो। मुझे दीपिका जी को सुनकर लगा कि गांधी जी की आजादी की सभी कसौटियों पर यदि हम सब अपना आत्म परीक्षण करें तब तो हम आज भी सही अर्थों में आजाद नहीं हैं। आज जिस तरह धर्म, जाति,भाषा के नाम पर राजनीतिक तुष्टिकरण हो रहा है,उसको देखते हुए तो यही लगता है कि यह कैसी श्रद्धांजलि दे रहे हैं हम गांधी जी को ? अब बारी थी गांधी चिंतन के इस प्रसंग की अध्यक्षता का रहे,पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व क्षेत्रीय विधायक डा. सीतासरन शर्मा की। डा. शर्मा ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा कि गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत इसलिए सफल रहा क्योंकि उन्होंने सत्य को आगे रखा। रामचरित मानस में तो सत्य व अहिंसा दोनों को ही धर्म का स्वरूप बताया गया है। अतः गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांत को आधुनिक संदर्भों में गंभीरता से समझना होगा। श्रीराम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास यह समझकर भेजा था कि ऐसा करना जिससे हमारा भी कार्य हो जाए व उसका भी हित हो। अहिंसा की यही सुंदरता है। डा. शर्मा ने कहा कि आज संसद के दोनों सदनों व विधानसभाओं में जो कुछ भी हो रहा है,हम सबको यह सोचना होगा कि क्या यह गांधी जी के उस लोकतंत्र से कितना अलग है,जिसे उन्होंने गढ़ा था। इस प्रसंग में विशेष…